राजनैतिकशिक्षा

गहलोत का सुशासन क्या दिला पायेगा आसन?

-डॉ. भरत मिश्र प्राची-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

फिलहाल राजस्थान में कांग्रेस सत्ता में जिसके मुख्य मंत्री अशोक गहलोत चर्चा के घेरे में है। जिनके सामने सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक अनेक विपरीत चुनौतियां सामने रास्ते में रोड़ा बनी हुई है जिनसे टक्कर लेना आसान नहीं फिर भी अपने राजनीतिक कौशल एवं सुशासन के बल पर आगामी विधान सभा चुनाव में फिर से आम जन का विश्वास पाकर सत्ता पर आसन जमाने की चाहत लिये आगे बढ़ते नजर आ रहे है। राजस्थान में गहलोत सरकार का सुशासन क्या दिला पायेगा फिर से आसन, मुख्य चर्चा का केन्द्र बिन्दु बना हुआ है। इस चर्चा के सकरात्मक/ नकरात्मक पहलू को जानने के लिये राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में संचालित सरकार की उपलब्धियों, सरकार पर अपनों से ही पैदा हुये मंडराते संकट के बादल एवं सामने खड़े विपक्ष की वस्तुस्थिति पर एक नजर डालना जरूरी है।
सबसे पहले राजस्थान में सत्ताधारी कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल की विशेष उपलब्धियों पर नजर डालें जहां हर वर्ग हर कौम को संतुष्ट करने का भरपूर प्रयास किया गया है। इस दिशा में वर्षो से बंद पड़ी पुरानी पेंशन को फिर से लागू करना, स्वास्थ्य क्षेत्र में सभी तरह की जांच, दवाई एवं इलाज फ्री करने के साथ मुख्य मंत्री चिरंजीवी बीमा राशि को 10 लाख से बढ़ाकर 25 लाख एवं दुर्घटना बीमा राशि 5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख किया जाना, बिजली के क्षेत्र में 50 यूनिट से बढ़ाकर 100 यूनिट की छूट आमजन को देकर, बस यात्रा में महिलाओं को 50 प्रतिशत छूट, रोजगार के लिये प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेले वालों को शत प्रति शत छूट, किसानों को बिजली उपभोग में राहत, खाली पदों को शीघ्र भरे जाने की घोषणा के साथ अनेक जन कल्याणी योजना लागू करने की योजना पर सरकार की तत्काल कार्यवाही आमजन का फिर से विश्वास पाने के मार्ग में सहायक तो हो सकता है पर गहलोत सरकार के सामने अपने एवं विपक्ष की प्रतिकुल परिस्थितियां भी सामने है।
राजस्थान सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट एवं उनके समर्थक सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाये जाने से नराज चल रहे है जिनकी नराजगी ने सरकार को गंभीर संकट में डाल दिया था, पर अशोक गहलोत ने अपनी राजनीतिक चतुराई से इस संकट को पार तो कर लिया पर मतभेद अभी भी बरकरार है। अभी विधान सभा चुनाव इस वर्ष के अंतराल में है, चुनाव से पूर्व कांग्रेस की प्रदेश की आंतरिक परिस्थितिया कैसी रहेगी, चुनाव परिणाम उस पर निर्भर करेगा। वैसे अशोक गहलोत के सामने वर्तमान में पक्ष पिवक्ष के विरोधी स्वर गूंजते जरूर नजर आ रहे है। राजस्थान विपक्ष में भी नेतृत्व के मामले में आपसी कलह साफ साफ नजर आ रही है। यह स्थिति अशोक गहलोत के लिये बेहतर हो सकती है। मोदी लहर का प्रभाव राजस्थान के आमजनमानस को प्रभावित कर सकता है पर भाजपा का आंतरिक कलह विधानसभा चुनाव में मोदी लहर को नकरात्मक भी साबित कर सकता। यदि चुनाव पूर्व केन्द्रीय स्तर पर विपक्ष में एकता नहीं हो पाती तो सत्ता पक्ष कांग्रेस के सामने भाजपा पिवक्ष के साथ-साथ आम आदमी पार्टी एवं ओवैसी की पार्टी का भी सामना करना पड़ सकता है। वैसे आम आदमी पार्टी एवं ओवैसी का जनाधार राजस्थान में तो नहीं नजर आता पर कांग्रेस के जनमत गणित को बिगाड़ने में ये दोनों दल सहायक हो सकते है। राजस्थान में सत्ता परिवर्तन का इतिहास रहा है। यदि चुनाव में कांग्रेस की फिर से वापसी होती है तो तो वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व का राजनीतिक कौशल बरकरार माना जायेगा। इस तरह की विकट परिस्थितियों में गहलोत का सुशासन क्या दिला पायेगा आसन, चर्चा के केन्द्रबिन्दु में समाया हुआ है।

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