राजनैतिकशिक्षा

वैक्सीन की नई रणनीति जरूरी

-डा. जयंतीलाल भंडारी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

हाल ही में 30 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी पर सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार राष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीनेशन अभियान पर विचार करे। सभी लोगों को मुफ्त कोरोना वैक्सीनेशन की सुविधा दी जानी चाहिए। कोर्ट ने साफ कहा कि वैक्सीन निर्माता कंपनी पर नहीं छोड़ा जा सकता कि वह किस राज्य को कितनी वैक्सीन उपलब्ध करवाए। यह केंद्र के नियंत्रण में होना चाहिए। ऐसे में निश्चित रूप से केंद्र सरकार के द्वारा एक ओर कोरोना वैक्सीन की सभी लोगों तक न्यायसंगत रूप से पहुंच सुनिश्चित की जानी होगी, वहीं कोरोना वैक्सीन उत्पादन में वैश्विक सहयोग और अधिकतम उत्पादन क्षमता की नई रणनीति से कोरोना वैक्सीन के वैश्विक हब बनने की संभावनाओं को मुठ्ठियों में लेना होगा। गौरतलब है कि 26 अप्रैल को अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच टेलीफोन वार्ता में जो बाइडेन ने कहा कि अमरीका भारत के लिए कोरोना वैक्सीन के उत्पादन से संबंधित आवश्यक कच्चे माल की आपूर्ति पर लगी रोक को हटाते हुए इसकी सरल आपूर्ति सुनिश्चित करेगा।

बाइडेन ने यह भी कहा कि जिस तरह कोरोना महामारी की शुरुआत में भारत ने अमरीका को मदद भेजी थी, उसी तरह अब अमरीका भी भारत की मदद के लिए कटिबद्ध है। ऐसे में भारत के लिए अमरीका की नई मदद भारत को कोरोना वैक्सीन निर्माण के नए मुकाम की ओर तेजी से आगे बढ़ाएगी। इतना ही नहीं, दुनिया के शक्तिशाली संगठन क्वाड ग्रुप के चार देशों अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के द्वारा भारत में वर्ष 2022 के अंत तक कोरोना वैक्सीन के सौ करोड़ डोज निर्मित कराने और इस कार्य में भारत को वित्तीय व अन्य संसाधन जुटाकर सहयोग करने का जो निर्णय लिया है, इससे भी भारत के दुनिया की कोरोना वैक्सीन महाशक्ति के रूप में उभरने में मदद मिलेगी । यह भी महत्त्वपूर्ण है कि देश में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्रोजेनेका के साथ मिलकर बनाई गई सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की ‘कोविशील्ड’ तथा स्वदेश में विकसित भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सीन’ को दुनियाभर में सबसे प्रभावी वैक्सीन के रूप स्वीकार किया जा रहा है। इन दोनों वैक्सीनों का उपयोग 16 जनवरी से शुरू हुए देशव्यापी टीकाकरण अभियान में किया जा रहा है। देश में 30 अप्रैल तक कोरोना वैक्सीन की 15 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी है।

स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि भारत कोरोना वैक्सीन का भी वैश्विक स्तर पर बड़ा सप्लायर बनने की तैयारी कर रहा है। इस दिशा में नीतिगत स्तर पर 15 अप्रैल को सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशंस (सीडीएससीओ) की तरफ से कई अहम फैसले लिए गए हैं। वैक्सीन उत्पादन से जुड़े कच्चे माल का आयात करके बड़ी मात्रा में कोरोना वैक्सीन का निर्यात भी किया जा सकेगा। अब शीघ्र ही विदेशी कंपनियां भारत में अपनी सब्सिडियरी या फिर अपने अधिकृत एजेंट के माध्यम से वैक्सीन का उत्पादन कर सकेंगी। ज्ञातव्य है कि हैदराबाद की प्रमुख दवा कंपनी डा. रेड्डी लैबोरेटरीज (डीआरएल) कोविड-19 के लिए रूस में तैयार टीका स्पूतनिक वी के लिए भारतीय साझेदार है। शुरुआत में स्पूतनिक वी का आयात किया जाएगा और इस वैक्सीन की पहली खेप एक मई को प्राप्त हुई है। कुछ समय बाद स्तूपनिक वी का 60 से 70 फीसदी वैश्विक उत्पादन भारत में होगा। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने कोरोना टीका के उत्पादन व वितरण की जो रणनीति बनाई है, उसके तहत राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपनी उपयुक्तता के अनुरूप कोरोना टीका उत्पादक देशी या विदेशी कंपनियों से टीके की खरीदी तथा अपने प्रदेश में टीका लगाने संबंधी उपयुक्त निर्णय ले सकेंगी। राज्यों के लिए जहां कोविशील्ड बना रही सीरम इंस्टीट्यूट ने कोरोना वैक्सीन की कीमत कम करके प्रति डोज 400 रुपए की जगह 300 रुपए की है, वहीं भारत बायोटेक ने भी कोरोना वैक्सीन की कीमत 600 रुपए प्रति डोज से घटाकर 400 रुपए कर दी है।

