राजनैतिकशिक्षा

राजनीति की पिच पर कभी सफल खिलाड़ी नहीं साबित हुए राकेश टिकैत

-संजय सक्सेना-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का अगला कदम क्या होगा, इसको लेकर तमाम अटकलें चल रही हैं। खासकर टिकैत के राजनीतिक रुख को लेकर लोग कुछ ज्यादा ही परेशान हैं। लेकिन टिकैत की तरफ से अभी तक कुछ स्पष्ट नहीं किया गया है। उनकी बातों से यही लग रहा है कि वह राजनीति से दूरी बनाकर रखेंगे। इसका कारण भी है। राकेश टिकैत ने बड़ा आंदोलन चलाकर जो अपनी छवि बनाई है वह उसे खराब होता देखना शायद ही पसंद करें। राजनीति में कदम रखते हैं तो उनके ऊपर कई तरह के आरोप लगने लगेंगे। वैसे भी टिकैत राजनीति के मैदान में कभी सफल खिलाड़ी नहीं साबित हुए हैं। टिकैत ने पहली बार 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाई थी। उस समय प्रदेश में बसपा की हुकूमत थी। टिकैत ने मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था। हालांकि, उन्हें जीत नसीब नहीं हुई थी। इस हार के बाद राकेश टिकैत ने साल 2014 में राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर अमरोहा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। लेकिन, इस चुनाव में भी टिकैत को हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में टिकैत को केवल 9,359 वोट मिले थे।

बात 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव की कि जाए तो उस चुनाव में भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष चैधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने कांग्रेस का हाथ थामा था। भारतीय किसान यूनियन की राजनीतिक पार्टी बहुजन किसान दल ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में जाने का फैसला किया था। उस समय कांग्रेस ने फैसला लिया था कि राकेश टिकैत के खिलाफ पार्टी अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारेगी। वहीं, बहुजन किसान दल ने भी कांग्रेस के पक्ष में पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर अपने प्रत्याशी वापस लेने की बात कही थी। फिर भी टिकैत बुरी तरह से चुनाव हार गए थे। राजनीति के इन्हीं कड़वे अनुभवों की वजह से राकेश टिकैत दोबारा से चुनावी राजनीति में कदम नहीं रखना चाहते हैं।

बात आगे की कि जाए तो कई मौकों पर यह भी देखने को मिला है कि राकेश टिकैत ने किसी चुनाव में जिस प्रत्याशी का समर्थन किया वह जीत हासिल नहीं कर सका। यहां पर हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनावों की भी बात करना जरूरी है। यह चुनाव उस समय हुए थे जब किसान आंदोलन उभार पर था और राकेश टिकैत इसकी मुखर आवाज बने हुए थे। ऐसा लग रहा था कि किसानों के बीच प्रदेश में भाजपा विरोधी लहर चल रही है, जिसके चलते यह उम्मीद जताई जा रही थी कि पंचायत चुनाव में कम से कम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो भाजपा को करारी हार का सामना करना ही पड़ेगा, लेकिन नतीजे भाजपा के पक्ष में आए। 2016 में हुए पंचायत चुनाव के मुकाबले बीजेपी ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया था। वहीं समाजवादी पार्टी सहित अन्य दलों के खाते में काफी कम सीटें आई थीं।

बहरहाल, हो सकता है कि किसान आंदोलन खत्म नहीं हुआ होता तो राकेश टिकैत खुद या अपने किसी करीबी को विधानसभा चुनाव लड़ा देते या फिर किसी दल का समर्थन करते, लेकिन आंदोलन खत्म हो गया है। केंद्र सरकार ने किसानों की बातें मान ली हैं, इसलिए किसानों की मोदी सरकार से नाराजगी काफी कम हो चुकी है। इसके अलावा भी मोदी-योगी सरकार द्वारा किसानों के लिए जो कुछ किया जा रहा है वह किसी से छुपा नहीं है। एक बात और ध्यान देने वाली है कि राकेश टिकैत ने आंदोलन के सहारे जो अपनी संघर्ष वाली इमेज बनाई है, वह इमेज उनके किसी दल से चुनाव लड़ने से टूट सकती है। फिर वह आगे कभी कोई आंदोलन भी नहीं चला पाएंगे। वैसे भी टिकैत पर कांग्रेस और सपा समर्थक तथा भाजपा विरोधी होने का आरोप लग रहा है। अपनी छवि को लेकर टिकैत इतना अलर्ट हैं कि उन्हें जब पता चला कि कुछ लोग उनकी फोटो का अपने बैनर पोस्टर में इस्तेमाल कर रहे हैं तो उन्होंने साफ कह दिया कि उनकी फोटो या उनकी यूनियन अथवा किसान आंदोलन के सहारे कोई अपना ‘खेत जोतने’ की कोशिश ना करें। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चुनाव लड़ने के प्रस्ताव को भी राकेश टिकैत ने ठुकरा दिया है। राकेश टिकैत अगर अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में तटस्थ रहते हैं तो इसका भाजपा को बड़ा फायदा मिल सकता है। वहीं सपा-रालोद के गठबंधन के लिए यह शुभ संकेत नहीं होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *