राजनैतिकशिक्षा

जुबान है साहिब घिसी पादुका नहीं फिसलने न दें

-अनिल बिहारी श्रीवास्तव-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

यदि कोई सवाल करे कि राहुल गांधी मनीष सिसोदिया राजा पटैरिया और अनुराग भदौरिया में क्या कोई समानता है? मस्तिष्क में प्रथम दृष्टया उत्तर आएगा कुछ भी नहीं। फिर एक विचार उभरेगा कि राहुल गांधी और राजा पटैरिया दोनों ही कांग्रेसी हैं। अड़चन इन दोनों के साथ मनीष सिसोदिया और अनुराग भदौरिया का नाम जोड़े जाने से उत्पन्न होगी। यहां बात राहुल गांधी और राजा पटैरिया के पार्टी में उनके लेवल की कतई नहीं है। सपाट उत्तर यह है कि ये चारों महानुभाव अपनी जुबान के कारण इस समय खबरों में हैं। भारत जोड़ो पर निकले राहुल गांधी ने महाराष्ट्र में प्रवेश करते ही वीर सावरकर के संबंध में एक अनावश्यक बयान से विरोध का तूफान खड़ा कर दिया था। उन्होंने कोई सबक नहीं लिया। तवांग में चीनी सैनिकों के साथ भारतीय सैनिकों की झड़प को लेकर उन्होंने फिर जुबान फटकार दी। मोदी सरकार पर निशाना साधने के फेरे में उन्होंने देश की सेना का अपमान कर दिया। लोग काफी नाराज हैं। पिछले शुक्रवार को उन्होंने आरोप लगाया था कि ‘चीन युद्ध की तैयारी कर रहा है जबकि भारत सरकार सोई हुई है और खतरे को नजरअंदाज करने की कोशिश कर रही है।‘ राहुल ने कहा ‘चीन ने दो हजार वर्ग किमी भारतीय क्षेत्र छीन लिया है। 20 भारतीय जवानों को मार डाला है और अरुणाचल प्रदेश में हमारे जवानों की पिटाई कर रहा है।‘ राहुल से सीधा सवाल यह होना चाहिए कि इस तरह की सूचनायें दे कौन रहा है? क्या ऐसी बातें भारतीय जवानों का अपमान नहीं हैं? उनके मनोबल पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? सुनने में आया है कि कि राहुल के विरूद्ध एफआईआर करा दी गई है। यही सही कदम है।
हाल के वर्षों में कांग्रेस के दर्जनों नेता बेलगाम जुबान या जुबान फिसलने या फिर अपने मुंहफटपन के कारण खबरों में रहे हैं। अधिकांश मामलों में पार्टी ने चुप्पी मारे रखी। कुछेक में व्यक्तिगत बयान बता कर पल्ला झाड़ लिया गया। ऐसा एकाध उदाहरण याद नहीं आता जिसमें अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई हो। लंबी श्रृंखला है। ताजा कड़ी के रूप में मध्यप्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी और पूर्व मंत्री राजा पटैरिया का नाम जुड़ गया। पवई में एक कार्यक्रम में पटैरिया ने कहा है ‘कांग्रेस कार्यकर्ता नरेंद्र मोदी की हत्या के लिए तत्पर रहें इन द सेंस उन्हें हराने का काम करें।‘ वीडियो वायरल होते ही कांग्रेस को सियासी नुकसान की आशंका हुई। फटाफट वक्तव्य जारी कर दिया गया ‘पटैरिया का वक्तव्य आपत्तिजनक और निंदनीय है जो अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है।‘ इस बीच पुलिस ने पटैरिया को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। उन पर लोक शांति भंग करने के लिए प्रेरित करने उकसाने और धमकाने सहित कई अन्य धाराओं में केस दर्ज किया गया है। लोग कह रहे हैं कि आमतौर पर राजा पटैरिया की छवि एक दबंग लेकिन धीर-गंभीर और परिपक्व राजनेता के रूप में रही है। किसी ने कटाक्ष किया पकी उम्र में लोगों को पैर फिसलने से गिरने के उदाहरण तो कई सुने थे लेकिन जुबान फिसलने से औंधे मुंह गिरने का कमाल पटैरिया ने दिखाया है।
बात जुबान फिसलने की हुई तो समाजवादी पार्टी के अनुराग भदौरिया को कैसे भुलाया जा सकता है? इन दिनों भदौरिया अंतर्ध्यान हैं। वह टीवी बहसों से नदारत हैं। खबर है कि यूपी पुलिस उन्हें तलाश रही है। गत दिवस एक लाइव टीवी डिबेट के दौरान भदौरिया ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके गुरू के प्रति आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया था। गिरफ्तारी के डर से नेताजी गायब हो गए। उनके निवास पर पुलिस ने कुर्की का नोटिस चस्पा कर दिया। अग्रिम जमानत नहीं मिलने पर सुप्रीम कोर्ट की शरण में गए। खबर है कि सर्वोच्च न्यायालय में नववर्ष के पहले हफ्ते में ही सुनवाई हो पाएगी। भदौरिया की सास योगी जी से अनुरोध कर रहीं हैं कि दामाद को क्षमा कर दें उसकी जुबान फिसल गई थी। इसी जुबान ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को भी मुसीबत में डाल रखा है। उनके सिर पर मुसीबत के बादल उमड़ रहे हैं। बिना आधार के विरोधियों पर आरोप लगा देने का आपियों का लंबा रिकार्ड है लेकिन याद करें लगभग आधा दर्जन बड़े आपियों ने माफी मांग कर कैसे अपनी जान छुड़ाई थी। सिसोदिया ने अतीत और साथियों से कोई सबक ही नहीं सीखा। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सिसोदिया के विरूद्ध आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर कर रखा है। मुकादमा रद कराने की मांग लेकर सिसोदिया सुप्रीम कोर्ट गए थे जहां उन्हें फटकार ही मिली। कानून के जानकार मानते हैं कि यदि हिमंत बिस्वा सरमा ने सिसोदिया को माफ नहीं किया तो उन्हें दो साल तक की सजा हो सकती है। इसका मतलब वह कुल आठ साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। यानि उनका सियासी सफर खत्म। लोग कटाक्ष कर रहे हैं अरविंद केजरीवाल से सिसोदिया ने ज्ञान नहीं लिया। केजरीवाल तो शीला दीक्षित नितिन गडकरी कपिल सिब्बल और विक्रम सिंह मजीठिया से माफी मांग चुके हैं। अरूण जेटली से माफी मांगने वाले आपियों में संजय सिंह और राघव चड्ढा शामिल रहे हैं। गडकरी कह चुके हैं कि ‘केजरीवाल को झूठे आरोप लगाने की आदत है।‘ माफी राहुल गांधी भी मांग चुके हैं। राफेल सौदे को लेकर राहुल गांधी ने झूठे और आधारहीन आरोपों का जमकर वमन किया था। इससे उनकी खुद की छवि पर दोहरी मार पड़ी। चौकीदार चोर है जैसे राजनीतिक नारे के कारण मीनाक्षी लेखी द्वारा दायर अवमानना मामले में राहुल गांधी ने लिखित माफी मांगी थी।
भारतीय राजनीति में आधारहीन आरोप आपत्तिजनक टिप्पणियां और जिह्वा स्खलन(जुबान फिसलना या स्लिप आफ टंग) के उदाहरणों का अंबार है। ऐसा अंबार दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा। एक मुहावरा है थोथा चना बाजे घना। कहा जाता है कि चने के सार तत्व समाप्त हो जाने पर वह बहुत बजने लगता है। यही बात मनुष्य की भी मानी गई है। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति में ज्ञान की जितनी कमी होती है वह उतना ही अधिक दिखावा करता है। ऐसे लोग ज्यादा दिखावा करके अपनी कमी को छिपाने का प्रयास करते हैं। भारतीय राजनीति में ऐसे थोथे चने भरे पड़े हैं। कमोवेश सभी राजनीतिक पार्टियों में ऐसे सूरमा मिल जाएंगे उनमें कोई उन्नीस है और कोई बीस। बीते एक दशक पर नजर डालें तो कई नाम उभर कर सामने आ जाएंगे जो बड़बोलेपन बेलगाम जुबान या किसी कुण्ठा के चलते आलोचना के पात्र बने। विवादास्पद वक्तव्यों बयानों और टिप्पणियों के कारण जिन राजनेताओं को विरोध या आलोचना का सामना करना पड़ा उनमें कुछ नाम याद आ रहे हैं। शरद यादव मणिशंकर अय्यर मुलायम सिंह यादव अधीररंजन चौधरी दिग्विजय सिंह शिवराज पाटिल आजम खान विनय कटियार महबूबा मुफ्ती साक्षी महाराज संदीप दीक्षित ममता बनर्जी श्रीप्रकाश जायसवाल मवैया अली मंगल पांडे(बिहार) के.जे. जार्ज(कर्नाटक) ये वो नाम हैं जिनके किसी न किसी बयान पर बवाल मचा या आलोचना हुई। किसी ने खेद व्यक्त किया किसी ने बात को तोड़मरोड़ पेश करने का आरोप मीडिया पर जड़ दिया और कोई पूरी बेशर्मी से अड़ा रहा। कहने में संकोच नहीं यदि राहुल गांधी ने जुबानी कसरत की सीमा तय नहीं की तो जल्द ही उनका नाम इसी सूची में काफी ऊपर दर्ज दिखाई देगा। वैसे कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे मुंहफट शैली के राजनेताओं की अग्रणी पंक्ति में सबसे आगे नजर आ सकते हैं। भोपाल में खरगे के इस बयान को आज तक लोग चटकारे लेकर याद करते हैं कि ‘बकरीद में बचेंगे तो मोहर्रम में नाचेंगे।‘ गुजरात चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना वह रावण से कर चुके हैं। चीन के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरते समय खरगे फिर बिगड़े है- ‘हमारे नेताओं ने कुर्बानी दी हैं तुम्हारे यहां कुत्ता भी मरा क्या?’ जिस पार्टी के शीर्ष नेताओं की ऐसी भाषाशैली हो उसमे पटैरिया जैसे उदाहरणों पर आश्चर्य नहीं होता।
मनीष सिसोदिया की याचिका पर सुनवाई दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी याद आ रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था अगर आप सार्वजनिक बहस का स्तर इतने नीचे गिराएंगे तो आपकों परिणाम भुगतने ही पड़ेंगे। एक खबर यह है कि चुनाव आयोग ने उस पर तथ्यहीन आरोप लगाने वालों की अक्ल दुरूस्त करने का मन बना लिया है। अब वह चुप नहीं बैठेगा। राजनीतिक दलों और जनप्रतिनिधियों के अनर्गल आरोपों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। राज्यसभा में उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ सदस्यों को चेतावनी दे चुके हैं कि अवास्तविक आधार वाले आरोप लगाने से बचें। सदस्यों से संबंधित दस्तावेज मांगे जा सकते हैं। ये दोनों ही सही कदम हैं। हमारी सियासी बिरादरी को जिह्वा स्खलन की बीमारी से बचाने के लिए कुछ तो करना ही होगा।

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