बुलडोजर ‘न्यायाधीश’ नहीं
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
बुलडोजर न तो न्याय है और न ही ‘न्यायाधीश’ का कोई पर्याय है। बुलडोजर की कार्रवाई और किसी के घर को ‘मलबा’ करने की जबरन कवायद पर सर्वोच्च अदालत ने जो फैसला दिया है, वह मील-पत्थर, ऐतिहासिक और दूरदर्शी है। सर्वोच्च अदालत ने कुछ दिशा-निर्देश तय किए हैं, जो देश भर में लागू होंगे। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘घर’ को भी एक अधिकार माना गया है, लिहाजा किसी आरोपित या सजायाफ्ता व्यक्ति के घर को ध्वस्त करना मौलिक अधिकार का उल्लंघन, हनन है। अपराध-शास्त्र का बुनियादी सिद्धांत यह है कि जिसने अपराध किया है, उसी को सजा दी जाए, लेकिन देश के आधा दर्जन राज्यों में इस सिद्धांत की अनदेखी की जाती रही है। बुलडोजर को सजा देने अथवा राजनीतिक खुन्नस का ऐसा हथियार बनाया गया है कि घर ढहाने से कथित अपराधी का पूरा परिवार प्रभावित होता है। वे बेघर हो गए। मुआवजे के तौर पर सरकार ने जिन आवासों की पेशकश की, वे 5-7 परिजनों के लिए अपर्याप्त थे। सरकारों ने बुलडोजर की कार्रवाई को ही अपना कानून तय कर लिया, लिहाजा उसे ‘बुलडोजर न्याय’ का नाम दिया गया। उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ‘बुलडोजर बाबा’ कहा गया और मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ‘बुलडोजर मामा’ के नाम से लोकप्रिय हुए। बुलडोजर को अपराधियों में सरकारी खौफ का विकल्प बना दिया गया। कथित माफिया, डॉन, गुंडों के अवैध निर्माण ‘मलबा’ किए गए। इनमें अतीक अहमद, मुफ्तार अंसारी, आजम खान सरीखों के नाम लिए जा सकते हैं, जो बार-बार जनप्रतिनिधि भी चुने गए और विधानसभा, संसद के सदस्य तक बनते रहे। जब 2017 में योगी आदित्यनाथ उप्र के मुख्यमंत्री चुने गए, तब उन्होंने ऐलान किया था कि अपराधियों, माफिया किस्म के लोगों के अवैध निर्माण ढहाए जाएंगे। यह कार्रवाई एक कानूनी सीमा के दायरे में ही की जा सकती है और इसकी एक निश्चित कानूनी प्रक्रिया होनी चाहिए।
बुलडोजर कार्रवाई को कोई भी सरकार ‘प्रतिशोध’ का पर्याय नहीं बना सकती, लिहाजा अब जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की न्यायिक पीठ को फैसला देना पड़ा है कि कार्यपालिका (यानी सरकार और नौकरशाही) ‘न्यायाधीश’ नहीं हो सकती। अब किसी अवैध निर्माण को ढहाने की कार्रवाई करनी होगी, तो सरकार को साबित करना होगा कि अमुक निर्माण ‘अवैध’ किन आधारों पर है? क्या उसे ध्वस्त करना ही ‘अंतिम विकल्प’ है? क्या जुर्माना वसूल कर उस अवैध निर्माण को ‘नियमित’ नहीं किया जा सकता? न्यायिक पीठ का कहना है-आम नागरिक के लिए अपना घर बनाना सालों की मेहनत और सपनों का नतीजा है। कानून का शासन लोकतांत्रिक सरकार की नींव है। कानून का राज यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को पता हो कि उनकी संपत्ति मनमाने ढंग से नहीं छीनी जाएगी। सजा के नाम पर किसी का आशियाना छीनने की अनुमति हमारा संविधान नहीं देता है। ’ पीठ ने यह भी कहा है कि जब सरकार का अधिकारी नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों से अलग, उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ही, काम करता है, तो बुलडोजर कार्रवाई का भयावह दृश्य अराजक स्थिति की याद दिलाता है, जहां ‘ताकतवर ही जीतेगा। ’ बहरहाल न्यायिक पीठ ने दिशा-निर्देश तय किए हैं कि निर्माण को ध्वस्त करने का नोटिस ‘रजिस्टर्ड डाक’ से भेजना होगा और निर्माण पर भी चिपकाना होगा। उसकी सम्यक जानकारी जिले के डीएम को देना अनिवार्य होगा। इस प्रक्रिया के दौरान तीन महीने की अवधि में ‘पोर्टल’ भी बनाना होगा, ताकि सभी को संपूर्ण जानकारियां मिल सकें। न्यायिक पीठ ने न तो किसी मुख्यमंत्री को ‘दोषी’ करार दिया है और न ही बुलडोजर कार्रवाई पर कोई रोक लगाई है। बुलडोजर की कार्रवाई भी हिंदू-मुसलमान की जाती रही है। सवाल है कि इस सुप्रीम फैसले के बाद बुलडोजर के पहिए और नुकीले दांत क्या थम जाएंगे? आश्रय के अधिकार पर तानाशाही नहीं की जा सकती।