राजनैतिकशिक्षा

तेल की बढ़ती कीमतें

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

पेट्रोल और डीजल की कीमतें पिछले 10 दिनों से लगातार बढ़ रही हैं। इसका नतीजा यह है कि देश के ज्यादातर शहरों में इसकी कीमत 90 से सौ रुपए के बीच पहुंच गई है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ जिलों में यह कीमत सौ रुपए से भी अधिक हो गई है। यही हाल घरेलू गैस का है। इस महीने करीब बारह दिनों में ही एक सिलेंडर की कीमत 75 रुपए बढ़ गई। इसे लेकर स्वाभाविक ही आम लोगों में निराशा और नाराजगी है। विपक्ष को सरकार पर हमला करने का एक और मौका मिल गया है। तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो उसका असर रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली उपभोक्ता वस्तुओं पर भी दिखाई देने लगता है। माल ढुलाई और यातायात खर्च बढ़ जाता है। कल-कारखानों में उत्पादन लागत ऊंची हो जाती है। यानी कुल मिला कर आम नागरिकों की जेब पर चैतरफा बोझ पड़ता है।
आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढने से घरेलू बाजार में डीजल और पेट्रोल की कीमतें बढ़ती हैं। मगर अनेक मौकों पर देखा गया है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें काफी कम रही हैं, तब भी हमारे यहां तेल की कीमतें बढ़ी हैं। इस वक्त भी कच्चे तेल की कीमतें इतनी अधिक नहीं हैं कि उसका बोझ डीजल, पेट्रोल की कीमतें बढ़ा कर कम किया जाए। जब केंद्र में भाजपा की अगुआई वाली सरकार पहली बार आई थी, तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें काफी कम हो गई थीं। उस वक्त सरकार ने एलान किया था कि वह तेल की कीमतें कम नहीं करेगी, एक विशेष कर के रूप में उसे एकत्र कर एक तेल पूल तैयार करेगी, जो संकट के समय काम आएगा। वह कर लगातार बढ़ता गया है, पर अब तक न तो उस एकत्र पैसे से कोई तेल पूल तैयार किया गया है और न ऐसा कोई उपाय, जिससे जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें कम हों, तो अधिक से अधिक कच्चा तेल खरीद कर रखा और तेल की कीमतें संतुलित रखी जा सकें। गनीमत है कि पिछले साल जब इसी तरह तेल की कीमतें बढनी शुरू हुई थीं, तो कुछ राज्य सरकारों ने अपने यहां वैट दरें घटा दी थीं, जिससे कीमतें कुछ राहत देने वाली हो सकी थीं। मगर राज्य सरकारों की भी अपनी सीमा है, वे बार-बार ऐसा नहीं कर सकतीं।
मोदी के सत्ता में आने से पहले देश में तेल की कीमत 75 रुपये प्रति लीटर के आसपास थी जबकि कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल थी। अभी कच्चे तेल की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है जबकि देश में तेल की कीमत 80 या 90 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से बिक रहा है। इसकी साफ वजह है टैक्स। एक लीटर पेट्रोल के लिए आप जो कीमत चुकाते हैं उसमें दो-तिहाई से अधिक टैक्स होता है। यही वजह है कि कच्चे तेल की कीमत में उतारचढ़ाव से भारत में पेट्रोल की खुदरा कीमत एक तिहाई से भी कम प्रभावित होती है। इसका मतलब है कि कच्चे तेल की कीमत में जो भी बदलाव हो, केवल 30 फीसदी भारतीय खुदरा कीमत ही इससे प्रभावित होगी। इससे 70 फीसदी खुदरा कीमतों पर कोई असर नहीं होगा।
तेल की कीमतों में आज जो आग लगी है उसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों का एक्साइज टैक्स जिम्मेदार है। पेट्रोल और डीजल पर टैक्स से केंद्र और राज्य सरकारों को पिछले तीन साल में 14 लाख करोड़ रुपए की कमाई हुई है। इस मामले में कुछ हद तक राज्य सरकारों के हाथ भी बंधे हुए हैं। इस टैक्स को जिस तरह राज्यों के साथ साझा किया जाता है, केंद्र ने उसका तरीका बदल दिया है। यानी इसका बड़ा हिस्सा अब केंद्र को मिलता है। हाल के वर्षों में केंद्र सरकार ने एक्साइज में शायद ही कोई कटौती की है जबकि इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में गिरावट आई है। यानी जब भी कच्चे तेल की कीमत में कमी आती है, केंद्र सरकार को काफी फायदा होता है। इस साल कोविड-19 महामारी के कारण स्थिति और गंभीर है। महामारी के कारण हुए वित्तीय नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र की नजर तेल से होने वाली कमाई पर है। इसलिए आम भारतीय उपभोक्ता को हाल-फिलहाल तेल की आसमान छूती कीमत से राहत मिलने की उम्मीद कम है।

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