राजनैतिकशिक्षा

कोरोना की घातक रफ्तार

-सिद्वार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

देश में एक बार फिर कोरोना की नई लहर ने कैसी चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, यह छिपा नहीं है। रविवार को देश में कोरोना के केस एक लाख पार हो चुके हैं। यह भयावह आंकड़ा है। संक्रमण की रफ्तार को लेकर सरकार की ओर से सावधानी बरतने और संक्रमण पर काबू पाने के लिए तमाम चैकसी बरती जा रही हैं। आम लोगों के लिए भी कई तरह की हिदायतें जारी की गई हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से देश के अलग-अलग हिस्सों से आम लोगों की ओर से बचाव के इंतजामों को लेकर व्यापक कोताही के मामले सामने आ रहे हैं। जबकि हालत यह है कि कुछ राज्यों में संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए कहीं रात का कफ्र्यू तो कहीं चरणबद्ध रूप से लॉकडाउन को लागू करने की नौबत आ गई है। खासतौर पर महाराष्ट्र में कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों ने चिंता की नई लहर पैदा कर दी है और उससे निपटने के लिए बचाव के इंतजामों के संदर्भ में बहुस्तरीय सख्ती की घोषणा की गई है। मगर विडंबना यह है कि इसके बावजूद बहुत सारे लोगों को इन नियम-कायदों पर अमल करना जरूरी नहीं लग रहा है। एक बार फिर कोरोना संक्रमण में तेजी आने से स्वाभाविक ही सरकारों के माथे पर बल नजर आने लगा है। इस संक्रमण को शुरू हुए एक साल हो गया। इस पर काबू पाने के लिए शुरू में पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया था। फिर चरणबद्ध तरीके से उसे हटाया गया और जांचों और इलाज में तेजी लाई गई। लोगों को जागरूक बनाने और कोविड नियमों का कड़ाई से पालन कराने पर जोर दिया गया। इसके चलते संक्रमण की दर घट कर काफी नीचे चली गई। लगने लगा कि इस विषाणु से अब निजात मिलने वाला है। पिछले महीने से इसके टीकाकरण अभियान में भी तेजी लाई गई, तो यह भरोसा और मजबूत हुआ कि जल्दी ही कोरोना को जड़ से खत्म किया जा सकेगा। मगर इसकी दूसरी लहर आ गई और इसका वेग बहुत खतरनाक दिखाई दे रहा है। अब इसमें कोरोना विषाणु के कई बदले हुए रूप शामिल हो गए हैं, जो पहले वाले विषाणु की अपेक्षा अधिक खतरनाक माने जा रहे हैं। इनका संक्रमण पहले की अपेक्षा दोगुनी रफ्तार से फैल रहा है। बुधवार को बावन हजार से अधिक लोग संक्रमित हुए। संक्रमितों के ठीक होने की दर भी पहले की अपेक्षा धीमी है। इस तरह कोरोना की दूसरी लहर ज्यादा चिंता का कारण बनी हुई है। तमाम प्रयासों के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण है कि लोग खुद अनुशासन बरतें। हाथ धोने, उचित दूरी का पालन करने, प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाने वाले टीके लगवाने के लिए तत्पर हों, तो इस विषाणु पर काबू पाने का भरोसा कुछ अधिक बढ़ेगा। मगर देखा जा रहा है कि बहुत सारे लोग जैसे मान बैठे हैं कि कोरोना का भय अब समाप्त हो चुका है। दूर-दराज के गांवों में इसके संक्रमण को लेकर उतनी चिंता नहीं है, जितना शहरों और कस्बों में है। शहरों की अबादी सघन होती है और सार्वजनिक वाहनों, बाजारों, दफ्तरों, अस्पतालों आदि में भीड़ को नियंत्रित करना अक्सर कठिन हो जाता है। उसमें बहुत सारे लोग ठीक तरीके से नाक-मुंह ढंकना तक जरूरी नहीं समझ रहे। अब तक की महामारियों के अनुभव यही रहे हैं कि अगर लोग में जागरूकता आए और वे बीमारी से निपटने में सहयोग करें, तो उस पर जल्दी काबू पा लिया जाता है। मगर कोरोना को लेकर अगर लोगों में अपेक्षित जागरूकता नहीं दिखाई दे रही है तो सरकारों को कुछ सख्त कदम उठाने ही चाहिए, नहीं तो यह दूसरी लहर अधिक नुकसान कर सकती है।

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