ज्ञातव्य है कि देश में सरकार के समर्थन से दुनिया की सबसे बड़ी टीका विनिर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया अपनी मासिक उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 20 करोड़ खुराक कर सकती है। भारत बायोटेक सालाना 70 करोड़ खुराक की उत्पादन क्षमता तथा जाइडस कैडिला सालाना उत्पादन क्षमता 24 करोड़ खुराक करने की डगर पर आगे बढ़ सकती है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि सरकार ने कोरोना टीकाकरण में अहम भूमिका निभाने वाली दो भारतीय टीका निर्माता कंपनियों सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक को क्रमशः 3000 करोड़ रुपए और 1500 करोड़ रुपए की अग्रिम राशि दी जानी सुनिश्चित की है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत पीएलआई योजना के तहत अधिक कीमतों वाली दवाइयों के स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से 15000 करोड़ रुपए, दवाई बनाने के लिए कच्चे माल के स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए 6940 करोड़ रुपए की धनराशि सुनिश्चित की है। इससे कोरोना वैक्सीन उत्पादन को प्रोत्साहन मिलेगा। इसी तरह चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में रिसर्च और इनोवेशन को आगे बढ़ाने के लिए 50 हजार करोड़ रुपए तथा इसी वर्ष 2021 में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) का गठन किए जाने जैसे कदमों से भी कोरोना वैक्सीन शोध कार्य में भी प्रोत्साहन मिलेगा।

निःसंदेह भारत के द्वारा कोरोना वैक्सीन का बड़े पैमाने पर उत्पादन न केवल देश के लोगों की टीकाकरण जरूरत को बहुत कुछ पूरा कर सकेगा, वरन् भारत का यह अभियान दुनिया के गरीब और विकासशील देशों के करोड़ों लोगों को कोरोना टीकाकरण में सहयोग करके उन्हें कोरोना की पीड़ाओं से बचा सकेगा। विभिन्न रिपोर्टों में कहा गया है कि दुनिया के कुछ विकसित देश इस वर्ष 2021 के अंत तक कोरोना टीकाकरण के पूर्ण लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। भारत भी 2022 के अंत तक टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त करने के हरसंभव प्रयास करेगा। लेकिन दुनिया के अधिकांश गरीब व विकासशील देशों के लिए टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त करने में लंबा समय लगेगा। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि यदि सभी गरीब और विकासशील देशों की पहुंच वैक्सीन तक संभव नहीं हो सकी, तो विश्व मानवता और विश्व अर्थव्यवस्था को नुकसान उठाना पड़ेगा। यदि गरीब और मध्यम आय वर्ग वाले देशों को वैक्सीन नहीं मिली तो दुनिया के करोड़ों लोगों को कोरोना की पीड़ाओं से बचाना और वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना कठिन होगा, क्योंकि कोरोना नए-नए रूप में लोगों की जान लेता रहेगा और बार-बार वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। ऐसे में हम उम्मीद करें कि केंद्र सरकार एक ओर कोरोना वैक्सीन की नई रणनीति के तहत देशभर में दिखाई दे रही वैक्सीन के वितरण संबंधी तात्कालिक मुश्किलों को दूर करेगी, वहीं दूसरी ओर कोरोना वैक्सीन का उत्पादन अधिकतम क्षमता से करके देश व दुनिया के गरीब और विकासशील देशों के लोगों के लिए कोरोना वैक्सीकरण में भारत की कल्याणकारी भूमिका सुनिश्चित करेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *