राजनैतिकशिक्षा

सरकार का आटा बेचना

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

अचानक सरकार को आटा बेचने की बात क्यों सूझी? अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी वजह कुछ महीनों के बाद होने वाला आम चुनाव है। चुनाव में महंगाई एक बड़ा मुद्दा ना बने, इसके लिए सरकार ने एहतियाती कदम उठाया है।आर्थिक नीतियों पर बात करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दो खास कथन रहा है। एक तो यह कि सरकार को कारोबार में नहीं रहना चाहिए और दूसरा यह कि वे लोगों को खैरात पर निर्भर रखने के बजाय उन्हें आत्म-निर्भर बनाना चाहते हैँ। अब चूंकि मोदी को केंद्र की सत्ता में आए साढ़े नौ साल हो चुके हैं, इसलिए जब कभी उनकी सरकार इस सोच के खिलाफ काम करती दिखती है, तो उचित ही है कि उस पर सवाल उठाए जाते हैँ। ऐसे ही प्रश्न सरकार के आटा बेचने के फैसले से उठे हैं। केंद्र ने नाफेड के जरिए कम दाम पर आटा बेचने की शुरुआत कुछ महीने पहले की थी। उस समय भारत आटाÓ नाम की योजना प्रायोगिक पहल रूप में शुरू की गई थी। अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू कर दिया गया है। यह आटा केंद्रीय भंडार, नाफेड और एनसीसीएफ के केंद्रों और मोबाइल वैनों के जरिए जगह-जगह बेचा जाएगा। धीरे-धीरे इसे सहकारी केंद्रों और खुदरा दुकानों तक भी पहुंचाने की योजना है। प्रायोगिक पहल के समय इसका दाम 29.50 रुपये प्रति किलो था।अब कीमत दो रुपए और घटा दिया गया है। यानी सरकार इसे 27.50 रु. प्रति किलो की दर से बेचेगी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस समय खुले बाजार में आटा औसतत 35.99 प्रति किलो के दाम पर बिक रहा है। हालांकि अच्छी क्वालिटी का आटा इससे काफी महंगा है। तो अब सवाल उठा है कि अचानक सरकार को आटा बेचने की बात क्यों सूझी? अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी वजह कुछ महीनों के बाद होने वाला आम चुनाव है। चुनाव में महंगाई एक बड़ा मुद्दा ना बने, इसके लिए सरकार ने एहतियाती कदम उठाए हैँ। इसी के तहत रसोई गैस के सिलिंडर की कीमत में 200 रु. की कटौती की गई थी। देश में खाने-पीने की चीजों के दाम लगातार बढ़े हुए हैं। सितंबर में कुल मिलाकर खुदरा मुद्रास्फीति 5.02 प्रतिशत थी। लेकिन खाद्य मुद्रास्फीति की दर 6.56 थी। तो अब सरकार ने एफसीआई के गोदामों से ढाई लाख मिट्रिक टन गेहूं अलग कर यह योजना शुरू की है। अब नजरें इसके असर को देखने पर टिकी हैं।

 

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