राजनैतिकशिक्षा

राम के नाम पर ‘सौदा’!

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

यह प्रभु श्रीराम की आस्था का सवाल नहीं है। उनकी दैविकता और मर्यादा पुरुषोत्तम वाली छवि पर कोई छींटे नहीं गिरे हैं। आस्था, भक्ति और निष्ठा यथावत है। फिजूल में मुद्दा मत बनाएं और उसे सियासत से न जोड़ें। दुष्प्रचार करने की भी जरूरत नहीं है। अयोध्या में राम जन्मभूमि तीर्थ-क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने जो ट्रस्ट बनाया था, वह लौकिक और जवाबदेह है। उसके सदस्य श्रीराम के प्रतीक नहीं हैं, लेकिन जमीन के एक सौदे को लेकर कुछ सवाल उठे हैं। कांग्रेस तो सुप्रीम अदालत जाने पर आमादा है। वह स्वतंत्र है। जमीन-सौदे पर न्यायिक निर्णय अनिवार्य है। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह और सपा नेता पवन पांडेय की राम जन्मभूमि और भव्य मंदिर निर्माण में कोई भूमिका नहीं है। वे अयोध्या के निवासी भी नहीं हैं। उन्होंने भूमि-सौदे के जरिए भ्रष्टाचार और घोटाले के बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं, लिहाजा उन्हें संबोधित किया जाना चाहिए। बेशक सियासी बयान और आरोपों को अंतिम कथन नहीं माना जा सकता।

गौरतलब यह भी है कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ-क्षेत्र के सम्यक निर्माण और विकास के लिए अब 108 एकड़ भूमि की जरूरत है। इसमें से 70 एकड़ जमीन भारत सरकार दे चुकी है। मंदिर परिसर के आसपास के गांवों की जमीनें खरीदी जा रही हैं। उप्र सरकार भी जमीनों का अधिग्रहण कर रही है। जमीनों के मुआवजे में गहरे अंतर हैं। कहीं 75-80 लाख रुपए की कीमत है, तो कोई जमीन 8-10 लाख रुपए प्रति एकड़ में खरीदी जा रही है। राज्य सरकार हरेक हथकंडे भी अपना रही है। जिन परिवारों में सरकारी कर्मचारी हैं, उन्हें जमीन के सौदे के लिए बाध्य किया जा रहा है। उन्हें नौकरी से बर्खास्त करने की धमकियां भी दी जा रही हैं। ऐसे कई सवाल और शोषण हैं, जिनके जवाब ट्रस्ट को ही देने हैं। इन सवालों को प्रभु श्रीराम के महात्म्य और आध्यात्मिक स्वीकृति से नहीं जोड़ा जा सकता। चूंकि विवादित भूखंड राम मंदिर परिसर से 300 मीटर की दूरी पर ही है, अयोध्या का रेलवे स्टेशन भी पास में ही है। जमीन बेशकीमती है और वहां अमरूद का बागीचा रहा है। अब कुसुम-हरीश पाठक ने वह जमीन दो करोड़ रुपए में बेची और उसके कुछ मिनटों के बाद राम मंदिर ट्रस्ट ने उसे 18.5 करोड़ रुपए में खरीद लिया। यकीनन यह दो पक्षों का सौदा है, जो रजिस्ट्रार के सामने रजिस्टर हुआ। उसमें कोई सरकार अथवा सरकारी अधिकारी संलिप्त नहीं था। भुगतान आरटीजीएस के जरिए किया गया। स्टांप ड्यूटी भी दी गई। रजिस्ट्रार कार्यालय ने आयकर विभाग को खुलासा कर दिया है। सर्किल रेट के हिसाब से ही आयकर तय होगा। तो इसमें घोटाला कैसे माना जा सकता है?

जमीन खरीद-बेच निजी मामला है, जिस पर टैक्स देना ही पड़ता है। सवाल ट्रस्ट के सदस्यों और महासचिव चंपत राय से किया जा सकता है, क्योंकि राम मंदिर और आसपास परिसर को विकसित करने के लिए वे करोड़ों रुपए का लेन-देन कर रहे हैं। भगवान श्रीराम के नाम पर बनाए जा रहे तीर्थस्थल के लिए 12 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने 5458 करोड़ रुपए का दान दिया है। यह जनता की पूंजी है, लिहाजा ट्रस्ट जवाबदेह है। जमीन का सौदा कैसे हुआ, बैनामा 10 साल पुराना था अथवा 2019 में लिखा गया था, इन तमाम तकनीकियों के जवाब रजिस्ट्रार देंगे अथवा ट्रस्ट देगा। इसे देश की सबसे बड़ी आबादी के आराध्य की जन्मभूमि का मसला मत बनाइए। प्रभु राम तो सब कुछ देख ही रहे होंगे! महत्त्वपूर्ण यह होगा कि सर्वोच्च न्यायालय पूरे चंदे और खर्च का ऑडिट कराए और रपट को देश के सामने सार्वजनिक किया जाए। यह कांग्रेस की मांग भी है और हम भी इसके पक्षधर हैं, क्योंकि सर्वोच्च अदालत के हस्तक्षेप से ही अयोध्या विवाद सुलझा था। शीर्ष अदालत के आदेश पर ही प्रधानमंत्री ने ट्रस्ट गठित किया था। चूंकि सौदे से जुड़े पाठक परिवार, अंसारी और तिवारी अब उपलब्ध नहीं हैं। पाठक के घर पर ताला पड़ा है, लिहाजा संदेहास्पद तो कुछ है। सर्वोच्च अदालत का हस्तक्षेप या निगरानी में कोई कमेटी बनाना इसलिए भी अनिवार्य है, क्योंकि यह सब कुछ भगवान श्रीराम के नाम पर किया जा रहा है। आराध्य को बदनाम कैसे होने दे सकते हैं?

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