राजनैतिकशिक्षा

इमरान को राजनीतिक चुनौती

-सिध्दार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने शनिवार को 340 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में विश्वास मत हासिल कर लिया। इसके लिए उन्हें 172 वोटों की जरूरत थी। उनके पक्ष में 178 वोट डाले गए। ये अगस्त, 2018 में प्रधानमंत्री बनने के लिए उन्हें मिले वोटों से दो ज्यादा हैं। इमरान ने सीनेट चुनाव में इस्लामाबाद सीट पर मिली हार के बाद ऐलान किया था कि वे संसद में विश्वास मत हासिल करेंगे। इसी हफ्ते हुए सीनेट के चुनावों में इस्लामाबाद सबसे हाई प्रोफाइल सीटों में शामिल थी। इस पर विपक्षी पार्टियों के गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट के उम्मीदवार और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने वित्त मंत्री अब्दुल हफीज शेख को हरा दिया। विपक्ष की जीत ने इमरान खान को यह साबित करने के लिए मजबूर किया कि उन्हें अब भी सदन में बहुमत हासिल है। इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन के 16 सदस्यों ने सीक्रेट बैलेटिंग के दौरान गिलानी को वोट देकर उनकी जीत तय कर दी थी। हार के बाद इमरान खान ने पीडीएम और चुनाव आयोग पर जमकर निशाना साधा था। उन्होंने चुनाव के दौरान हॉर्स ट्रेडिंग का भी आरोप लगाया। विपक्ष पर सरकार चला रहे गठबंधन के सदस्यों को खरीदने का आरोप लगाया। भले ही उन सदस्यों ने शनिवार को खुले मतदान में इमरान खान का साथ दिया, लेकिन शेख पर गिलानी की जीत में यह दिखा दिया कि निचले सदन में विश्वास मत हासिल करना वास्तव में इमरान की परेशानियों का अंत नहीं होगा। नेशनल असेंबली में बहुमत वाले गठबंधन में पीटीआई के 157, पीएमएल-एन के 5, बलूचिस्तान अवामी पार्टी के 5, ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस के 3 और मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के 7 और अवामी मुस्लिम लीग का एक सांसद सांसद शामिल है। यह साफ है कि इमरान की अपनी पार्टी के सांसदों और उनके सहयोगियों ने विपक्षी गठबंधन की ओर झुकाव दिखाया है। पीडीएम के साथ गुप्त समझौता करने वाले पीटीआई के नेताओं को 2023 के चुनावों में टिकट मिल सकता है। जाहिर है कि उन्हें भरोसा नहीं है कि आधा कार्यकाल पूरा कर चुकी इमरान की पार्टी 2 साल बाद होने वाले चुनाव में जीत सकती है। ऐसे में इमरान खान के लिए इस समय अपने सहयोगियों को संभाले रखना जरूरी हो गया है, जो सीनेट और विश्वास मत के दौरान इमरान को याद दिला रहे होंगे कि उन्हें उनकी कितनी जरूरत है। दो सबसे अहम और बड़े साझेदार एमक्यूएम और पीएमएल-एन को सिंध और पंजाब में एक या दो कैबिनेट के पद दिए जा सकते हैं। चैधरी परवेज इलाही के नेतृत्व वाली पीएमएल-एन खास तौर से पंजाब प्रांत में कुछ फायदे की उम्मीद कर सकती है। इस्लामाबाद के बाद अगली चुनौती पंजाब के मुख्यमंत्री उस्मान बुजदार और यहां की विधानसभा के सामने आ सकती है। पीएमएल-एन की मदद से पंजाब में सरकार बनाने के बाद पीटीआई ने इलाही को 2018 में विधानसभा में स्पीकर का पद दिया था। इलाही अब इस स्थिति में हैं कि पीटीआई की सरकार बनी रहे इसके लिए वे बुजदार की जगह लेने की मांग कर दें। पंजाब पाकिस्तान का सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है। विपक्ष ने सरकार के ज्यादातर मामलों में सेना के निर्णायक दखल के साथ ही सैन्य नेतृत्व पर भी सवाल उठाए थे। इस्लामाबाद की सीनेट सीट पर विपक्षी गठबंधन की जीत के बाद लगा कि इमरान खान की सरकार से सेना ने अपना हाथ हटा लिया है। यहां तक कि गिलानी ने चुनावों में इस तरह की संभावना के संकेत दिए थे। हालांकि, इमरान खान ने चुनाव में हार के बाद आर्मी चीफ और खुफिया एजेंसी आईएसआई के डायरेक्टर से मुलाकात की थी। गिलानी की सीनेट की जीत के बाद 2019 में विपक्षी गठबंधन पीडीएम ने अब अपनी सबसे बड़ी कामयाबी देखी है। इस गठबंधन ने शनिवार को फ्लोर टेस्ट का बहिष्कार किया। यह कहते हुए कि सीनेट की जीत सरकार और इमरान खान के लिए वास्तविक विश्वास मत नहीं थी। पिछले एक साल में कई उतार-चढ़ाव के बाद गठबंधन में एकता दिख रही है। खासतौर से पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के नेताओं में। विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी गिलानी के पीछे खड़ी है, जिन्हें 2012 में प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए उन्होंने पूरा जोर लगा दिया था। पीटीआई ने हमेशा से सियासी प्रतिद्वंद्वी रहे पीएमएल-एन और पीपीपी को एकजुट किया था। सेना की भागीदारी के बिना सरकार को परेशान करने वाले विपक्षी गठबंधन ने संकेत दे दिए हैं कि पाकिस्तानी राजनीति नई दिशा में जा रही है। अब सैन्य नेतृत्व का इमरान के समर्थन में खड़े रहना रहना मुश्किल होगा। इसलिए इमरान के लिए जो विश्वास मत मायने रखता है वह जनता की ओर से ही आएगा।

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