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वीरता पदक देने की वर्तमान व्यवस्था को ‘मनमाना’ घोषित करने का अनुरोध करने वाली याचिका वापस ली गई

नई दिल्ली, 08 सितंबर (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। दिल्ली उच्च न्यायालय में दाखिल वह याचिका बुधवार को वापस ले ली गई जिसमें सशस्त्र बलों के जवानों को वीरता पदक देने की वर्तमान व्यवस्था को मनमाना और निष्पक्षता के सिद्धांत के विरुद्ध घोषित करने का अनुरोध किया गया था।

याचिकाकर्ता ने इसे वापस लेने का निर्णय तब लिया जब पीठ में यह संकेत दिए कि अपारदर्शी चयन प्रक्रिया का आरोप लगाने वाली याचिका को वह खारिज कर सकती है और उस पर भारी जुर्मान भी लगा सकती है।

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेन और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा,’’ बहस आगे बढ़ने पर याचिकाकर्ता बिना किसी शर्त याचिका वापस लेना चाहता है। इस प्रकार याचिका का निपटारा किया जाता है।’’

पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील को उदाहरण के तौर पर उन व्यक्तियों के नाम बताने को कहा जिन्हें ये पुरस्कार प्रदान किए गए और वह उसके हकदार नहीं थे। पीठ ने यह भी कहा कि आरोप लगाना सबसे आसान है।

याचिका एक सेवानिवृत्त रक्षा कर्मी ने दायर की थी। इसमें कहा गया था कि उदाहरण हैं ,जहां वीरता के ऐसे कारनामें हैं जिन्हें उच्च मान्यता मिलनी चाहिए थी, लेकिन व्यवस्था में उनकी अनदेखी हुई है।

याचिकाकर्ता के वकील एस एम विवेकानंद ने अपनी दलील में कहा कि ऐसे लोग जो यह तय करते हैं कि वीरता पुरस्कार किए मिलने चाहिए,वे जमीनी हकीकत से अनजान हैं।

याचिका में कहा गया कि वीरता पुरस्कार आमतौर पर शांति या युद्ध के दौरान सशस्त्र बलों के कर्मियों द्वारा किए गए वीरता के विशिष्ट कार्यों के लिए दिए जाते हैं। इसमें कहा गया है कि इन सभी वीरता पदकों को भारत के राष्ट्रपति के कार्यालय द्वारा समय-समय पर जारी विभिन्न अधिसूचनाओं के माध्यम से विनियमित किया जाता है जिसमें इसके रूप, चयन मानदंड और पुरस्कार विजेताओं को दिए जाने वाले लाभ तय होते हैं।

याचिका में अनुरोध किया गया था कि कामकाज में पारदर्शिता के आभाव में मौजूदा व्यवस्था को मनमाना और असंवैधानिक घोषित किया जाए।

 

 

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