राजनैतिकशिक्षा

चीन से आयात पर अंकुश का परिदृश्य

-डा. जयंतीलाल भंडारी-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

हाल ही में वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने 7 मार्च को एक एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के कार्यक्रम में कहा कि जल्द ही चीन से आयात होने वाले घटिया स्तर के 2000 उत्पादों को गुणवत्ता नियंत्रण के दायरे में लाया जाएगा। साथ ही चीन से सस्ता माल मंगाना आसान नहीं होगा। मैन्यूफैक्चरिंग के प्रोत्साहन के लिए बड़े पैमाने पर गुणवत्ता मानक का नियम लागू होगा। नि:संदेह इस समय जब चीन से हर तरह का आयात बढ़ रहा है और चीन से देश का व्यापार असंतुलन चिंताजनक स्तर पर है, तब सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है। इससे चीन से आयात पर अंकुश लगेगा। गौरतलब है कि इस समय चीन से लगातार बढ़ता व्यापार असंतुलन पूरे देश की एक बड़ी आर्थिक चिंता का कारण बन गया है और इस पर पूरे देश में विभिन्न स्तरों पर विचार मंथन हो रहा है। पिछले माह 23 फरवरी को विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एशिया इकोनॉमिक डायलॉग में कहा कि चीन से व्यापारिक असंतुलन की गंभीर चुनौती के लिए सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार नहीं है, चीन के साथ व्यापार असंतुलन के लिए सीधे तौर पर देश का उद्योग-कारोबार और देश की कंपनियां भी जिम्मेदार हैं। उन्होंने कलपुर्जे सहित संसाधनों के विभिन्न स्रोत और मध्यस्थ विकसित करने में अपने प्रभावी भूमिका नहीं निभाई है। साथ ही देश की बड़ी कंपनियां शोध एवं नवाचार के क्षेत्र में भी बहुत पीछे हैं। विगत 17 फरवरी को वाणिज्य मंत्रालय ने भारत-चीन व्यापार के वित्त वर्ष 2022-23 के अप्रैल 2022 से जनवरी 2023 तक 10 महीनों के आयात-निर्यात के जो नवीनतम आंकड़े जारी किए हैं, उनके मुताबिक इन 10 महीनों की अवधि में चीन से किए जाने वाले आयात में 9 फीसदी का उछाल आया है, जबकि इस अवधि में चीन को किए जाने वाले निर्यात में 34 फीसदी की भारी कमी आई है।

वित्त वर्ष 2022-23 के पहले 10 महीनों में भारत के द्वारा किए जाने वाले कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 13.91 फीसदी है। भारत ने 10 महीनों में कुल 83.76 अरब डॉलर का आयात चीन से किया है, जबकि इसी अवधि में भारत ने चीन को केवल 12.20 अरब डॉलर का निर्यात किया है। भारत द्वारा किए जाने निर्यात में चीन की हिस्सेदारी केवल 3.30 फीसदी है। स्थिति यह है कि इस समय जहां दुनिया के 150 से अधिक देशों में भारत से किए जाने वाले निर्यात में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिली है, वहीं चीन को निर्यात में लगातार कमी का परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। यद्यपि पिछले दो सालों में चीन और भारत के बीच सीमा पर तनाव बढ़ा है। यहां तक कि कई बार हिंसक झड़पें हुई हैं, लेकिन फिर भी व्यापार के क्षेत्र में भारत की चीन पर निर्भरता भी लगातार बढ़ी है। यहां यह उल्लेखनीय है कि वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने दिसंबर 2022 में राज्यसभा में विस्तृत रूप से जानकारी देते हुए कहा कि चीन के साथ व्यापार घाटा भारत के लिए चुनौती बना हुआ है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2004-05 में भारत और चीन के बीच 1.48 अरब डॉलर का व्यापार घाटा था।

