राजनैतिकशिक्षा

…और आखिरकार चिराग तले अंधेरा ही रह गया

-मुरली मनोहर श्रीवास्तव-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

जब तक रामविलास पासवान थे, तब तक लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) का अपना अलग वजूद था। वो अलग तरह की राजनीति करते थे। चाहे किसी की भी सरकार बने उनका मंत्री बनना तय था। ये बात अलग है कि बिहार की सियासत में भले ही उनका मुख्यमंत्री बनने का सपना अधूरा रह गया हो मगर देश की सत्ता में हमेशा काबिज रहे। एक नजर डालते हैं अपने पिता की विरासत संभाल रहे लोजपा के राजकुमार चिराग पासवान पर, तो ये जनाब पिता के निधन के बाद पार्टी को समेट पाने में कमजोर पड़ते जा रहे हैं। इसका प्रमाण है एक ही दिन बिहार में लोजपा के 200 से अधिक नेताओं का जदयू में ज्वाइन कर लेना। इतना से भी अगर बात खत्म हो जाती तो मान लेते जिस भाजपा के प्रक्षेपास्त्र बनकर बिहार में नीतीश के खिलाफ झंडा बुलंद कर रहे थे उनकी एक मात्र विधान पार्षद नूतन सिंह ने भी लोजपा का दामन छोड़कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है।

राजनीतिक सुझबूझ का अभावः

कोरोनाकाल के दौरान बिहार विधान सभा चुनाव 2020 का आगाज हुआ। इसी दौर में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन हो गया। हलांकि अपने जीते जी पासवान ने अपने इकलौते पुत्र चिराग पासवान को लोजपा की कमान सौंप दी थी। चिराग को लेकर राजनीतिक गलियारे में काफी उम्मीदें पाल रखी थी लोजपा ने तो विपक्षी इनकी कार्यशैली से खार खाए हुए थे। वक्त की नजाकत बदली और चिराग को बिहार विधान सभा 2020 चुनाव लड़ने के लिए पूरी ताकत झोंकनी पड़ गई। उन्होंने मेहनत भी किया, मगर अफसोस की दिशाहीन होकर सत्तारुढ़ दल के खिलाफ ही मैदान में ताल ठोंक दिया। बात यहां तक होती तो चल भी जाती मगर जनाब भाजपा के कभी मुख्यमंत्री पद के दावेदार राजेंद्र सिंह और जनसंघी भाजपाई रामेश्वर चैरसिया, उषा विद्यार्थी को ही तोड़कर नीतीश कुमार को मात देने के लिए भाजपा को ही तोड़ने लगे। आज उसी का नतीजा है कि जदयू ने उनके 200 से अधिक सदस्यों को अपने साथ कर लिया तो भाजपा ने भी लोजपा विधान पार्षद नूतन सिंह को अपने साथ लाकर रही सही कसर पूरी कर दी।

नीतीश के साथ नहीं तो किसके साथः

बिहार में नीतीश के चेहरे को आगे करके एनडीए ने चुनाव लड़ा और सत्ता पर पुनः काबिज हुई। बिहार का विकास मॉडल की पूरी दुनिया मुरीद है। जिस बिहार से लोग पलायन कर रहे थे, उस बिहार की गद्दी पर नीतीश के बैठने के बाद बिहार की परिभाषा ही बदल गई और आज की तारीख में बिहार विकास की इबारत लिख रहा है। पर्यटकों को लुभाने के साथ शिक्षा के अपने पुराने गौरव को वापस स्थापित कर रहा है। वैसे में लोजपा नेता चिराग पासवान, जो की अपरोक्ष रुप में भाजपा के गाईडलाइन पर काम करने की बातें कही जाती रही हैं। आज उसी चिराग तले अंधेरा रह गया है। लोजपा के एक मात्र विधायक राजकुमार सिंह ने एक बयान में कहा था कि वो उस एनडीए का हिस्सा हैं जिसके बिहार में नीतीश कुमार नेता हैं और दिल्ली में नरेंद्र मोदी नेता हैं। उन्होंने कहा कि चिराग पासवान क्या बोलते हैं और नीतीश कुमार को लेकर क्या टिप्पणी करते हैं इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं है। पार्टी की विचारधारा अलग है और उनकी व्यक्तिगत राय अलग है। इस बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोजपा के अंदरखाने में क्या चल रहा है। बसपा के बाद अब जनता दल युनाइटेड की नजर लोजपा पर है। पार्टी के एकमात्र विधायक राजकुमार सिंह की हाल के दिनों में जदयू के नेताओं के साथ नजदीकियां बढ़ी हैं। राजकुमार सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि बिहार में कानून के राज को स्थापित करने से लेकर राज्य को नीतीश कुमार नई ऊंचाइयों तक ले गए हैं।

अपने ही जाल में फंस गए चिरागः

राजनीति को अपने फिल्मी करियर की तरह ही हल्के में लेने वाले चिराग पासवान अपने मूल से भटक गए या यों कहें की अतिमहत्वाकांक्षा ने उनकी लुटिया डूबो दी। बिहार की सियासत के तीन खिलाड़ी रामविलास, लालू और नीतीश हैं। लालू और नीतीश अपने-अपने तरीके से बिहार की सत्ता पर बने रहे। लेकिन रामविलास पासवान भी इनसे पीछे नहीं रहे और वो अपने संपूर्ण जीवन केंद्रीय मंत्री बनकर राज करते रहे। जिस तरह लालू ने नीतीश की पाठशाला में तेजस्वी और तेजप्रताप को राजनीति के पाठ पढ़ाए आज उसी का नतीजा है कि लालू के लाल कमाल कर रहे हैं। जबकि रामविलास के लाल चिराग को पासवान ने स्थापित कर ही दिया। इनके आने से तो लगा था कि बिहार की सत्ता में त्रिकोणीय संघर्ष देखने को मिलेगा। मगर यहां तो एनडीए के साथ रहकर भी एनडीए के एक साथी जदयू के खिलाफ पूरे चुनाव आग उगलते रहे उसी का नतीजा रहा कि लोजपा चारोखाने चीत हो गई। जिस वक्त चिराग को अपना कैंपेन चलाना था तो वो एनडीए के साथ रहकर नीतीश को उखाड़ फेंकने का सपना पाल रखे थे। वो शायद ये भूल गए कि दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा जब नीतीश को बिहार में अपना नेता मानकर चुनाव मैदान में थी, तो इस इशारे को चिराग का नहीं समझना उनको उनके ही चाल में फंसा दिया।

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