राजनैतिकशिक्षा

कोरोना काल-सोशल मीडिया पर छाए अनेक अनुत्तरित प्रश्न

-तनवीर जाफरी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

दुनिया के कई देश हालांकि कोरोना की दूसरी व तीसरी लहर की चपेट में हैं परन्तु भारत में जिस तरह कोरोना की दूसरी लहर ने राष्ट्रीय आपदा का विकराल रूप धारण कर लिया है और ऑक्सीजन,अस्पताल,बेड,दवाइयों आदि की कमी के चलते देश में चारों ओर जो अफरा तफरी व चीख पुकार का माहौल नजर आ रहा है साथ साथ राजनीतिज्ञों द्वारा इस विकराल समस्या का मिलजुलकर समाधान करने के बजाए एक दूसरे पर आरोप मढ़ने तथा ‘आपदा में अवसर’ तलाशते हुए इस ऐतिहासिक दुर्व्यवस्था के बावजूद अपनी पीठ थपथपाने का भी काम किया जा रहा है उससे साफ जाहिर होता है कि देश की सरकारें व शासन व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। जिस तरह अनेक हॉस्पिटल्स ने कहीं ऑक्सीजन न होने तो कहीं बेड उपलब्ध न होने के बोर्ड लगा दिए हैं,और तो और सरकार द्वारा जिस प्रकार कोरोना के सक्रिय मरीजों से लेकर मृतक लोगों तक के आंकड़े छुपाए जाने लगे हैं इन हालात ने तो पूरे देश को ‘ईश्वर-अल्लाह’ के भरोसे पर ही अपनी सांसें गिनने मजबूर कर दिया है।
बहरहाल विकट आपदा की इस घड़ी में इसी कोरोना महामारी से जुड़े ऐसे कई छोटे-बड़े परन्तु महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जो अभी तक अनुत्तरित हैं और निश्चित रूप से देश की जनता इन प्रश्नों के उत्तर जानने को बेताब है। इनमें से शायद कुछ ही प्रश्न ऐसे हैं जिनपर ‘गुलाम मीडिया ‘ की नजर पड़ रही है अन्यथा इस तरह के प्रश्न सोशल मीडिया अथवा कुछ जिम्मेदार समाचारपत्रों के माध्यम से ही सार्वजनिक हो पा रहे हैं। इस तरह का पहला सवाल जो आए दिन किसी न किसी कथित विशेषज्ञ द्वारा यह उठाया जाता है कि कोरोना वास्तव में है भी या नहीं ? कहीं यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा रचा गया एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का दुष्चक्र तो नहीं ? जो सिर्फ दवाइयां व वैक्सीन बेचने के लिए रचा जा रहा हो ?ठीक उसी तरह जैसे विश्व व्यापर संगठन के दबाव में आकर दुनिया के देश अपने कानून बनाने के लिए मजबूर किये जाते हैं। भारत का नया विवादित कृषि कानून भी उसी दबाव का परिणाम बताया जा रहा है ? जिस तरह दुनिया के बड़े व आधुनिक शस्त्र निर्माता देश अन्य देशों को उकसाकर तथा स्वयं शीत युद्ध का वातावरण दिखा कर खुद तो ‘शीत गृह’ में समा जाते हैं और इनके द्वारा उकसाए व भड़काए गए देश इन्हीं से हथियार खरीद कर युद्ध छेड़ बैठते हैं ? हालाँकि कोरोना का वैश्विक दुष्प्रभाव स्वयं इस सवाल का जवाब है। परन्तु जब अंतर्राष्ट्रीय साजिश पर संदेह की बात हो तो कोरोना के प्रसार के लिए दुनिया द्वारा चीन को जिम्मेदार ठहराने घटना व कोशिशों से भी तो इंकार नहीं किया जा सकता ?
कोरोना से जुड़ा एक और बहुचर्चित प्रश्न मास्क को लेकर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मास्क लगाना और 2 गज की दूरी बनाकर रखना बेहद जरूरी है। कोरोना की दूसरी लहर के बाद तो डबल मास्क लगाने की भी सिफारिश की जाने लगी है। हद तो यह है कि विभिन्न राज्यों में मास्क न लगाने वालों पर 500 रूपये से लेकर दस हजार रूपये तक का जुर्माना किये जाने के भी नियम बना दिए गए हैं। परन्तु कई विशेषज्ञों का मानना है कि मास्क लगाने से शरीर में साँस द्वारा ली जाने वाली ऑक्सीजन बाधित होती है। छ95 और डबल मास्क से तो ना के बराबर साँस अंदर आती है। और जो साँस मास्क लगाने पर अंदर आती भी है वह शरीर से छोड़ी हुई कार्बन डाई ऑक्साइड को बड़ी मात्रा में वापस लाती है। यही वजह है