राजनैतिकशिक्षा

हमारा युद्धविराम, उनका युद्धविराम!

-शकील अख़्तर-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

आज खोमेनेई के साथ ट्रंप का नेतृत्व भी चर्चाओं में है। हालांकि दोनों एक-दूसरे को सख्त नापंसद करते है। फि पर दोनों की हिम्मत की चर्चा है। ऐसे ही यूक्रेन के जेलेन्स्की और रूस के पुतिन भी अपने देश हित, अपनी शर्तों पर लगातार लड़ते हुए है। दोनों ट्रंप के सामने अपनी बात दबंगी से बोलते हैं। मगर हमारे यहां सेना की बढ़त थी तो अचानक ट्रंप द्वारा घोषित सीजफायर को तुरंत मान लिया गया। दुनिया ने जाना देखा कि युद्धविराम पाकिस्तान के फायदे के लिए था।

हर समय एक विशिष्ट पैमाना होता है काल का। वह क्या-कैसा होगा, यह कोई तय नहीं कर सकता। वह अचानक ही समय के गर्भ से प्रस्फुटित होता है। और फिर दुनिया समय के उसी पैमाने पर व्यक्ति को आंकती है। इस समय सारी दुनिया नेतृत्व के भंवर में है। हर जगह चर्चा है कि नेतृत्व ऐसा होना चाहिए या वैसा होना चाहिए! जाहिर है कि इस सप्ताह के घटनाक्रम में पहला नाम ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई का है। जिन्होंने इजराईल और अमेरिका को संघर्ष विराम पर मजबूर कर दिया। नहीं तो यह दोनों ईरान को तहस नहस करने, अली खामेनेई को जान से मारने की बातें कर रहे थे। दुनिया का एक बड़ा हिस्सा भी खामेनेई को खलनायक की तरह पेश कर रहा था।

मगर उन्होंने इतनी बहादुरी से लड़ा, अपनी सेना की ताकत से दस गुना बेहतर प्रदर्शन किया कि जो लोग उनका मजाक उड़ा रहे थे, हल्के में आंक रहे थे आज वे भी उनकी तारीफों के पुल बांध रहे हैं। कामयाबी सही और गलत की सारी धारणाएं बदल देती है। इसको इस तरह देखें कि नेतृत्व के पैमाने पर खामेनेई का नाम तो सबसे उपर आ ही रहा है। मगर आप अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आत्मविश्वासी नेतृत्व को भी नहीं नकार सकते।

फिर वही बात कि सही और गलत का फैसला अपने अपने संदर्भों में होता है। राष्ट्रपति ट्रंप ने डेढ़ महीने के अंदर दो बड़े युद्ध विरामों की घोषणा की। पहले भारत-पाक के बीच और अब ईरान-इजराइल के बीच। और यह दूसरी तो बड़ी गाली देते हुए धमकी के साथ। अब इन युद्धविरामों के फायदे नुकसान हर देश के हिसाब से अलग अलग हैं। मगर ट्रंप में वह ताकत थी कि खुद युद्ध विरामों की घोषणा कर सकते थे तो किया। नेतृत्व की यही पहचान होती।

तो खोमेनेई के साथ ट्रंप का नेतृत्व भी आज चर्चाओं में है। और आप एक जबरदस्त विरोधाभास देखिए कि दोनों एक दूसरे को सख्त नापंसद करने वाले। दो विपरीत ध्रुव मगर दोनों छा गए। और एक दूसरा उदाहरण दे रहे हैं। यहां भी नेतृत्व की मजबूती देखिए। यूक्रेन के जेलेन्स्की और रूस के पुतिन की। करीब साढ़े तीन साल हो गए दोनों को लड़ते हुए। ट्रंप ने दूसरी बार सत्ता में आने के बाद सबसे पहले इन दोनों के बीच ही युद्ध विराम करवाने की कोशिश की। मगर जैसा ईरान ने किया है वैसे ही यह दोनों भी अपने समय और शर्तों पर चाहते हैं। अपने अपने देश के हित दोनों के सामने हैं और उसके लिए ट्रंप के सामने दबंगी से बोलते हैं।

जेलेन्स्की की वह वीडियो तो वायरल है जिसमें वे ट्रंप और वहां के उप-राष्ट्रपति वेन्स के साथ तीखी बहस कर रहे हैं। और साफ कह रहे हैं कि वे युद्ध विराम को नहीं मानेंगे। फिर वही बात सही और गलत का फैसला बाद में इस आधार पर होगा कि कि युक्रेन ने उस दिन समझौता न करके क्या उससे ज्यादा कुछ हासिल किया। लेकिन तीन महीने पहले उस दिन दिन अमेरिकी राष्ट्रपति के दफ्तर ओवल आफिस में जिस तरह जेलेन्स्की ने अपने देश का पक्ष रखा उससे वे मजबूत नेता के तौर पर उभर कर सामने आ गए। जहां तक पुतिन का सवाल है तो वह अमेरिका के खिलाफ इस समय सबसे बड़ी ताकत बने हुए हैं। उनका मजबूत नेतृत्व ही है कि सारे नाटो देशों का ताकत के सामने वह अकेले लड़ रहे हैं।

