राजनैतिकशिक्षा

सांसद को जमानत

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

दिल्ली के शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद संजय सिंह को जमानत मिलना उनकी बेगुनाही का प्रमाण-पत्र नहीं है। जमानत का वैधानिक, तकनीकी आधार भी है और न्यायाधीशों के विवेक का विशेषाधिकार भी है। संजय सिंह अब भी आरोपित हैं। मुकदमा जारी रहेगा और देश को अंतिम निष्कर्ष की प्रतीक्षा रहेगी, लेकिन धनशोधन निरोधक अधिनियम में 181 दिन के बाद ही जमानत मिलना आश्चर्य भी है। आश्चर्य यह नहीं है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जमानत का विरोध क्यों नहीं किया? बल्कि जमानत के लिए अपनी सहमति भी क्यों दी? जिन्होंने अदालत की कार्यवाही नहीं देखी अथवा कानून की परिधियों से वाकिफ नहीं हैं, वे ऊल-जलूल टिप्पणियां कर रहे हैं और ईडी की पराजय आंक रहे हैं। दरअसल सर्वोच्च अदालत के तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने ईडी की मर्यादा और गरिमा का ख्याल रखा और आरोपित संजय सिंह के मानवाधिकारों का भी सम्मान किया। ‘आप’ सांसद बीती 4 अक्तूबर से ईडी की हिरासत और बाद में तिहाड़ जेल में बंद थे। उन पर कई आरोप हैं, लिहाजा उनकी जमानत याचिकाएं खारिज भी की गईं, लेकिन इस पूरे अंतराल में रिश्वत का कोई पैसा बरामद नहीं हुआ। कुछ जब्ती बगैरह भी नहीं की गई। मनी ट्रेल भी साबित नहीं की जा सकी, लिहाजा इस बार संजय सिंह ने याचिका दाखिल की, तो कमोबेश जस्टिस संजीव खन्ना ने कुछ सवाल किए। पीठ में जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पीबी वराले भी शामिल थे। बहरहाल सवाल किया गया कि यदि कोई रिश्वत लेता है, तो क्या पीएमएलए में आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से पहले रिश्वत की राशि कुर्क होनी चाहिए? न्यायिक पीठ की निर्णायक टिप्पणी यह थी कि याचिकाकर्ता लगभग 6 महीने से जेल में है। तथ्य यह है कि दिनेश अरोड़ा के पहले 9 बयानों में कुछ नहीं है। क्या अब भी संजय सिंह की हिरासत की जरूरत है? यदि केस की मेरिट पर जाएं, तो यदि हमें लगता है कि निर्देशों की आवश्यकता है, तो हम जरूर देंगे, लेकिन ध्यान रखें कि हमें कानून की धारा 45 के अनुसार याची के पक्ष में निरीक्षण करना है। इसके निहितार्थ को समझें। यह सुनवाई का ऐसा मोड़ था, जहां पीठ ने ईडी को चेतावनी दी थी। उसके बाद लंच का समय हो गया। दरअसल अदालत ने कहा था कि यदि ईडी जमानत का विरोध करता है, तो वह पीएमएलए के तहत अर्जी पर विचार करेगी। ऐसे में यदि अदालत जमानत देती है, तो शराब नीति का पूरा केस कमजोर हो जाता है।

लिहाजा लंच के बाद ईडी के वकील एसवी राजू ने मेरिट पर गए बिना ही कह दिया कि संजय सिंह को जमानत देने में ईडी को कोई आपत्ति नहीं है। न्यायिक पीठ ने भी जमानत दे दी, लेकिन यह भी कहा कि यह आदेश ‘मिसाल’ के तौर पर नहीं है। चूंकि संजय सिंह राजनीति से जुड़े व्यक्ति हैं, लिहाजा वह अपनी राजनीतिक गतिविधियां जारी रख सकते हैं, लेकिन इस केस से जुड़ा बयान न दें। बहरहाल ‘आप’ जश्न के मूड में है और इस न्यायिक फैसले को ‘सत्य की जीत’ करार दे रही है। संजय सिंह उस वक्त जेल से बाहर आए हैं, जब दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और पूर्व मंत्री सत्येन्द्र जैन तिहाड़ जेल में कैद हैं। वे सभी ‘आप’ के संस्थापक और शीर्ष नेताओं में शामिल हैं। अब संजय सिंह जेल से मुक्त हुए हैं, तो कहा जा सकता है कि पार्टी पर एक बड़े नेता का साया और संरक्षण रहेगा। यह महत्वाकांक्षा भी जाग सकती है कि संजय खुद को पार्टी के ‘नंबर दो’ नेता के तौर पर स्थापित करे। ‘आप’ में सत्ता-संघर्ष भी छिड़ सकता है। संजय सिंह खुद को लोकसभा चुनाव का ‘स्टार प्रचारक’ भी घोषित कर सकते हैं। फिलहाल मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिल्ली उच्च न्यायालय में ईडी को चुनौती दी है और अपनी गिरफ्तारी को गलत करार दिया है। फैसला बुधवार को ही आना था। मनीष सिसोदिया की याचिका पर भी 6 अप्रैल को अदालत में सुनवाई है।

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