राजनैतिकशिक्षा

वह करें तो तुष्टीकरण और यह करें तो सद्भाव?

-निर्मल रानी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

भारतीय जनता पार्टी के लोग हमेशा ही पिछली ग़ैर भाजपाई सरकारों पर अल्पसंख्यकों ख़ासकर मुस्लिमों का तुष्टीकरण करने का आरोप लगाते रहे हैं। और इसी दुष्प्रचार की बदौलत देश के बहुसंख्य हिन्दू समाज को अपने पक्ष में गोलबंद करने का काम भाजपा दशकों से करती रही है। मिसाल के तौर यदि यू पी ए सरकार के दौर में हज पर जाने वाले यात्रियों को सब्सिडी दी जाती थी तो उसे यह तुष्टिकरण बताते थे। कोई राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री यदि ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की अजमेर शरीफ़ स्थित दरगाह अथवा किसी अन्य पीर फ़क़ीर की दरगाह पर सद्भावना के तहत अपनी ओर से मज़ार पर चढ़ाने के लिये चादर भेजता था तो वह भी इनकी ‘परिभाषा’ के अनुसार तुष्टीकरण था। मदरसों को प्रोत्साहित करने हेतु बनने वाली योजनाएं ‘तुष्टीकरण’ यहाँ तक कि रमज़ान के दिनों में यदि कहीं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या कोई मंत्री रोज़ा इफ़्तार का आयोजन करता था तो उसे भी ‘तुष्टीकरण’ ही बताया जाता था। यह और बात है कि इसी ‘तथाकथित तुष्टीकरण काल ‘ के दौरान ही जस्टिस राजेंद्र सच्चर की अल्पसंख्यकों की स्थिति के बारे में आई रिपोर्ट भारतीय मुसलमानों की आर्थिक,सामाजिक व शैक्षिक स्थिति का जो ख़ुलासा करती है वह मुस्लिम ‘तुष्टीकरण’ जैसे आरोपों से बिलकुल विपरीत थी।
बहरहाल ‘तुष्टीकरण’ के आरोपों की इसी नाव पर सवार होकर भाजपा ने 2014 में केंद्र की सत्ता संभाली। बहुसंख्यकवाद की राजनीति कर देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं को यह जताने का प्रयास किया कि मोदी सरकार हिन्दू हितों का सम्मान व ध्यान रखने वाली एक ऐसी सरकार है जिसमें अब ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ की कोई गुंजाइश नहीं है। केंद्र की मोदी सरकार का ऐसा ही एक निर्णय था जनवरी 2018 में मुसलमानों को हज यात्रा के लिए दी जाने वाली सब्सिडी ख़त्म करने का फ़ैसला लिया जाना। हालांकि सरकार द्वारा हज के अतिरिक्त दूसरी धार्मिक यात्राओं जैसे कैलाश मानसरोवर व ननकाना साहिब गुरुद्वारा की यात्रा के लिए भी सरकार की ओर से सब्सिडी दी जाती रही है। जबकि मुसलमानों की ओर से किसी भी नेता,दल अथवा संगठन ने हज यात्रा के लिये सब्सिडी दिये जाने की मांग कभी नहीं की। बल्कि ठीक इसके विपरीत मुसलमानों का एक बड़ा तबक़ा, अनेक मुस्लिम धार्मिक संस्थाएं तथा मुस्लिम हितों की बात करने वाले असदुद्दीन ओवैसी जैसे सांसद भी हज सब्सिडी को ख़त्म करने की मांग करते रहे। इन्हीं हालात में साल 2012 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र को वर्ष 2022 तक चरणबद्ध तरीक़े से हज सब्सिडी ख़त्म करने का निर्देश भी दिया था। परन्तु मोदी सरकार ने 2018 में ही हज सब्सिडी समाप्त कर इसे मुस्लिम अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण समाप्त करने के अपने एजेंडे के रूप में दर्शाया। उस समय सरकार की ओर से यह भी बताया गया कि हज सब्सिडी समाप्त करने के सरकार के फ़ैसले से 700 करोड़ रुपये बचेंगे और ये पैसे अल्पसंख्यकों की शिक्षा विशेषकर मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर ख़र्च किये जायेंगे।
इसी तरह देश में रमज़ान महीने में नेताओं द्वारा इफ़्तार पार्टी दिये जाने की काफ़ी पुरानी परंपरा है। देश में हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई भाईचारे तहत यह सिलसिला प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बंटवारे के कुछ समय बाद ही शुरू किया था। उस समय कांग्रेस के तत्कालीन पार्टी कार्यालय 7 जंतर मंतर पर पंडित नेहरू इफ़्तार पार्टी दिया करते थे। हालांकि 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद इफ़्तार पार्टी का यह सिलसिला कुछ वर्षों तक थम गया था । परन्तु 1971 के भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश युद्ध में पाकिस्तान की ऐतिहासिक पराजय के पश्चात् तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1972 