तो आपने देखा कि अपने अपने देश के हितों के लिए व्यक्तिगत छवि की कोई परवाह किए बिना इन नेताओं ने काम किया। और अपने अपने देश में इज्जत कमाने के साथ अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी नाम किया। लेकिन सब नेता ऐसा नहीं कर पाते हैं। हमारे यहां जब सेना बढ़त पर थी तो अचानक ट्रंप द्वारा घोषित सीजफायर स्वीकार कर लिया। पूरे देश में निराशा का माहौल छा गया। यहां यह समझना जरूरी है कि सीजफायर पाकिस्तान को तो सूट करता था। उसकी सेना हमारी सेना का मुकाबला नहीं कर सकती थी। अगर 10 मई को शाम पांच बजे ट्रंप की घोषणा के मुताबिक युद्द विराम नहीं होता तो पाकिस्तान को बहुत नुकसान हो जाता। युद्ध विराम पाकिस्तान के फायदे के लिए था। उसने इसके लिए ट्रंप का धन्यवाद किया। नोबल शांति पुरस्कार के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया। उनके आर्मी चीफ आसीम मुनीर जो बड़ी हार के बाद पाकिस्तान में खलनायक बन जाते प्रमोशन पाकर फील्ड मार्शल बन गए। राष्ट्रपति ट्रंप ने उन्हें लंच के लिए न्यौता दिया।

कितने आश्चर्य दुःख की बात है कि कहां सेनाध्यक्ष का लंच और कहां हमारे प्रधानमंत्री पब्लिक मीटिंग में कह रहे हैं कि मुझे भी खाने पर बुलाया था। उसके समकक्ष खुद को रखना देश का अपमान है। ट्रंप ने हमारे सेनाध्यक्ष को बुलाया होता समझ में आता। मगर प्रधानमंत्री ने क्या किया क्या बोल रहे हैं किसी की समझ में नहीं आ रहा।

ट्रंप द्वारा घोषित युद्धविराम क्यों माना? आज तक इसका जवाब नहीं दिया। 10 मई के बाद बहुत बोले कई भाषण किए मगर इस बात को जवाब नहीं दिया कि युद्ध विराम का समय जैसा ईरान ने अपनी मर्जी से चुना वे क्यों नहीं चुन पाए? ट्रंप ने कहा शाम पांच बजे। ठीक पांच बजे हमारी सेना से कार्रवाई बंद करवा दी। मगर पाकिस्तान जिसके जरूरत थी युद्ध विराम की वह अपनी सार्वभौमिकता दिखाने के लिए ड्रोन पहुंचाता रहा। लोगों को अगर इस मौके पर इन्दिरा गांधी याद गईं तो क्या गलत याद आईं। मजबूत नेतृत्व की यही तो खूबी होती है कि वह सही समय पर लोगों के जेहन में अचानक आ उभरता है। 1971 का युद्ध, बांग्लादेश का बनना, अमेरिका का इसे रोकने की कोशिश, इन्दिरा का कड़ा जवाब सब लगों को याद आ गया।

अब इसे कमतर दिखने के लिए कहा जाना लगा कि उस समय जनरल मानेकशा थे। क्या मजाक है? वह भी अपने देश के जनरलों के साथ। जनरल मानेकशा थे बड़े फौजी मगर इसका क्या मतलब कि आज के जनरल कम हैं? कुछ भी बोल देते हैं। नेतृत्व राजनीतिक होता है। और युद्धकाल या युद्ध समान स्थिति में वोट के लिए काम नहीं करता। अपनी व्यक्तिगत छवि बनाने की कोशिश नहीं करता। सिर्फ एक पैमाना होता है देश हित का। और अभी जो उपर नाम गिनाए अली खामेनेई का, जेलेन्स्की का, पुतिन का और ट्रंप का उन सबने अपने राष्ट्रीय हित देखते हुए फैसले लिए। गौर कीजिए इन नामों में इजाराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू का नाम नहीं आ पाया। अन्तरराष्ट्रीय मीडिया से लेकर डिप्लोमेट सब उनकी आलोचना कर रहे हैं कि उन्होंने ईरान पर हमला करके अपने देश की सुरक्षा खामियों की पोल खुलवा दी। खुद को बहुत बड़ा तीसमारखां साबित करने के चक्कर में नेतन्याहू ने ईरान पर हमला कर दिया था। नतीजा क्या हुआ? जो आयरन डोम का हव्वा खड़ा कर रखा था वह ईरान की मिसाइलों के सामने नाकाम हो गया। प्रचार के जरिए एक छवि बना रखी थी अजेय होने की वह चूर चूर हो गई।

नेता वह जो देश की छवि को और निखारे। यहां जो इजराइल की छवि थी वह नेतन्याहू ने खत्म करवा दी। उसके पड़ोस के सारे अरब देश इसीलिए उससे डरते थे। अमेरिका भी उसका समर्थन इसलिए करता था कि उसकी सैनिक शक्ति अच्छी है। कहीं युद्ध में काम आएगी। मगर जब अमेरिका ने उस पिटते हुए देखा तो ट्रंप ने गाली देते हुए कहा कि अपने पायलट वापस बुलाओ। अब कोई हमला नहीं होना चाहिए। इन सारे घटनाक्रमों में पाकिस्तान की स्थिति वैसी ही रही जैसी थी। जबकि उसकी कमजोर होना चाहिए थी। और हमारी जैसी थी उससे कमजोर हुई है। और इसे नेतृत्व की कमजोरी माना जा रहा है।

 

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