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राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस (21 मई) पर विशेष : जरूरी है आतंकवाद के फन को कुचलना

-योगेश कुमार गोयल-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

जम्मू कश्मीर दशकों से आतंक के खौफनाक साये में जी रहा है, देश के अन्य हिस्सों में भी कभी किसी भरे बाजार में तो कभी किसी वाहन में आतंकी निर्दोषों के लहू से होली खेलकर आनंदित होते रहे हैं। पिछले कई वर्षों से देश आतंकवाद का यह खामियाजा भुगत रहा है, जिसके कारण अभी तक हजारों लोग बेमौत मारे जा चुके हैं, अनेक परिवार तबाह हो चुके हैं, बच्चे अनाथ हुए हैं, बहुत सी माएं-बहनें विधवा हो गई तो कहीं बुजुर्गों के बुढ़ापे की लाठी इसी आतंकवाद ने छीन ली। दरअसल आतंकवादी ऐसी वहशी घटनाओं को अंजाम देकर और किसी भी तरह का खूनखराबा करके आम लोगों के मन में भय पैदा करना चाहते हैं। उनके ऐसे घिनौने कृत्यों से न जाने कितने ही हंसते-खेलते परिवार एक ही झटके में बर्बाद हो जाते हैं। आतंकवाद रूपी इसी भयानक समस्या से निपटने के लिए भारत द्वारा 21 मई का दिन ‘राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा। यह दिवस वास्तव में उन लोगों को श्रद्धांजलि देने का दिन है, जिन्होंने आतंकवादी हमलों में अपनी जान गंवाई और यह उन हजारों सैनिकों के बलिदान का सम्मान भी करता है, जिन्होंने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस की आधिकारिक घोषणा 21 मई 1991 को भारत के सातवें प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद की गई थी, जो लिट्टे के एक आतंकवादी अभियान के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में मारे गए थे। राजीव गांधी श्रीपेरंबदूर में एक रैली को संबोधित करने गए थे, जहां लिट्टे से संबंधित एक महिला आतंकी अपने कपड़ों में विस्फोटक छिपाकर उनके पैर छूने के बहाने नीचे झुकी तो जबरदस्त बम धमाके में राजीव गांधी सहित करीब 25 लोगों की मौत हो गई थी। राजीव गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन वी.पी. सिंह सरकार द्वारा 21 मई को आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। इस दिवस को मनाने का अहम उद्देश्य यही है कि देश में आतंकवाद, हिंसा के खतरे और उनके समाज, लोगों तथा देश पर पड़ने वाले खतरनाक असर के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाई जाए। इस दिन सरकारी कार्यालयों, उपक्रमों तथा अन्य संस्थानों में आतंकवाद विरोधी शपथ यही दिलाई जाती है कि हम भारतवासी अपने देश की अहिंसा एवं सहनशीलता की परम्परा में दृढ़ विश्वास रखते है तथा निष्ठापूर्वक शपथ लेते हैं कि हम सभी प्रकार के आतंकवाद और हिंसा का डटकर विरोध करेंगे। हम मानव जाति के सभी वर्गों के बीच शांति, सामाजिक सद्भाव तथा सूझबूझ कायम रखने और मानव जीवन मूल्यों को खतरा पहुंचाने वाली विघटनकारी शक्तियों से लड़ने की भी शपथ लेते हैं।
देश में आतंकवादियों की कमर तोड़ने के लिए पिछले कुछ वर्षों से जिस प्रकार के सख्त कदम उठाए जा रहे हैं, उनके चलते देशभर में आतंकी घटनाओं में कमी दर्ज की जा रही है लेकिन विशेषकर जम्मू कश्मीर में अभी भी पाकिस्तान के पाले-पोसे भाड़े के टट्टू मासूम लोगों के खून से होली खेलने को लालायित रहते हैं। हालांकि बीते कुछ वर्षों में स्थिति में बड़ा बदलाव यही है कि सुरक्षा बलों के हमारे जांबाज लगभग आए दिन, शोपियां हो या कुपवाड़ा अथवा घाटी का अन्य कोई क्षेत्र, कहीं न कहीं मुठभेड़ों में दुर्दान्त आतंकियों को ढ़ेर कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में ही सुरक्षा बलों द्वारा सैंकड़ों कुख्यात आतंकियों को कुत्ते की मौत मारा जा चुका है। आतंकियों के खिलाफ चल रहे सुरक्षा बलों के अभियान के चलते इस वर्ष भी अब तक दर्जनों आतंकियों को मार गिराया गया है, जिनमें कुछ विदेशी आतंकी भी शामिल थे। विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से घाटी में सुरक्षा बलों के एनकाउंटर में सर्वाधिक आतंकवादी मारे गए हैं। हालांकि शोपियां, कुलगाम, पुलवामा जैसे क्षेत्रों में आतंकी समूहों द्वारा स्थानीय युवकों की भर्ती के मामले भी सामने आते रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा मुठभेड़ें भी यहीं हुई। सीआरपीएफ के अनुसार जम्मू कश्मीर में इस समय 91 आतंकी सक्रिय हैं लेकिन सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के कारण पिछले कुछ समय में एनकाउंटर में कई आतंकियों का सफाया किया गया तथा एलओसी के पास घुसपैठ की दर्जनभर कोशिशें भी नाकाम की गईं।
जम्मू कश्मीर में युवाओं के आतंकी संगठनों में भर्ती का मुद्दा सुरक्षा बलों के लिए गंभीर चिंता का विषय बना रहा है लेकिन राहत की बात यह है कि युवाओं को आतंकवाद के खिलाफ जागरूक करने के चलते आतंकी संगठनों में स्थानीय स्तर पर अब भर्तियां काफी कम हो रही हैं। सरकारी सूत्रों के मुताबिक आतंकी संगठनों में स्थानीय लोगों की भर्ती बीते वर्ष उससे पहले के वर्षों के मुकाबले बहुत कम हुई यानी घाटी में स्थानीय लोगों का झुकाव आतंकी संगठनों की ओर कम हो रहा है और इसका सीधा सा अर्थ है कि जम्मू कश्मीर में भी अब आतंकवादियों की कमर तोड़ने में सफलता मिल रही है। सैन्य अधिकारियों के मुताबिक दुश्मन की ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघन, घुसपैठ की कोशिश या किसी अन्य दुस्साहसिक प्रयास का कड़ाई से जवाब दिया जा रहा है। वैसे सैन्य अधिकारियों का स्पष्ट तौर पर कहना है कि आतंकवाद रोधी सख्त अभियान तब तक पूरी ताकत से चलेगा, जब तक कि घाटी में सक्रिय तमाम आतंकवादी आत्मसमर्पण नहीं कर देते या मार नहीं दिए जाते। अधिकारियों के मुताबिक शांति के फायदे लोगों तक पहुंचने से वे अब शांति बनाए रखने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। बहरहाल, देश के कोने-कोने में लोगों को इस दिशा में जागरूक करना ही समय की सबसे बड़ी मांग है कि आतंकवादी संगठनों के दुष्कृत्यों से लोगों के जान-माल तथा समाज का कितना बड़ा नुकसान होता है और अब आतंकवाद के फन को कुचलने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाने ही होंगे।

 

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