राजनैतिकशिक्षा

आर्थिक असमानता की समस्या व समाधान

-सत्यपाल वशिष्ठ-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

भारत में आर्थिक असमानता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस समस्या ने कुछ वर्षों से धनी और निर्धन के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है। सरकार और सियासी पार्टियों को इस समस्या को गंभीरता से लेने की जरूरत है ताकि संसाधनों और धन का न्यायपूर्ण बंटवारा हो सके। आर्थिक असमानता की समस्या की गंभीरता का पता हमें नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनामिक रिसर्च की रिपोर्ट से चलता है कि देश के 20 प्रतिशत धनी लोगों के पास देश की कुल आय का 53.2 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि नीचे के 40 प्रतिशत लोगों के पास कुल आय का 5.3 प्रतिशत भाग है। एकाधिकार जांच आयोग के अनुसार देश की 1536 कंपनियां 75 परिवारों के नियंत्रण में हैं। अखिल भारतीय ऋण और निवेश सर्वेक्षण रिपोर्ट 2018 के अनुसार देश के 10 प्रतिशत धनी लोगों के पास देश की दौलत का 54.98 प्रतिशत था और नीचे के 50 प्रतिशत लोगों के पास 5.65 प्रतिशत था। हाल ही में जारी की गई ऑक्सफैम अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट को देखें तो हमें वर्तमान समय में भारत में आर्थिक विषमता का पता चलता है। भारत की कुल दौलत का 40 प्रतिशत हिस्सा 1 प्रतिशत लोगों के पास है जबकि नीचे की 50 प्रतिशत जनता के पास कुल भारतीय दौलत का 3 प्रतिशत हिस्सा है। धनी वर्ग ने तो कोविड काल में भी पैसा ही अर्जित किया और अपेक्षाकृत कम विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की रोजी-रोटी चली गई और निर्धनता की ओर धकेल दिए गए।

इससे अमीर और गरीब के बीच की खाई और चौड़ी हो गई। आय का असमान वितरण न केवल वर्तमान निर्धनता को प्रकट करता है, बल्कि धनी और निर्धन के बीच के अंतर को भी प्रकट करता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इस समस्या की गंभीरता को देखकर वर्तमान वित्त मंत्री से आग्रह किया था कि भारत में बेरोजगारी, महंगाई और असमानता बढ़ी है, इसलिए 2023-24 के बजट में मध्यम वर्ग को रियायतें दी जाएं ताकि असमानता कम हो सके। जब संसाधनों और धन का न्याय पूर्ण बंटवारा न हो रहा हो तो सरकार और सियासी पार्टियों को इसके समाधान के लिए भारत के संविधान में दिए गए निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार देश के आर्थिक नियोजन को मोड़ देकर, देश के धनी और गरीब के बीच की खाई को कम करना चाहिए। अनुच्छेद 37, 38, 39 में साफ लिखा है कि लोगों के लिए आर्थिक-सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है और भारत को कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित करना है। आय, स्थिति, सुविधाओं तथा अवसरों में असमानता को कम करके सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित एवं सरंक्षित कर लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने का प्रयास करना है। सभी नागरिकों को आजीविका के पर्याप्त साधन, भौतिक संसाधनों के स्वामित्व और नियंत्रण को सामान्य जन की भलाई के लिए व्यवस्थित करना है। कुछ व्यक्तियों के पास धन को संकेंद्रित होने से बचाना है। इन निर्देशक सिद्धांतों को किसी न्यायालय के जरिए लागू नहीं करवाया जा सकता, पर यह राजनीतिक स्वरूप रखते हैं तथा मात्र नैतिक अधिकार रखते हैं ताकि जनता का भला हो सके।

जब ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है तो धन के वितरण को अधिक न्याय संगत बनाने के लिए हमें आर्थिक नियोजन को निर्देशक सिद्धांतों के अनुरूप करना है ताकि मुक्त बाजार व्यवस्था को सामाजिक लाभ के साथ मिश्रित कर, सरकार आर्थिक विकास और सामाजिक संतुष्टि के बीच आदर्श संतुलन बनाए। विकास में असमानताएं घटने की बजाय बढ़ ही रही हैं। अगर असमानता बढ़ती है तो गरीबी बढ़ती है, गरीबी का असमानता के साथ-साथ बेरोजग़ारी के साथ भी घनिष्ट संबंध है। अगर रोजगार का स्तर बढ़ाएंगे तो गरीबी तथा असमानता दूर की जा सकती है। भारत को लाभजनक कंपनियों को निजी हाथों में न देने की बजाय सार्वजनिक क्षेत्र में ही रखना चाहिए। भारत का मिश्रित अर्थव्यवस्था की तरफ मुडऩा अब जहां मुश्किल लगता है, पर इस ओर ध्यान देना आवश्यक है ताकि कल्याणकारी कार्यक्रमों से गरीबों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़े लोगों और साथ में महिलाओं का आर्थिक व सामाजिक विकास किया जा सके।

असमान वितरण को दूर करने के लिए सरकार को बेरोजग़ारी और अल्प बेरोजग़ारी को दूर करना, करों की चोरी को रोकना, धनी वर्ग पर प्रगतिशील कर, संपदा कर, बजट को मध्यम वर्ग के अनुकूल बनाना, महंगाई पर नियंत्रण, कृषि श्रमिकों तथा असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को उनकी उत्पादकता के अनुसार मज़दूरी दिलवाना, श्रमिकों के उपभोग की वस्तुओं पर कम अप्रत्यक्ष कर लगाना तथा निर्धन परिवारों को शिक्षा-स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं नि:शुल्क उपलब्ध करवाना है ताकि उनकी वास्तविक आय बढ़े और जीवन स्तर ऊंचा हो। प्रभावी राशन प्रणाली को समाज के निर्धन वर्ग के लोगों के लिए लागू करना, कृषि विकास, पिछड़े क्षेत्रों पर विशेष ध्यान, स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध करवाना तथा लाभजनक कंपनियों में विनिवेश को रोकना आदि के द्वारा गरीबी, असमानता तथा बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है तथा आर्थिक विकास और सामाजिक संतुष्टी के बीच आदर्श संतुलन बनाया जा सकता है।

भारत सरकार ने गरीबी, बेरोजगारी तथा असमानता कम करने के लिए 2023-24 के बजट में कृषि, बागवानी, युवाओं, गरीबों, अनुसूचित जातियों व जनजातियों, मध्यमवर्ग, पारंपरिक कारीगरों, पूंजीव्यय, संरचना एवं निवेश में, पर्यटन, छोटे उद्योगों को बढ़ावा देकर रोजग़ार के अवसर सृजि़त करना आदि बहुत सी योजनाओं की घोषणा की है। परंतु इन सभी योजनाओं पर रेगुलर निगरानी, ठीक ढंग से कार्यान्वयन न किया गया तो जो उम्मीदें लगाई गई हैं, उन्हें पूरा करना कठिन होगा। इसी तरह हिमाचल के नए बजट में भी मनरेगा दिहाड़ी बढ़ाकर व कई अन्य उपाय करके आर्थिक असमानता दूर करने का प्रयास किया गया है, लेकिन अभी बहुत कुछ बाकी किया जाना शेष है।

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