राजनैतिकशिक्षा

औकात-सेवक और विश्वसनीयता

-सनत जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

गुजरात विधानसभा के चुनाव का प्रचार अंतिम चरण में है। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना, मेरी कोई औकात नहीं, मैं जनता का सेवक हूं, गुजरात का नमक देश के 80 फीसदी लोग खाते हैं, कुछ लोग राज्य का नमक खाकर भी गुजरात को गाली देते हैं। ऐसा कहकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव अभियान को नई धार देते हुए, एक बार फिर गुजरात के मतदाताओं से लगाव पैदा करने और विपक्षी दलों को मात देने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी विभिन्न रैलियों और चुनावी भाषण में कांग्रेस पर हमला करते हुए, पिछले चुनाव के दौरान भावात्मक रूप से मतदाताओं को जोड़ने के लिए, नीच आदमी, मौत का सौदागर, नाली का कीड़ा जैसे शब्दों का उपयोग कर एक बार फिर मतदाताओं का विश्वास जीतने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। निश्चित रूप से गोधरा कांड के बाद नरेंद्र मोदी की छवि एक हिंदू नेता के रूप में बनी थी। हिंदुत्व के नाम पर उन्होंने गुजरात और देश के एकमात्र नेता बनकर, मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री पद का लंबा सफर तय किया है। गुजरात में 2002 के बाद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और गौ रक्षक के साथ-साथ हिंदुत्व के सबसे बड़े नेता के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देखा जाता था। गुजरात में विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बजरंग दल की कोई भी गतिविधियां 2014 तक शून्यवत हो गई थी। अकेले मोदी ही थे, जिनके नाम पर पूरा गुजरात एक स्वर में वही बोलता था, जो मोदी जी चाहते थे।

2013-14 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे बड़े हिंदू आइकॉन, गुजरात मॉडल और विकास पुरुष के नाम पर जो छवि जनता के बीच में बनाई गई थी। वह 2018-19 तक विश्वसनीयता के साथ आम जनता के बीच में बनी हुई थी। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से आर्थिक एवं राजनीतिक समीकरण बने हैं। भारतीय जनता पार्टी का संगठन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नेपथ्य में चला गया है। सत्ता और संगठन के समीकरण केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के इर्द-गिर्द बने हुए हैं। पिछले 2 वर्षों में महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक विषमता के कारण एक विकास पुरुष के रूप में जो छवि प्रधानमंत्री मोदी की बनी हुई थी उसमें कहीं ना कहीं अविश्वास पैदा हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरीके से भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार के पीछे पैदल चलते हुए दिखाई पड़ते हैं। पिछले वर्ष वो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बॉडी लैंग्वेज और उनके राजनीतिक, प्रशासनिक एवं संगठन के निर्णयों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निर्णय ही सर्वोपरि होता है।

कांग्रेस नेता मधुसूदन मिस्त्री ने औकात शब्द का जो इस्तेमाल किया था। वह सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बदलकर नरेंद्र मोदी के नाम पर करने, तथा गुजरात निर्माण का श्रेय नरेंद्र मोदी के नाम पर करने की जो कोशिश हो रही थी। उसको लेकर उन्होंने महात्मा गांधी और सरदार पटेल का उल्लेख करते हुए, औकात शब्द का उपयोग किया था। पिछले 27 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी का शासन गुजरात में है। 2014 का लोकसभा चुनाव गुजरात मॉडल पर सारे देश में लड़ा गया था। जिस गुजरात मॉडल की तस्वीर दिखाई गई थी। उस तस्वीर के विपरीत 27 सालों के शासन के बाद बाद गुजरात वर्तमान में दिख रहा है। इसके जवाब में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली मॉडल पेश करके, नई चुनौती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा संगठन को दी। जनता के सेवक कैसे होते हैं। इसका जवाब केजरीवाल ने गुजरात में जाकर दिया। वह मतदाताओं से मिले ऑटो वाले के यहां खाना खाया हम मतदाताओं से आम आदमी की तरह मिले। गुजरात की जनता ने मुख्यमंत्री के रूप में जन सेवक की नई छवि देखी। निश्चित रूप से 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव मैं जो रणनीति, अरविंद केजरीवाल ने अपनाई। वह निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2013-14 में लोकसभा चुनाव के पहले अपनाई थी। उसी को जस का तस केजरीवाल ने गुजरात में जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए उपयोग किया। उसका असर भी गुजरात के मतदाताओं में देखने को मिल रहा है।

औकात, सेवक और नमक हलाली और नमक हरामी, यह सब विश्वसनीयता से जुड़ा हुआ है। मतदाता स्वयं इस मामले में अपनी राय बनाता है। जिस भावनात्मक रूप से चुनाव लड़ने की नई शुरू हुई है। उसमें मतदाताओं को भावात्मक रूप से जोड़ने के लिए नरेंद्र मोदी ने गुजरात चुनाव में उपयोग किया है। सही मायने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृहमंत्री अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी के लिए गुजरात के मतदाताओं के बीच में अपनी विश्वसनीयता को बनाए रखने रखने की चुनौती है। विधानसभा चुनाव में यदि वह अपनी विश्वसनीयता को बनाए रखने में सफल हुए, तो यह उनकी सबसे बड़ी जीत होगी। अन्यथा यह भी कहा जा सकता है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है।

 

 

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