राजनैतिकशिक्षा

ट्रंप की फजीहत

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

अमेरिका में तीन नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव के बाद जिस बात का डर था, वही हुआ। हिंसा की आशंका थी और यह हुई भी। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बुधवार को सबसे बड़े संकट में नजर आया। मौका भी साधारण नहीं था और घटना भी। वॉशिंगटन की कैपिटल बिल्डिंग में अमेरिकी कांग्रेस इलेक्टोरल कॉलेज को लेकर बहस कर रही थी और इसी बहस के बाद प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन की जीत की ऑफिशियल और लीगल पुष्टि की जानी थी। इसी दौरान मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने हजारों की तादाद में प्रदर्शन शुरू कर दिया। ट्रंप समर्थक कैपिटल बिल्डिंग के भीतर दाखिल हो गए और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव रद्द करने की मांग करने लगे। इस दौरान वे हिंसक हो उठे और उन्हें रोकने के लिए नेशनल गाड्र्स को एक्शन में आना पड़ा। कैपिटल बिल्डिंग में प्रदर्शन के दौरान एक महिला को गोली लग गई। जिसकी अस्पताल में मौत हो गई। बिल्डिंग से फायरिंग की आवाजें भी सुनी गईं। कैपिटल बिल्डिंग के पास एक विस्फोटक डिवाइस भी मिली है। जिस वक्त ट्रंप समर्थक कैपिटल बिल्डिंग में दाखिल हो रहे थे, उस दौरान यूएस के सांसदों को गैस मास्क पहनने को कहा गया, क्योंकि प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए सुरक्षा बलों को आंसू गैस भी छोडनी पड़ी। आंदोलनकारी बिल्डिंग के भीतर दाखिल हो रहे थे, ऐसे में अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों ने अपनी बंदूकें भी निकाल ली थीं, ताकि हालात बिगडने पर उन्हें काबू किया जा सके। हालात किस कदर बिगड़ गए थे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

हालांकि, 3 नवंबर को ही यह तय हो गया था कि जो बाइडेन दुनिया के सबसे ताकतवर देश के अगले राष्ट्रपति होंगे। जिद्दी डोनाल्ड ट्रंप फिर भी हार मानने को तैयार नहीं थे। चुनावी धांधली के आरोप लगाकर जनमत को नकारते रहे। हिंसा की धमकियां भी दीं। यहां तक कि वे अपने स्टाफ से कहते रहे कि बाइडेन की शपथ वाले दिन भी वे व्हाइट हाउस नहीं छोड़ेंगे। ट्रंप के इस तरह के ऐलान से यह तो साफ था कि वे चुनाव में अपनी हार को आसानी से कबूल करने वाले नहीं हैं और अब संसद में जिस तरह से हंगामा और हिंसा हुई, यह शर्मसार कर देने वाली हैै। वोटिंग के 64 दिन बाद जब अमेरिकी संसद बाइडेन की जीत पर मुहर लगाने जुटी तो अमेरिकी लोकतंत्र शर्मसार हो गया। ट्रंप के समर्थक दंगाइयों में तब्दील हो गए। संसद में घुसे। तोडफोड़ और हिंसा की। बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव में बाइडेन को 306 और ट्रंप को 232 वोट मिले। सब साफ होने के बावजूद ट्रंप ने हार नहीं कबूली। उनका आरोप है कि वोटिंग के दौरान और फिर काउंटिंग में बड़े पैमाने पर धांधली हुई। कई राज्यों में केस दर्ज कराए। ज्यादातर में ट्रंप समर्थकों की अपील खारिज हो गई। दो मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी याचिकाएं खारिज कर दीं। चुनाव प्रचार के दौरान और बाद में ट्रंप इशारों में हिंसा की धमकी देते रहे हैं। बुधवार को हुई हिंसा ने साबित कर दिया कि सुरक्षा एजेंसियां ट्रम्प समर्थकों के प्लान को समझने में नाकाम रहीं। बता दें कि प्रेसिडेंट इलेक्ट की जीत पर मुहर लगाने के लिए कांग्रेस यानी अमेरिकी संसद का संयुक्त सत्र बुलाया जाता है। इसकी अध्यक्षता उप राष्ट्रपति करते हैं। इस बार इस कुर्सी पर माइक पेंस थे। पेंस रिपब्लिकन पार्टी के हैं। ट्रंप के बाद उनका ही नंबर आता है। वे भी ट्रंप समर्थकों की हरकत से बेहद खफा दिखे। कहा-यह अमेरिकी इतिहास का सबसे काला दिन है। हिंसा से लोकतंत्र को दबाया या हराया नहीं जा सकता। यह अमेरिकी जनता के भरोसे का केंद्र था, है और हमेशा रहेगा। जो भी हो, ट्रंप के समर्थकों ने जिस तरह का व्यवहार दिखाया है, उसे पूरी दुनिया वाकिफ हो चुकी है। अमेरिकी संसद से जो तस्वीरें आईं, वह काफी दिनों तक जेहन में ताजी रहेंगी और जब भी संसदीय परंपरा भंग होने का मामला सामने आएगा, तब अमेरिका का यह उदाहरण भी दिया जाएगा। बेहतर होता कि ट्रंप अपनी हार स्वीकार करते और बाइडेन के लिए सत्ता का द्वार खोलते। इससे उनकी साख बनी रहती। मगर अब जो हुआ है, उससे नुकसान ट्रंप को ही उठाना पड़ेगा।

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