अहम मोर्चे पर आंदोलन
-सिद्धार्थ शंकर-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
किसान आंदोलन के 64वें दिन गाजीपुर बॉर्डर पर जमकर एक्शन हुआ। शाम 4 बजे तक भारी पुलिस बल की तैनाती और यूपी सरकार के धरना खत्म करवाने के आदेश के बाद माहौल ऐसा बन गया था कि किसानों को घर भेज दिया जाएगा। लेकिन, आधी रात को पुलिस को लौटना पड़ा। क्योंकि, किसानों ने आंदोलन तेज करने की तैयारी शुरू कर दी है। वैसे कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों का आंदोलन फिलहाल बिखरा हुआ है। कुछेक संगठनों ने जहां आंदोलन से अपने कदम पीछे खींच लिए हैं, तो वहीं कई किसान अभी भी दिल्ली बॉर्डर समेत अन्य टोल बैरियरों व धरना स्थलों पर महिलाओं, बच्चों समेत डटे हुए हैं। ऐसे में किसानों के इस आंदोलन को दबाव के साथ दबाने की तैयारी अब शुरू हो गई है। मगर किसान आंदोलन की अगली पारी के लिए रणनीति बनाने की बात कर रहे हैं। गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर परेड रैली की आड़ में असामाजिक तत्वों ने दिल्ली में जो उत्पात मचाया, उसके बाद केंद्र के साथ-साथ हरियाणा सरकार भी पूरी तरह से सतर्क है। मौजूदा स्थिति देखें तो पानीपत में जहां दोनों टोल बैरियरों से धरने खत्म करवा दिए गए हैं, तो वहीं करनाल में प्रदर्शन स्थगित करने के एक दिन बाद ही किसानों ने फिर से दोनों टोल बैरियरों पर धरना जमा दिया है। कैथल में किसान किसी कीमत पर पीछे हटने को तैयार नहीं है। कैथल में किसानों ने वीरवार को उस युवा किसान के शव की यात्रा भी इलाके में निकाली, जिसकी मौत दिल्ली आंदोलन से लौटते वक्त सड़क हादसे में हो गई थी। यमुनानगर और कुरुक्षेत्र में भी किसान आंदोलन से पीछे नहीं हट रहे हैं। जबकि अंबाला में भी किसानों ने शंभू टोल बैरियर को खाली नहीं किया है।
हालांकि, गणतंत्र दिवस पर हिंसा ने किसान आंदोलन की जमीन कमजोर कर दी है। सरकार को इसी बहाने आंदोलन खत्म कराने का बड़ा बहाना हाथ लग गया है। आंदोलन के प्रति सहानुभूति कम होने के बावजूद सरकार बहुत संभल कर आगे बढ़ रही है। सरकार की योजना चरणबद्ध तरीके से आंदोलन को खत्म कराने की है। इस रणनीति के तहत सरकार पहले उत्तर प्रदेश और इसके बाद हरियाणा में आंदोलनकारी किसानों को घर वापस भेजने की तैयारी में लगी है, जबकि किसान संगठन नए सिरे से लोगों की सहानुभूति हासिल करने में जुटे हैं। दरअसल, किसान आंदोलन को परिपक्व और कद्दावर नेतृत्व की कमी का खामियाजा भुगतना पड़ा है। आंदोलन में मुख्य रूप से शामिल चालीस किसान संगठनों में से किसी भी किसान नेता का कद बहुत बड़ा नहीं है। इनमें से एक भी किसान नेता ऐसे नहीं थे जो सर्व स्वीकार्य हों। इन किसान संगठनों का प्रभाव क्षेत्र एक क्षेत्र विशेष तक सीमित था। सर्वमान्य और कद्दावर चेहरे के अभाव के कारण किसान संगठन गणतंत्र दिवस पर आयोजित ट्रैक्टर रैली के संदर्भ में पूर्व तैयारी नहीं कर पाए। वह भी तब जब इन्हें पता था कि इसी रैली पर किसान आंदोलन का भविष्य टिका होगा। इसी नेतृत्व की कमी के कारण ट्रैक्टर रैली को किसान नेता अनुशासित नहीं रख पाए। खासतौर पर लालकिला के प्राचीर पर धर्मविशेष का झंडा लहराना इस आंदोलन पर बेहद भारी पड़ा है। इस घटना के बाद उपजे आक्रोश के कारण आंदोलन स्थल से बड़ी संख्या में किसान वापस लौट रहे हैं। इसी घटना ने किसान संगठनों को दबाव में ला दिया है। अब आंदोलनरत किसान संगठनों का राष्ट्रीय किसान मोर्चा खोई सहानुभूति को फिर से हासिल करने के लिए परेशान है। आंदोलन स्थल से बड़ी संख्या में किसान वापस लौट रहे हैं। फिर से सहानुभूति हासिल करने के लिए आंदोलनरत किसान संगठन उपवास करने के अलावा एक फरवरी को प्रस्तावित संसद मार्च को वापस लेने की घोषणा की है। किसान संगठन अपनी ओर से आंदोलन स्थल पर किसानों की लामबंदी को पहले की तरह कायम रखने की कोशिशों में जुटे हैं। सरकार की रणनीति एकाएक आंदोलन को खत्म कराने की जगह आंदोलन खत्म करने के लिए धीरे-धीरे दबाव बनाने की है। इस रणनीति के तहत सरकार की योजना पहले यूपी-दिल्ली सीमा से किसानों को हटाने की है। हरियाणा से जुड़ी सीमा पर भी किसान संगठनों पर स्थानीय लोगों के विरोध के कारण दबाव की स्थिति है। सरकार हर हाल में संदेश देना चाहती है कि वह किसान विरोधी नहीं है। हालांकि सरकार का सारा जोर दिल्ली से लगी सीमा पर पहले जैसी भीड़ फिर से कायम होने देने की नहीं है। सरकार चाहती है कि हिंसा और स्थानीय लोगों के दबाव से किसान संगठनों का हौसला कम हो।