कि मास्क धारण करने वाला लगभग प्रत्येक व्यक्ति भले ही कोरोना से बचाव या जुर्माने के भय से मास्क क्यों न लगाता हो परन्तु वह स्वयं को असहज जरूर महसूस करता है। कई लोगों के तो मास्क लगाने से बीमार पड़ने के भी समाचार मिले हैं। अब तो कुछ ऐसे वीडीओ भी सामने आने लगे हैं जिनमें मास्क में बारीक कीटाणु पनपे हुए देखे जा सकते हैं। और इसी से जुड़ा एक और बहुचर्चित व अनुत्तरित प्रश्न जो पूरा देश ही जानना चाहता है कि मास्क व 2 गज की दूरीऔर जुर्माना आदि क्या केवल आम लोगों के लिए है ?क्या राजनेता व चुनावी रणक्षेत्र कोरोना महामारी संबंधी नियमों से अलग हैं ? इन्हें कोरोना महामारी नियम व अधिनियम की पालना कराने का साहस क्यों नहीं किया जाता। लाठी खाना व चालान भुगतना आदि क्या केवल आमजनों की हिस्से में है ? कोरोना काल की शुरुआत में सरकार द्वारा ‘आरोग्य सेतु ‘ नमक एक मोबाईल ऐप का बड़ा ढिंढोरा पीटा गया था। इसके प्रचार पर सैकड़ों करोड़ रूपये पानी तरह बहाए गए थे। कहीं कहीं इसे अनिवार्य भी बताया गया था। आज ‘आरोग्य सेतु ‘ कहां दम तोड़ रही है ? किसे फायदा पहुँचाने के लिए जनता के पैसे पानी में बहाए गए ? है कोई जवाब देने वाला ?
सैकड़ों की तादाद में ऐसे समाचार भी प्राप्त हुए हैं और बाकायदा वीडीओ के माध्यम से न केवल दिखाया जा रहा है बल्कि परिजनों द्वारा अस्पताल में इसबात पर हंगामा भी खड़ा किया जा रहा है कि उनके किसी मृतक संबंधी के शरीर से खून बहता क्यों दिखाई दे रहा है ? कई लोगों ने आरोप लगाए हैं कि कोरोना के नाम पर मरने वाले लोगों के शरीर से किडनी,आँखें,प्लाज्मा आदि निकाला जा रहा है। कई जगह खून से लथपथ लाशों के ढेर भी दिखाई दिए हैं। पिछले दिनों यमुनानगर के एक नवयुवक द्वारा तो यहाँ तक बताया गया कि उसके 35 वर्षीय भाई को सीने में दर्द की शिकायत होने पर पटियाला के एक प्रतिष्ठित हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। 6 दिनों बाद उसे सूचित किया गया की उसे कोरोना था और उसकी मौत हो चुकी है। इतना ही नहीं बल्कि शिकायतकर्ता के मोबइल पर यह सन्देश भी आया कि वह भी कोरोना पॉजिटिव है जबकि शिकायतकर्ता के अनुसार उसने अपनी कोरोना संबंधी कोई जाँच ही नहीं करवाई ऐसे में उसके कोरोना पॉजिटिव या नेगेटिव होने का सवाल ही कहां उठता है ?
इसी तरह का एक महत्वपूर्ण सवाल सोशल मीडिया पर वायरल है कि जिस समय बाबा रामदेव की पतञ्जलि संस्थान ने कोरोनिल नामक कथित कोरोना रोधी दवाई देश के परिवहन मंत्री नितिन गडकरी व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की मौजूदगी में उद्घाटित की जिससे बाद में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि कोरोनिल को ॅभ्व् की ओर से कोई मंजूरी या मान्यता नहीं है। फिर आखिर इस तरह की नौटंकी का क्या अर्थ था ? किस मजबूरी के तहत भारत सरकार के दो प्रमुख मंत्री इस दवा के ‘प्रक्षेपण आयोजन’ में अपना बहुमूल्य समय देने जा पहुंचे ? और क्या वजह है कि बाबा रामदेव के पास कोरोनिल जैसी ‘संजीवनी ‘ होने के बावजूद उन्हीं के पतञ्जलि संस्थान के लगभग चालीस से अधिक कर्मचारी कोरोना संक्रमित पाए गए ? कोरोना काल में ऐसे सैकड़ों अनुत्तरित प्रश्न सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं। निश्चित रूप से जनता इन सवालों के जवाब जानना चाहती है। परन्तु अफसोस तो इस बात का है कि जो व्यवस्था अपने आकाओं के आदेश पर उन्हें खुश करने के लिए झूठ पर चांदी के वर्क लपेटकर अँधेरे को उजाला बताने की अभ्यस्त हो चुकी हो उससे इन ज्वलंत एवं अनुत्तरित प्रश्नों के जवाब की क्या उम्मीद की जा सकती है ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *