मानसून की आमद
-सिद्धार्थ शंकर-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
केरल में मानसून ने दस्तक दे दी है। सामान्य तौर पर केरल में मानसून एक जून तक दस्तक देता है, लेकिन इस साल यहां मानसून 3 दिन पहले 29 मई को ही पहुंच चुका है। मौसम वैज्ञानिकों ने बताया कि सामान्य समय से तीन दिन पहले दक्षिण-पश्चिम मानसून केरल तट पर पहुंच चुका है। बता दें कि मानसून के आने से पहले केरल के अलग-अलग जिलों में जमकर बारिश हो रही थी। केरल में मानसून के बाद भारी बारिश की संभावना है। दक्षिण-पश्चिम मानसून को भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा माना जाता है। मानसून विशेषज्ञों का कहना है कि असामान्य तरीके से मानसून 16 मई को ही अंडमान-निकोबार में पहुंच गया था। चक्रवात असनी के चलते इसके तेजी से आगे बढऩे की संभावना थी। मानसून की बौछारें सबसे पहले जब केरल में पड़ती हैं, तो उनकी गूंज पूरे देश के खेत-खलिहान से लेकर हाट-बाजार तक में सुनाई देती है। इस बार देश को यह खुशखबरी तीन दिन पहले ही मिल गई है। यह भी माना जाता है कि मानसून के ध्वजारोहक के रूप में मानसून-पूर्व की बारिश उसके आगे-आगे चलती है। महाराष्ट्र के पुणे तक से मानसून-पूर्व बारिश की खबरें आने लगी हैं। असल में, मानसून के समय पूर्व या समय पर दस्तक देने से ज्यादा महत्वपूर्ण यही होता है कि बरसात के पूरे मौसम में उसकी प्रगति कैसी रहती है? ऐसा कई बार हुआ है कि मानसून देर से आया, लेकिन जब आया, तो दुरुस्त आया और पूरे देश की पानी की जरूरत को पूरा कर गया। इसके विपरीत यह भी हुआ है कि मानसून समय पर आ गया, लेकिन उसके बाद कमजोर पड़ गया, और देश के कुछ हिस्से प्यासे ही रह गए। पिछले कुछ साल से लगातार ऐसा हुआ है। पिछले साल भी कुलजमा मानसून अच्छा रहा था, लेकिन कुछ इलाकों की प्यास ठीक से नहीं बुझा सका था। ऐसे क्षेत्रों के किसानों के लिए यह काफी बुरा अनुभव होता है, इसलिए मई शुरू होते-होते पूरा देश यह कामना करने लगता है कि इस बार मौसम की हवाएं दगा न दें। वैसे विज्ञान की भाषा में मानसून और कुछ नहीं हवा, नमी और बादलों का एक ऐसा प्रवाह है, जो हमारे पूरे उप-महाद्वीप को कुछ सप्ताह के लिए बारिश का उपहार देता है। लेकिन बरसात का यह मौसम विज्ञान से कहीं ज्यादा हमारे लोक जीवन, हमारी संस्कृति और सबसे बड़ी बात है कि हमारी अर्थव्यवस्था के लिए महत्व रखता है। अच्छे मानसून का सबसे बड़ा मतलब है, खरीफ की बहुत अच्छी उपज होना और रबी की फसल के लिए अच्छी संभावनाओं का बनना। देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी भले ही तेजी से कम हो रही हो, लेकिन देश की 70 फीसदी जनता अभी भी कृषि पर निर्भर रहती है और इस आबादी के लिए अच्छी फसल काफी महत्वपूर्ण होती है। लेकिन अच्छी फसल देश के उद्योगों के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। मसलन हम सीमेंट उद्योग को लें। जिस साल फसल अच्छी होती है, सीमेंट की बिक्री बढ़ जाती है। देश के सीमेंट उत्पादन की 40 फीसदी खपत अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में होती है और ग्रामीण क्षेत्रों में कितना निर्माण होगा, यह इस पर निर्भर करता है कि कृषि उपज कैसी हुई है। जाहिर है कि बारिश की ये बूंदें उद्योगों के लिए ग्रामीण बाजार के दरवाजे भी खोलती हैं। खुशखबरी है कि इस बार अच्छी बारिश होगी। यह देश के कृषि क्षेत्र के साथ-साथ समूची अर्थव्यवस्था के लिए संतोषजनक बात है। कृषि क्षेत्र की हालत अर्थव्यवस्था को काफी हद तक प्रभावित करती है। इसलिए मानसून को लेकर मौसम विभाग ने जो अनुमान व्यक्त किए हैं, वे राहत देने वाले हैं। मौसम विभाग ने बताया है कि इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य रहने की उम्मीद है। यह लगातार तीसरा साल है जब मौसम विभाग ने सामान्य मानसून की भष्यिवाणी की है। प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान दो से तीन डिग्री सेल्सियस कम रहेगा, जिसकी वजह से ला-नीनो बनेगा और यह प्रभाव ही अच्छे मानसून का कारक साबित होगा। कई बार ऐसा भी हुआ है कि मानसून को लेकर मौसम विभाग की भविष्यवाणी सटीक साबित नहीं हुई। 2005 से 2017 के दौरान सात बार ऐसा हुआ जब मौसम विभाग की भविष्यवाणियां खरी नहीं उतरीं। अनुमानित और वास्तविक बारिश में कई बार खासा फर्क देखने को मिलता है। इससे सबसे ज्यादा निराशा किसान को होती है जो अच्छी पैदावार की आस लगाए रहता है। अर्थव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रहती। पैदावार अच्छी होने से कीमतों पर नियंत्रण बना रहता है। याद हो जब 2009 में मानसून गड़बड़ा गया था तो भारत को चीनी का आयात करना पड़ गया था।