राजनैतिकशिक्षा

नरसिंह राव का सम्मान नहीं करके कांग्रेस ने खुद के एहसान फरामोश होने का परिचय दिया

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

भारत के प्रधानमंत्री रहे पामुलपर्ती वेंकट नरसिंहरावजी का इस 28 जून को सौवां जन्मदिन था। नरसिंहरावजी जब से आंध्र छोड़कर दिल्ली आए, हर 28 जून को हम दोनों का भोजन साथ-साथ होता था। पहले शाहजहां रोड़ वाले फ्लेट में और फिर 9, मोतीलाल नेहरु मार्ग वाले बंगले में। प्रधानमंत्री बनने के पहले वे विदेश मंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री और मानव संसाधन मंत्री रह चुके थे। 1991 में जब वे प्रधानमंत्री बने तो हमारे तीन पड़ौसी देशों के प्रधानमंत्रियों ने मुझसे पूछा कि क्या राव साहब इस पद को ठीक से सम्हाल पाएंगे ? उन्होंने अगले पांच साल न केवल अपनी अल्पमत की सरकार को सफलतापूर्वक चलाया बल्कि उनके कामकाज से उनकी गणना देश के चार एतिहासिक प्रधानमंत्रियों- नेहरु, इंदिरा गांधी, नरसिंहराव और अटलजी- के रूप में होती है।

राव साहब के जन्म का यह सौवां साल है। कई अन्य प्रधानमंत्रियों का भी सौंवा साल आया और चला गया। उनके सौवें जन्मदिन पर हैदराबाद में उनकी 26 फुट ऊंची प्रतिमा का उद्घाटन जरूर हुआ लेकिन वह किसने आयोजित किया ? किसी कांग्रेसी ने नहीं, किसी राष्ट्रवादी भाजपाई ने नहीं, बल्कि तेलंगाना (पूर्व आंध्र) के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने। क्या नरसिंहराव सिर्फ एक प्रांत के नेता थे ? वर्तमान कांग्रेस किस कदर एहसान फरामोश निकली है ? मुझे उससे ज्यादा उम्मीद इसलिए भी नहीं थी कि जिस दिन राव साहब का निधन हुआ (23 दिसंबर 2004), प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने खुद मुझे फोन किया और कहा कि आप कांग्रेस कार्यालय पर पहुंचिए। वहीं उन्हें लाया जा रहा है। उस समय सुबह के साढ़े दस ग्यारह बजे होंगे। राव साहब का शव बाहर रखा हुआ था और सोनियाजी और मनमोहन सिंह जी के अलावा मुश्किल से 8-10 कांग्रेसी नेता वहां खड़े हुए थे। किसी के चेहरे पर कोई भाव नहीं था। सिर्फ मैंने उनके चरण-स्पर्श किए। शेष लोगों ने उन्हें खड़े-खड़े चुपचाप विदाई दे दी।

मैंने सोचा कि राजघाट के आस-पास अंत्येष्टि के लिए कोई स्थल तैयार कर लिया गया होगा लेकिन उसी समय शव को हवाई अड्डे ले जाया गया। हैदराबाद में हुई उनकी लापरवाह अंत्येष्टि की खबर जो दूसरे दिन अखबारों में पढ़ी तो मन बहुत दुखी हुआ लेकिन 2015 में यह जानकर अच्छा लगा कि राजघाट के पास शांति-स्थल पर भाजपा सरकार ने उनका स्मारक बना दिया है। कांग्रेस के नेता चाहते तो 28 जून को उनकी 100वीं जन्म-तिथि पर कोई बड़ा आयोजन तो करते। जो आजकल कांग्रेस के नेता बने हुए हैं, यदि प्रधानमंत्री नरसिंह राव की दरियादिली नहीं होती तो वे तब जेल भी जा सकते थे और देश छोड़कर भी भाग सकते थे। राव साहब ने अपने दो वरिष्ठ मंत्रियों को सलाह को दरकिनार करते हुए मेरे सामने ही राजीव गांधी फाउंडेशन को 100 करोड़ रु. देने का निर्णय किया था। उनकी स्मृति में भाजपा कुछ करती तो कांग्रेसी आरोप लगा देते कि बाबरी मस्जिद को गिरवाने में भाजपा और राव साहब की मिलीभगत थी लेकिन 6 दिसंबर 1992 की उस घटना के बारे में ऐसा आरोप लगा देना घनघोर अज्ञान और दुराशय का परिचय देना है। ज्यों-ज्यों दिन बीतते जाएंगे, लोगों को पता चलेगा कि भारत की अर्थ-नीति और विदेश नीति को समयानुकूल नई दिशा देने में नरसिंहरावजी का कैसा अप्रतिम योगदान था।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *