राजनैतिकशिक्षा

नीतीश का पलटवार

-‎सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन तोडऩे का फैसला लिया है और एक बार फिर से वह आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने की तैयारी में हैं। नीतीश ने यह फैसला अचानक ही लिया है, जिसने बिहार समेत देश भर के लोगों को चौंकाया है। लेकिन यह पहला मौका नहीं है, जब नीतीश कुमार ने इस तरह से अपना रुख बदला है। इससे पहले भी वह 2013 में एनडीए को छोड़कर आरजेडी और कांग्रेस के साथ चले गए थे। फिर 2017 में एक बार फिर से भाजपा के साथ चले आए थे। इस तरह वह राजनीति में कई बार पाला बदल चुके हैं। नीतीश कुमार की बिहार में एक अच्छी छवि है और उसके बूते ही वह जेडीयू से ज्यादा सीटें जीतने वाली आरजेडी और भाजपा को अपनी शर्तों पर साधते रहे हैं। नीतीश कुमार ने कई बार राजनीतिक पंडितों को अब अपने पैंतरों से चौंकाया है। 2005 में भाजपा संग बिहार की सरकार बनाने वाले नीतीश ने पहली बार 2012 में चौंकाया था। वह एनडीए में थे, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में प्रणब मुखर्जी को वोट दिया था। इसके बाद 2013 में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम कैंडिडेट घोषित किया तो नीतीश कुमार ने 17 साल पुराने रिश्ते को ही खत्म कर दिया था। जेडीयू ने उसके बाद 2014 का आम चुनाव आरजेडी के साथ ही मिलकर लड़ा था, लेकिन भाजपा की लहर में करारी हार हुई। तब नीतीश कुमार ने चौंकाते हुए सीएम पद से ही इस्तीफा दे दिया था और फिर जीतन राम मांझी सीएम बने थे। जेडीयू को बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से महज दो पर ही जीत मिली थी। इसके बाद नीतीश कुमार ने 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन संग उतरने का फैसला लिया था और जीत भी हासिल की थी। यही नहीं जून 2017 में जब वह महागठबंधन के साथ तो राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए की मीरा कुमार की बजाय एनडीए के रामनाथ कोविंद को वोट दिया था। इसके एक महीने बाद ही उन्होंने महागठबंधन छोड़ दिया था और एक बार फिर से भाजपा के साथ ही सरकार बना ली। बीते पांच सालों से भाजपा और जेडीयू साथ चल रहे थे, लेकिन इसी साल अप्रैल में एक बार फिर से उन्होंने चौंका दिया था। नीतीश कुमार ने राबड़ी के घर आयोजित इफ्तार पार्टी में हिस्सा लिया था। 5 साल बाद हुई इस मुलाकात के बाद से ही कयास तेज हो गए थे, जिनका अंत अब होने वाला है। अब नीतीश कुमार ने एक बार फिर से चौंकाया है और वह एनडीए को छोड़कर कांग्रेस और आरजेडी संग सरकार बनाने जा रहे हैं। सवाल यही है कि इस बार नीतीश को ऐसा क्या हो गया कि उन्हें भाजपा से तौबा करनी पड़ी। दरअसल, वे भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा के उस बयान से डर गए, जिसमें उन्होंने कहा था कि भविष्य में सिर्फ देश में भाजपा ही एक मात्र पार्टी बचेगी, बाकी सभी पार्टियां खत्म हो जाएंगी।
नड्डा के इस बयान ने नीतीश के मन में डर पैदा किया और वे यह मान बैठे कि भाजपा उनकी पार्टी खत्म करने पर तुली है। नतीजा आज सबके सामने है। यूं तो नीतीश कुमार और भाजपा के बीच अनबन 2020 में सरकार बनने के बाद से ही शुरु हो गई थी। भाजपा नेताओं के बयानबाजी से नीतीश कुमार असहज महसूस करते थे। इसके बाद नीतीश कुमार को यह लगने लगा कि भाजपा अब उनकी ही पार्टी खत्म करने पर तुली है। पिछले एक साल के अंदर नीतीश कुमार को कई बार लगा कि भाजपा अब उनकी ही पार्टी में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। मतलब जदयू के विधायकों, सांसदों और नेताओं को तोड़कर भाजपा अकेले दम पर सरकार बना सकती है। ऐसे में उन्होंने अपनी पार्टी की निगरानी शुरू कर दी। ये देखने लगे कि उनकी पार्टी के किस-किस नेताओं के रिश्ते भाजपा से मजबूत हो रहे हैं। ऐसे लोगों को नीतीश चुन-चुनकर निकालने लगे। इन सबके बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के इस बयान ने नीतीश कुमार की शंका को और मजबूत कर दिया। इसके बाद वह एनडीए का साथ छोड़कर नया गठबंधन बनाने की कोशिशों में जुट गए। बिहार विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 243 है। यहां बहुमत साबित करने के लिए किसी भी पार्टी को 122 सीटों की जरूरत है।
वर्तमान आंकड़ों को देखें तो बिहार में सबसे बड़ी पार्टी राजद है। उसके पास विधानसभा में 79 सदस्य हैं। वहीं, भाजपा के पास 77, जदयू के पास 45, कांग्रेस के पास 19, कम्यूनिस्ट पार्टी के पास 12, एआईएमआईएम के पास 01, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के पास 04 सदस्य हैं। इसके अलावा अन्य विधायक हैं। वर्तमान में जदयू के पास 45 विधायक हैं। उसे सरकार बनाने के लिए 77 विधायकों की जरूरत है। पिछले दिनों राजद और जदयू के बीच नजदीकी भी बढ़ी हैं। ऐसे में अगर दोनों साथ आते हैं तो राजद के 79 विधायक मिलाकर इस गठबंधन के पास 124 सदस्य हो जाएंगे, जो बहुमत से ज्यादा हैं। इसके अलावा खबर है कि इस गठबंधन में कांग्रेस और कम्यूनिस्ट पार्टी भी शामिल हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस के 19 और कम्यूनिस्ट पार्टी के 12 अन्य विधायकों को मिलाकर गठबंधन के पास बहुमत से कहीं ऊपर 155 विधायक होंगे। इसके अलावा जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के चार अन्य विधायकों का भी उन्हें साथ मिल सकता है।

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