राजनैतिकशिक्षा

मजबूर है मजदूर पलायन के लिए, फिर दोहराया जा रहा है 2020 का मंजर

-अशोक भाटिया-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

महाराष्ट्र में नाइट कर्फ्यू के ऐलान के बाद से ही प्रवासी मजदूरों में एक और सम्पूर्ण लॉकडाउन को लेकर डर फैल गया है। इसी के मद्देनजर यूपी, बिहार बंगाल के अलावा अब नेपाली मजदूर भी घरों को लौटने लगे हैं। मुंबई के सभी रेलवे स्टेशनों पर प्रवासियों की भीड़ बढ़ने लगी हैं और ट्रेन के टिकट के लिए लंबी लाइनें देखी जा रही हैं। इसके मद्देनजर प्लेटफॉर्म टिकट के दाम भी बढ़ा दिए गए हैं लेकिन रेलवे स्टेशनों के बाहर मजदूरों की भीड़ लगातार बनी हुई है। रेस्टोरेंट और होटल में अब बैठकर खाने की इजाजत नहीं है। जिसके बाद तमाम होटल और रेस्टोरेंट में काम करने वाले मजदूर भी अब अपने घर की ओर निकल पड़े हैं।बता दें कि वापस लौट रहे प्रवासी मजदूरों में होटल और रेस्टोरेंट में काम करने वाले नेपाली मजदूर भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। पिछली बार लगे लॉकडाउन में ये मजदूर मजबूर होकर ट्रकों से अपने अपने गांव की ओर निकले थे, इसलिए इस बार सतर्कता बरतते हुए ये पहले ही ट्रेन और सड़क मार्ग से अपने गांव की तरफ चल पड़े हैं। ठाणे से ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं जहां पर नेपाली मजदूर शेयरिंग गाड़ियों से महाराष्ट्र-गुजरात बॉर्डर तक यात्रा करने के लिए जमा हो रहे हैं, हालांकि इन्हें पता नहीं कि गुजरात जाने के बाद आगे इन्हें यातायात के साधन मिलेंगे या नहीं। लेकिन फिलहाल यहां से पलायन करना ही एकमात्र उपाय इन्हें नजर आ रहा है। बता दें कि भिवंडी और ठाणे में हालात ज्यादा खराब हैं। ज्यादातर कंपनियों ने भी लॉकडाउन के डर से कर्मचारियों को निकालना शुरू कर दिया है।
मिल रही जानकारी के मुताबिक मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनस स्टेशन पर नाइट कर्फ्यू के ऐलान के बाद से ही लगातार मजदूरों की कतारें नजर आ रहीं हैं। यहां प्लेटफॉर्म टिकट मिलना बंद हो गया है और बिना रिजर्व टिकट के एंट्री नहीं मिल रही है. ऐसे में लोग स्टेशन के बाहर ही बैठे हैं और रिजर्व टिकट की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। कई मजदूर और कर्मचारी ऐसे हैं जिनकी नौकरियां जा चुकी हैं और घर लौटने के अलावा उनके पास फिलहाल कोई और चारा नहीं है। जानकारों की माने तो पावरलूम इंडस्ट्री और उससे जुड़े साइजिंग, डाइंग कंपनियों के अलावा मोती कारखाना एवं गोदामों के कामकाज, कंस्ट्रक्शन के काम से जुड़े मजदूर बड़ी संख्या में लौट रहे हैं।आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में मुंबई समेत पूरे राज्य से 11.86 लाख प्रवासी मजदूरों का पलायन हुआ था। इन मजदूरों में यूपी, बिहार के अलावा मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड के मजदूर भी शामिल हैं. मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी शिवाजी सुतार के अनुसार, केवल रिजर्व टिकट वालों को ही स्टेशन परिसर में आने और ट्रेनों में यात्रा की अनुमति है। प्लेटफॉर्म पर भीड़ न हों, इसके लिए प्लेटफॉर्म टिकट की कीमत 50 रुपए कर दी गई है।