लेकिन 2013-14 में ये बढक़र 36.21 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इस प्रकार इसमें करीब 2346 फीसदी की वृद्धि हुई। इन वर्षों में चीन से आयात भी बढक़र दस गुना से अधिक हो गया है। जहां इन वर्षों में पूरा देश चीन में निर्मित घटिया चीनी उत्पादों से भर गया और भारत लगातार बहुत कुछ चीनी सामानों पर निर्भर होता गया, वहीं अभी भी चीन से बढ़ता आयात चुनौती बना हुआ है। चीन से भारत में आने वाले सामान में विभिन्न उद्योगों के उत्पादन में काम आने वाले दवाइयों के कच्चे माल (एपीआई), दवाइयां, इलेक्ट्रिक व इलेक्ट्रानिक सामान, पशु या वनस्पति वसा. अयस्क, लावा और राख, खनिज ईंधन, अकार्बनिक रसायन, कार्बनिक रसायन, उर्वरक, कमाना या रंगाई के अर्क, विविध रासायनिक उत्पाद, प्लास्टिक, कागज और पेपरबोर्ड, कपास, कपड़े, जूते, कांच और कांच के बने पदार्थ, लोहा और इस्पात, तांबा, परमाणु रिएक्टर, बॉयलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, विद्युत मशीनरी और फर्नीचर से संबंधित है। इन सामानों का चीन से आयात लगातार बढ़ा है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि वर्ष 2014-15 से स्वदेशी उत्पादों को हरसंभव तरीके से प्रोत्साहित करके चीन से आयात घटाने के प्रयास हुए हैं। वर्ष 2019 और 2020 में चीन से तनाव के कारण जैसे-जैसे चीन की भारत के प्रति आक्रामकता और विस्तारवादी नीति सामने आई, वैसे-वैसे प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों के माध्यम से स्थानीय उत्पादों के उपयोग की लहर देश भर में बढ़ती हुई दिखाई दी।

देशभर में चीनी सामान के जोरदार बहिष्कार और सरकार के द्वारा टिक टॉक सहित विभिन्न चीनी एप पर प्रतिबंध, चीनी सामान के आयात पर नियंत्रण, कई चीनी सामान पर शुल्क वृद्धि, सरकारी विभागों में चीनी उत्पादों की जगह यथासंभव स्थानीय उत्पादों के उपयोग की प्रवृत्ति को लगातार प्रोत्साहन दिए जाने से चीन के सामानों की भारत में मांग में कमी दिखाई दी हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा बार-बार स्थानीय अर्थव्यवस्था का समर्थन करने और वोकल फॉर लोकल मुहिम के प्रसार ने स्थानीय उत्पादों की खरीदी को पहले की तुलना में अधिक समर्थन दिया। जहां वर्ष 2022 में दीपावली पर्व पर भारतीय बाजारों में चीनी उत्पादों की बिक्री में बड़ी कमी आई, वहीं मार्च 2023 में होली पर्व पर चीनी उत्पाद बाजार से लगभग गायब रहे। यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान में मैन्युफैक्चरिंग के तहत 24 सेक्टर को प्राथमिकता के साथ तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। चीन से आयात किए जाने वाले दवाई, रसायन और अन्य कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले दो वर्ष में सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव (पीएलआई) स्कीम के तहत 14 उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपए आवंटन के साथ प्रोत्साहन सुनिश्चित किए हैं। अब देश के कुछ उत्पादक चीन के कच्चे माल का विकल्प बनाने में सफल भी हुए हैं। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पीएलआई स्कीम की सफलता के कारण ही वर्ष 2022-23 में फॉर्मा उत्पादों के आयात में कमी आई है।

हम उम्मीद करें कि जिस तरह भारतीय खिलौना उद्योग ने चीन से खिलौनों के आयात में भारी कमी करके चमकीली मिसाल बनाते हुए देश और दुनिया को अचंभित किया है, उसी तरह उद्योग-कारोबार के अन्य क्षेत्रों में भी चीन से आयात घटाने और चीन को निर्यात बढ़ाने के नए अध्याय लिखे जाएंगे। हम उम्मीद करें कि चीन से घटिया स्तर के सामानों के आयात पर अंकुश लगाने से चीन के साथ देश के व्यापार असंतुलन में कमी आएगी। हम उम्मीद करें कि एक बार फिर से देश के करोड़ों लोग चीनी उत्पादों की जगह स्वदेशी उत्पादों के उपयोग के नए संकल्प के साथ आगे बढ़ेंगे। साथ ही देश के बाजार में चीन के बढ़े हुए वर्चस्व को तोडऩे के लिए पूरे देश में और अधिक उद्यमी और कारोबारी शोध और नवाचार तथा नए आइडिए को अपनाते हुए, चीनी कच्चे माल और चीन से संबंधित अन्य आयातित सामानों के स्थानीय विकल्प प्रस्तुत करने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेंगे। साथ ही देश के उद्योग-कारोबार जगत के द्वारा प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव (पीएलआई) का अधिकतम लाभ लेते हुए इसके कारगर क्रियान्वयन से चीन से आयातों का प्रभुत्व कम करने के लिए अधिकतम प्रयास किए जाएंगे। इससे चीन से आयात कम होंगे। चीन को निर्यात बढ़ेंगे और चीन से व्यापार घाटे में कमी लाई जा सकेगी। साथ ही ऐसे में चीन पर आयात निर्भरता पर अंकुश लगाया जा सकेगा।

 

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