गुमराह-भ्रम की राजनीति
-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-
राजद अध्यक्ष लालू यादव ने भविष्यवाणी की है कि मोदी सरकार अगस्त में गिर जाएगी। यह हास्यास्पद और बचकाना बयान है। लालू अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे कि वे बिहार में चुनाव के लिए तैयार रहें। कभी भी चुनाव घोषित किए जा सकते हैं। लालू की यह भविष्यवाणी इसलिए प्रहसन का विषय है, क्योंकि संदर्भ देश की सरकार का है। लालू ने कभी भी गंभीर राजनीति नहीं की, लिहाजा इस बार भी उनके बयान को ‘मुंगेरी लाल के सपने’ जैसा लेना चाहिए। बहरहाल आम चुनाव का जनादेश बीती 4 जून को सार्वजनिक किया गया और 9 जून को प्रधानमंत्री समेत कैबिनेट के अन्य सदस्यों ने शपथ ग्रहण की। इस संपूर्ण प्रक्रिया में लालू की पार्टी के 4-5 सांसद ही हैं। यदि ‘इंडिया’ को विपक्षी गठबंधन की एकजुट ईकाई मान लिया जाए, तो उनके पाले में 233 सांसदों का समर्थन है। सरकार बनाने के लिए कमोबेश 272 सांसद होने चाहिए। ‘इंडिया’ का 233 वाला आंकड़ा भी सवालिया है, क्योंकि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने कथित ‘इंडिया’ के खिलाफ ही चुनाव लड़ा था। तृणमूल के 29 सांसद जीत कर लोकसभा में आए हैं। तृणमूल की तरफ से किसी भी नेता ने अधिकृत घोषणा नहीं की है कि अब पार्टी ‘इंडिया’ का घटक दल है। इसके अलावा, ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) के साथ कांग्रेस का गठबंधन धूप-छांव जैसा है। कभी उजाला, तो कभी अंधेरा…! कांग्रेस ने घोषणा की है कि अक्तूबर में होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव वह अकेले ही लड़ेगी। ‘आप’ के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा। ‘आप’ के तीन लोकसभा सांसद संसद के भीतर ‘इंडिया’ का कितना समर्थन करते रहेंगे, यह भी सवालिया और आशंका है। इस तरह लोकसभा में विपक्षी सांसदों की संख्या 200 के करीब होती है।
उसमें भी प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के 98 सांसद हैं और लालू के राजद का अस्तित्व तो ‘नगण्य’ है। दरअसल यह गुमराह करने, भ्रम फैलाने की राजनीति है। विपक्ष में लालू यादव ने ही मोदी सरकार के पतन का बयान नहीं दिया है, बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी अक्सर दावा करते रहते हैं कि मोदी सरकार को जनादेश नहीं मिला है, वह बैसाखियों के सहारे है, लिहाजा कभी भी गिर सकती है। सवाल यह भी है कि क्या आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एवं टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू और बिहार के मुख्यमंत्री एवं जद-यू के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने कांग्रेस या लालू यादव से यह साझा किया है कि वे एनडीए में नाखुश और बेचैन हैं? क्या उन्होंने ‘इंडिया’ में शामिल होने के संकेत भर दिए हैं? क्या कांग्रेस और पूरा ‘इंडिया’ गठबंधन आंध्र और बिहार की आर्थिक विपन्नता की भरपाई कर सकते हैं? क्या वे उन दोनों राज्यों को ‘आर्थिक पैकेज’ मुहैया करा सकते हैं? बिल्कुल असंभव स्थिति है। चंद्रबाबू ने हालिया दिल्ली प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री मोदी से रूबरू बात की है और कई मंत्रियों से भी मुलाकात की है। नायडू ने अपनी जरूरतों से केंद्र सरकार को अवगत करा दिया होगा। आंध्र को मोदी सरकार ही विशेष अनुदान दे सकती है। आंध्र की राजधानी अमरावती के अधूरे काम सिरे चढ़ा सकती है। लाखों करोड़ रुपए के कर्ज से उबरने के मद्देनजर मोदी सरकार ही मदद कर सकती है। कांग्रेस और इंडिया के सत्ता में आने के लेशमात्र भी आसार नहीं हैं, तो टीडीपी और जद-यू एनडीए से अलग क्यों होंगे? समर्थन और अलगाव के फैसले गुडिय़ा का खेल नहीं हैं। बीते दिनों नीतीश कुमार और जद-यू के 12 सांसद भी प्रधानमंत्री तथा भाजपा अध्यक्ष से मिले थे। जाहिर है कि एनडीए के भीतर निरंतर संवाद का सिलसिला जारी है।