राजनैतिकशिक्षा

राहुल को उत्तर (यूपी) में ही डटना चाहिए!

-शकील अख़्तर-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

राजकुमार उत्तर दिशा में नहीं जाना! दादी नानी की हर पुरानी कहानी यहींसे शुरू होती थी। और हर कहानी में राजकुमार सबसे पहले उत्तर दिशा की तरफही जाता था। बहुत कठिनाईयां उठाता। था झूठ फरेब नफरत का सामना करता था मगर हमेशा जीत कर लौटता था। राहुल को उत्तर में ही जाने से रोका जा रहा है। दक्षिण से (केरल) उत्तर (वाराणसी) आ रहे उनके विमान को वाराणसी में उतरने नहीं दिया गया। राहुल पहले बनारस में बाबा विश्वनाथ के दर्शन करके प्रयागराज आने वाले थे। फिलहाल दोनों प्रोग्राम कैन्सिल हो गए हैं। लेकिन राहुल को और कांग्रेसको यह समझना चाहिए कि जिस यूपी में वे समाप्त प्राय हो गए वहां सरकारउन्हें उतरने से क्यों रोक रही है?

मोदी सरकार और भाजपा जानती हैं कि उनकी सत्ता को अगर किसी से खतरा है तो वह राहुल और कांग्रेस से ही है। और चुनौती यूपी और हिन्दी बेल्ट में ही है। राहुल दक्षिण जाएं बीजेपी बहुत खुश होती है। और मजेदार यह है कि कांग्रेस में भी राहुल के ऐसे सलाहकार हैं जो जबर्दस्त सफल भारत जोड़ोयात्रा के बाद उनका पहला दौरा दक्षिण का बनवाते हैं। हमें मालूम है कि वहां से वे चुनाव जीते हैं। मगर क्या वे पहले ऐसे बड़ेकांग्रेसी नेता हैं जो दक्षिण से चुनाव जीते हैं? इन्दिरा गांधी भी जीती थीं और सोनिया गांधी भी। मगर दोनों ने राजनीति उत्तर भारत में ही की। इन्दिरा गांधी ने 1978 में कर्नाटक के चिकमंगलूर से और सोनिया ने 1999में इसी प्रदेश के बेल्लारी से जीत हासिल की थी। मगर बाद में दोनों रायबरेली से लड़कर ही कांग्रेस को सत्ता में लाईं। क्या राहुल को यह बात मालूम नहीं है या कोई बताता नहीं है कि वायनाड उनका स्थाई चुनाव क्षेत्र नहीं बन सकता। केरल की राजनीति बहुत परंपरागत है। शेष भारत की तरह वहां ऊपर से आए प्रत्याशियों के लिए कोई ज्यादा जगह नहीं है। कांग्रेस हो यालेफ्ट वहां संगठन का बहुत महत्व है। जिला कमेटियां बहुत अहम रोल निभातीहैं। राहुल का लड़ना वहां अपवाद की तरह लेना चाहिए। नियम की तरह यासामान्य रूप में नहीं। इन्दिरा और सोनिया की तरह लौटना वापस घर को हीहोगा। और घर (यूपी) से ही वापसी होगी। जैसी मां और दादी ने कर दिखाई थी।

क्या कांग्रेस में किसी के यह समझ में नहीं आया कि प्रधानमंत्री मोदी नेलोकसभा से राहुल के सरनेम का मुद्दा क्यों उठाया? राहुल ने केरल में इसव्यक्तिगत हमले का सवाल उठाया। मगर मुख्य सवाल यह है कि प्रधानमंत्री नेइस समय यह मुद्दा क्यों उठाया? इसलिए उठाया कि ट्वनटी फोर इन इनटू सेवन राजनीति करने वाले प्रधानमंत्रीमोदी को मालूम है कि राहुल की यात्रा बेइंतहा सफल हुई है। उनके आकलन केविपरीत। कहने को तो श्रीनगर में राहुल ने भी कहा कि यात्रा की इतनी सफलताकी उम्मीद किसी को नहीं थी। कांग्रेसियों को तो बिल्कुल नहीं थी। यात्राशुरू होने से पहले एक बड़ा चैनल हमसे दो तीन सवाल करने आया। मगर बातचीतलंबी हो गई। उसने दिखा भी दी। शायद यह सोचकर भी हम जो आकलन कर रहे वह गलतहोने पर राहुल का और यात्रा का मजाक उड़ाने के लिए कुछ और सहायक सामग्रीमिलेगी। और थोड़ा सा, वैसे तो आजकल पत्रकार का क्या महत्व होता है फिर भीउसके गलत निकलने पर मजा लेना। चैनल तो बाद में सोच रहा होगा। कांग्रेसीतो पहले ही बोलेने लगे थे। हमसे कहा कि वाह आपने तो यात्रा शुरू होने सेपहले ही उसे कामयाब कर दिया। कांग्रेस में उस समय राहुल विरोधी बहुतताकतवर थे और संख्या में भी अधिक। जो इस यात्रा को राहुल का वाटरलू मानरहे थे। मगर अब तो कहानी बदल चुकी है। और इसे कांग्रेसी स्वीकार करने मेंचाहे जितनी देर लगाएं मगर मोदी जी समझ गए हैं।

इसलिए लोकसभा में राहुल पर यह व्यक्तिगत हमला था। उनकी छवि बिगाड़ने काअभियान टू। समस्या यही है कि अपने निहित स्वार्थों में घिरे कांग्रेसीसमझ पाएं या नहीं। पार्टी और संगठन के लिए काम कर रहे भाजपा के दिमाग सबसमझ रहे हैं। उन्हें मालूम है कि राहुल की यात्रा की सफलता की वजह से हीसंसद में विपक्षी दल कांग्रेस के साथ बैठकें करने पर मजबूर हुए हैं। आमआदमी पार्टी, टीएमसी, सपा कब साथ आते थे। मगर उन्हें समझ में आ गया कियात्रा ने राहुल को नई नेतृत्वकारी छवि दी है। कांग्रेस का साथ अब उनकेलिए फायदे का सौदा होगा। लेकिन समझ में अगर नहीं आ रहा है तो कांग्रेस को। छोटे छोटे स्वार्थों औरगुटबाजियों ने उसके नेताओं की बुद्धि भ्रष्ट कर दी है। वे यात्रा काराजनीतिक लाभ उठाने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। रायपुर के 24, 25, 26 फरवरी के प्लेनरी (पूर्ण अधिवेशन) से पहले बहुत समय था। राहुल को केरलले जाने के बदले यहां दिल्ली में पूरे पांच महीने साथ रहे और चार हजारकिलोमीटर साथ चले भारत यात्रियों और कई कई हफ्ते, सैंकड़ों किलोमीटर चलेइंटर स्टेट यात्रियों का एक सम्मेलन करना चाहिए था। जहां उनके अनुभव सुनेजाते। उत्साह और जोश देखा जाता। और सम्मान भी किया जाता। कांग्रेसी नेताजिन्दगी भर खुद अपना ही सम्मान करवाते रहते हैं। दूसरे के सम्मान काख्याल तो उन्हें कभी आता ही नहीं है। आडवानी जिस जिले में जाते थे वहांभाजपा के पुराने समर्पित कार्यकर्ता का सम्मान करके आते थे।

मगर समस्या यह है कि अभी यूपी में कांग्रेस को खड़ा करने की कौन कहे!जहां सरकार है राजस्थान में वहां बचाना मुश्किल। न दिल्ली से और न राज्यसे ऐसी कोई कोशिश दिख रही है कि वहां गुटबाजी खत्म करना है। गहलोत औरपायलट के विवाद का कांग्रेस चार साल में कोई इलाज नहीं ढुंढ पाई। और अबचुनाव सिर पर आ गए हैं। कार्यकर्ता हताश हैं। पिछले चुनाव मेंकार्यकर्ताओं की मेहनत ने ही जिताया था। इसी तरह मध्य प्रदेश में जहां राहुल ने अभी से घोषणा कर दी कि कांग्रेसवहां जीत रही है वहां नेता अपनी तरफ से फिर कोशिश कर रहे है कि जनता औरराहुल उन्हें कितना ही जिताने की कोशिश करें वे नहीं जितेंगे। 20 साल सेवहां भाजपा की सरकार है। बीच में एक साल कांग्रेस की जरूर रही। मगर वह भीनहीं संभाल पाए। भाजपा से लोग वहां नाराज हैं। पिछली बार साफ जिताकरदिया। मगर कांग्रेस के नेता इसे वापस भाजपा को सौंप आए। कांग्रेस की इतनी कमजोरियों के बावजूद मोदी सचेत हैं। दूसरे विपक्षी दलकांग्रेस में फिर संभावना देखने लगे हैं। मगर एक अकेली खुद कांग्रेस हैजो कुछ करने को तैयार नहीं है। अभी उत्तर पूर्व के तीन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। त्रिपुरा में तो चुनाव प्रचार भी खत्म हो गया। 16 फरवरी कोवहां मतदान है। मगर हिमाचल गुजरात की तरह राहुल वहां नहीं गए। गुजरात मेंदो दिन का एक दौरा किया था जबकि वहां राज्य इकाई और राजनीतिक पर्यवेक्षकभी कांग्रेस की अच्छी संभावनाएं देख रहे थे। लेकिन बिना लड़े कांग्रेस नेगुजरात भाजपा को दे दिया। भाजपा अब अच्छा नहीं खेल रही है। सबसे बड़े स्टार मोदी का भी वह फार्मनहीं रहा। मगर कांग्रेस तो और बुरा खेल रही है। फार्म में आने के लिएतैयार ही नहीं है।

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