देश के कई प्रदेशों में नाइट कर्फ्यू व सम्पूर्ण लॉकडाउन लगाए जाने के बाद लोग फिर खौफजदा हो चुके हैं। बच्चों की परीक्षाएं नजदीक हैं, लोग बच्चों को जोखिम में नहीं डालना चाहते। अब सवाल यह है कि क्या ‘नाइट कर्फ्यू’ कोरोना संक्रमण पर काबू पाने के लिए कारगर कदम है। सोशल मीडिया पर एक सवाल उठ रहा है। ‘‘भीड़ तो दिन में होती है तो क्या कोरोना रात में ही आता है।’’ केवल यह मान लेना कि लोग रात को निकल कर होटल, रेस्त्राओं या बार आदि में पार्टी करते हैं तो ऐसी जगहों पर सतर्कता एवं सख्ती बढ़ाने की जरूरत है। फुल लॉकडाउन के कारण आर्थिक व्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा, क्योंकि अभी तक तो लोग सम्भल ही नहीं पाए हैं, परन्तु जान है तो जहान है।
कोरोना संक्रमण बेलगाम इसलिए हुआ क्योंकि ट्रेनों, बसों, सब्जी मंडियों, साप्ताहिक बाजारों आदि में लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग को छोड़ दिया और न ही मास्क का इस्तेमाल करते हैं। जिन्होंने मास्क पहन रखा है, वह भी महज दिखावे के लिए। उनके मास्क नाक के नीचे लटकते नजर आते हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने कोरोना मामलों में अचानक वृद्धि की वजह बड़ी-बड़ी शादियों, स्थानीय निकाय चुनाव, बड़े प्रदर्शनों के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन ना करना शामिल है। पिछले वर्ष तो हमारे पास वैक्सीन भी नहीं थी और सभी नियमों का पालन करने के कारण केस कम हो गए थे। अब तो देश में एक दिन में 70 लाख लोगों को टीका लगाने की उपलब्धियां हासिल की जा चुकी हैं। फिर भी अगर संक्रमण बढ़ रहा है तो इसके पीछे कहीं न कहीं हमारी लापरवाही बड़ी वजह है और महामारी से जंग में यही सबसे बड़ी बाधा बन गई है। चुनावी राज्यों में तो स्थिति गम्भीर है।
अब नवरात्र पर्व पर्व आ रहा है। बीते वर्ष हमने देखा था कि नवरात्र-दीवाली आदि के बाद संक्रमण में तेजी आई थी। सतर्कता के साथ पर्व मनाना हमारी सामाजिक जिम्मेदारी भी है। समाज में वर्गभेद की दीवारों को तोड़ने वाले पर्वों को हमें सतर्कता की दीवारों के बीच मनाना होगा, जो समय की मांग है। यदि हमने लापरवाही बरती तो कोरोना का नया वैरियर पिछले वर्ष के मुकाबले कई गुना तेजी से फैल सकता है। नवरात्र में लोग व्रत रखते है यानी बेहतरी के लिए त्याग करते हैं। अच्छा यही होगा कि हम इस राष्ट्र के लिए त्याग करें और घर के भीतर रहकर आराधना करें। उन इलाकों में जाने से बचें जहां कोरोना तेजी से फैल रहा है। अगर हम कोविड-19 के नियमो का पालन करते हैं तो ही हम व्यवस्था पर सवाल उठाने के अधिकारी हैं। यदि हम खुद ही अपना बचाव नहीं कर रहे तो फिर व्यवस्था पर सवाल उठाना उचित नहीं। अगर केस बढ़े तो एक बार फिर अस्पतालों में बेड की कमी पड़ जाएगी। स्थिति काफी चिंताजनक है, इसलिए अभी लोगों को संयम से काम लेना होगा। महामारी को रोकने के लिए सरकार के साथ जनता की भागीदारी की जरूरत है। यदि जनता सरकारी नियमों का कड़ाई से पालन करती तो दोबारा नाइट कर्फ्यू व सम्पूर्ण लॉकडाउन की नौबत नहीं आती और हम और मजदूर सुखी जीवन जी रहे होते।

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