में दिल्ली में एक बहुत बड़ा ईद मिलन समारोह आयोजित किया था। इसमें जयप्रकाश नारायण सहित पूरे देश के पक्ष विपक्ष के अनेक बड़े नेता व राजदूत शरीक हुए थे। इंदिरा गाँधी के शासनकाल में इफ़्तार पार्टी ही नहीं बल्कि होली-दीवाली मिलन, गुरु पर्व मिलन, क्रिसमस मिलन भी आयोजित होता रहा। देश में साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने ग़रज़ से पूरे राष्ट्रपति भवन व प्रधानमंत्री निवास से लेकर देश के अनेक केंद्रीय मंत्री,मुख्यमंत्री के आवास व अनेक पार्टी मुख्यालयों पर इफ़्तार पार्टियां हुआ करती थीं। परन्तु 25 जुलाई, 2017 को जब रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली उसी समय उन्होंने यह निर्णय लिया कि -‘राष्ट्रपति भवन एक सार्वजनिक इमारत है, यहां सरकार या कर दाताओं के पैसों से किसी भी धार्मिक त्योहार का आयोजन नहीं होगा। और राष्ट्रपति के इस फ़ैसले के साथ ही राष्ट्रपति भवन में स्वतंत्रता के बाद से चली आ रही इफ़्तार पार्टी की परंपरा समाप्त हो गयी। इससे पूर्व 2017 में ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के कार्यकाल में क्रिसमस पर होने वाली कैरोल सिंगिंग का आयोजन भी रद्द कर दिया गया था। इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री निवास में न तो कभी इफ़्तार पार्टी की मेज़बानी की और न ही किसी इफ़्तार पार्टी में शामिल हुए। प्रधानमंत्री मोदी को देखकर उनकी पार्टी के अनेक नेता,मंत्री मुख्यमंत्रियों ने इफ़्तार पार्टियों से दूरी बनाना शुरू कर दिया। इन सब बातों का एक ही सन्देश था कि भाजपा मुस्लिम तुष्टीकरण का कोई काम नहीं करती।
परन्तु पिछली सरकारों पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाने वाली भाजपा सरकार तथा भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा मुसलमानों के संदर्भ में किये जाने वाले कई फ़ैसले आश्चर्यचकित करने वाले हैं। इसमें स्कूल ड्रॉप-आउट बच्चों को ब्रिज कोर्स करवा कर मेनस्ट्रीम एजुकेशन में लाया जाना,मदरसों को मुख्यधारा में लाने के लिए वहां हिंदी, अंग्रेज़ी,गणित और विज्ञान की शिक्षा दिया जाना,अल्पसंख्यक वर्ग के पांच करोड़ छात्रों को अगले पांच साल में छात्रवृत्तियां दिये जाने की घोषणा करना तथा अल्पसंख्यकों के शैक्षिक संस्थानों में आधारभूत संरचना को मज़बूत किये जाने जैसी घोषणायें महत्वपूर्ण हैं। इनके अतिरिक्त सामुदायिक भवन इत्यादि खोलने के लिए शत प्रतिशत फ़ंडिंग की व्यवस्था किए जाने की भी सरकार की योजना है। सरकार द्वारा हज के कोटे में भी वृद्धि गयी है।
इसी तरह रोज़ा इफ़्तार को मुस्लिम तुष्टीकरण बताने वाले लोगों विशेषकर आर एस एस द्वारा इन दिनों चल रहे रमज़ान के दिनों में देश के इतिहास में पहली बार इफ़्तार पा की कई छोटी बड़ी दावतें देने की घोषणा की गयी है। जानकारों का मानना है कि मुसलामानों तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए संघ ने यह योजना बनाई है। ख़बरों के अनुसार एक महीने चलने वाले रमज़ान के प्रारंभिक बीस दिनों में आंध्र प्रदेश व तेलंगाना राज्यों में रोज़ा इफ़्तार की कई दावतें आयोजित की जायेंगी। इतना ही नहीं बल्कि रमज़ान माह के आख़िरी 10 दिनों में ईद मिलन समारोह का सिलसिला भी चलेगा। संघ के अधीन संचालित होने वाले संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संरक्षक डॉ इंद्रेश कुमार का मत है कि -‘हम सभी एक साथ तभी तरक़्क़ी कर सकते हैं यदि हम नफ़रत को दफ़्न कर दें। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि हम सांप्रदायिक सद्भाव को और बढ़ाएं।’ डॉ इंद्रेश कुमार के अनुसार- ‘इस रमज़ान से हम एक नई शुरुआत करने जा रहे हैं’।
परन्तु सरकार की मुस्लिम हितकारी योजनाओं और आर एस एस के इफ़्तार पार्टियों के आयोजन से यह सवाल ज़रूर खड़ा होता है कि जब पिछली सरकारों में यही अथवा इस तरह के निर्णय होते थे तो यही आज के ‘सद्भाव के तथाकथित ध्वजवाहक’ उन फ़ैसलों को मुस्लिम तुष्टीकरण बताते थे? आख़िर ऐसा कैसे हो सकता है कि यदि यही काम वह करें तो तुष्टीकरण और यह करें तो सद्भाव?

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