राजनैतिकशिक्षा

किसान के ट्रुथ पे सरकार बैक फुट पे हठधर्मी सरकार किसानों से डरी

-सईद अहमद-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

सरकार आये दिन मनमर्जी फैसले ले रही है। फैसलों से पहले राय बनाने की जगह डर बना रही है। कोई भी कदम उठाने से पहले ऐसा वातावरण बना दिया जाता है कि अगर सरकार के किसी मनमर्जी के विरूद्ध कोई बोलना चाहे तो उसपर देशद्रोही का खिताब चस्पा कर दिया जाता है। इसी डर से लोग सच बोलने से कतराते है। ऐसा ही मामला नोट बंदी, जीएसटी, एनआरसी, सीईए के वक्त भी हुआ। ऐसा ही मामला रिजर्व बैंक की रिजर्व राशि के दुरुपयोग, देश की विरासतों लाल किला आदि को घुमाकर अपने चहेतों को देना का मामला हो या रेल, तेल, मेल और खेल तक बेच देने का हो। देश की नवरत्न, महा नवरत्न कंपनियों को घाटे में डालकर बेच देना। यह सब हो रहा है फिर भी कोई जरा सी जुबान खोले तो देशद्रोही। सिर्फ घोषित ही नहीं, बल्कि कठपुतली बना दी गई संवैधानिक इकाइयां सीबीआई, एनआईए, ईडी आदि का दुरुपयोग कर जीवन बर्बाद करने तक का षड्यंत्र तक रच डालती है। कहना सुनना आसान लगता है, लेकिन उनसे पूछो जो झूठे आरोपों में सरकारी षडयंत्र का शिकार हुए है। क्या बुद्धजीवी, क्या ईमानदार अफसर, क्या नेता और क्या आम आदमी। सभी इनके निशाने पर है। अगर कोई बच सकता है तो वह अंधभक्त या इनकी शरण मे आया पापी से पापी, दुराचारी से दुराचारी जीव। एनआरसी में महिलाओं ने इन्हें सबक सिखाना चाहा तो उनके साथियों को प्रायोजित दंगो में षड्यंत्र का शिकार होना पड़ा। खुले आम गोली मार देने की बात करने वाले, गोली चलने वालों को सम्मानित किया जाने लगा हो. फिर न्याय की उम्मीद बेईमानी हो जाती है. रही विपक्ष की बात तो विपक्ष मदारी के एक जमूरे से ज्यादा कुछ नहीं। वह तो उतना ही कर पाता है जितना मदारी निर्देशित करता है।
लेकिन सब धान 22 शेर नहीं हो सकते। जब सरकार ने अपने आकाओं को खुश करने के लिए या आकाओं से हुए तय समझौते के तहत देश ही देने का मन बना लिया, वह भी मुफ्त में। तब इस देश की धरती का असली मालिक किसान है। किसान हमारे देश का किसान जितना मेहनतकश है उतना ही ईमानदार और भोला भी। किसान के इसी भोलेपन का लाभ लेते हुए कपटी सरकार ने तीन बिल पास कर दिए। सोचा किसान हमारे दांव पेंच को नहीं समझ पायेगा। यही गलती सरकार कर बैठी।

किसान भोला जरूर होता है, लेकिन मूर्ख नही। उसका तजुर्बा कपटी सियासत वालों से कहीं ज्यादा होता है। सही मायने में तो अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे। ऐसा नहीं यहां पर सरकार ने छल कपट का साथ नहीं लिया। मेहनतकश, ईमानदार, देशभक्त, बॉर्डर पर अपनी जान की बाजी लगाने वाले किसानों और जवानों पर देशद्रोही, आतंकी, बरगलाए हुए जिद्दी होने के आरोप मढ़े गए। सिर्फ इतना ही नहीं विदेशों से धन जुटाने, चीन, पाकिस्तान, कनाडा, इंग्लैंड और अमेरिकी से मनी लांड्रिंग तक का आरोप लगाए जा रहे है। सरकार ने धमकी दी, लालच दिया, नोटिस (सम्मन) दिया। परन्तु किसान तो किसान है, जिसे आप धरती पर साक्षात भगवान कह सकते है। वह टस से मस नहीं हो रहे। किसान ऐसा प्राणी है जिसका आप सबकुछ ले सकते हो ईमानदारी से। लेकिन छल कपट से, उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाकर धेला भी नहीं मिलने वाला। किसी किसान से उसके पास पैदा होने वाली कोई चीज मांगो तो वह आपकी मांग से ज्यादा ही देगा। पानी पीने के लिए गुड़ ( मिठाई) मांगो तो वह पूरी भेली पकड़ा देगा। हद तक वह बाजार में जब अपनी फसल बेचने जाता है तो तराजू को झुकता ही देगा। अर्थात ज्यादा ही देगा। वह किसान हँसते हँसते अपने जवानों को जान न्योछावर करने के लिए भेजता है। उस किसान की अस्मिता का सौदा कोई कैसे कर सकता है।

देश को विघटन की ओर धकेलने के षड़यंत्र की बू किसान को आ गई तो किसान मरने को उतारू हो गया। 100 से ज्यादा किसानों की शहादत के बाद भी जब किसानों के हौसले पस्त होने की बजाय बढ़ते दिखे तो कप्टियों ने सर्वोच्च न्यायालय का सहारा लिया। न्यायालय ने किसान हमदर्दी का ढोंग रचते हुए सरकार की चापलूसी शुरू कर दी। किसान जो अपनी फसल के लिए ईश्वर से लड़ने का माद्दा रखता हो वह कपटी और छलियों के जाल में नही फसने वाला। किसानों के आंदोलन को माओवादियों, खालिस्तानियों का आंदोलन बताने वाले आखिर 11 दौर की बातचीत के बाद अपने नियाजी फैसले को डेढ़ साल तक ठंडे बस्ते में डालने को राजी हुईं। किसानों का खौफ सरकार पर इतना पड़ा कि वह आजादी के बाद से चल रही परंपरा को को निभाने की भी हिम्मत नहीं जुटा पा रही। वह अपने परम्परा गत रूट से झांकी तक नहीं निकाल सकती। किसानों की ट्रेक्टर रैली की तैयारी देखते हुए नतमस्तक हो गयी।स अब सरकार अपनी लाज बचाने के लिए कोरोना का सहारा ले सकती है। वह सोशल डिस्टनसिंग को मुद्दा बना कर किसानों के सिर फोड़ सकती है। लेकिन सच यह है सच के सामने झूठ परास्त हुआ है। इसीलिए कहते रहो जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय संविधान।

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