राजनैतिकशिक्षा

स्मृति जी, ये लोकसभा और विपक्ष है घर के आंगन में सौतन से युद्ध नहीं

-निर्मल रानी-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

स्मृति ईरानी की गिनती अब भाजपा के बड़े नेताओं में तो ज़रूर होने लगी है परन्तु उनका तर्ज़-ए-सियासत ख़ास तौर पर कभी कभी उनका आक्रामक बर्ताव यह सोचने को विवश करता है कि उनके पास अभी भी राजनैतिक परिपक्वता की भारी कमी है। हाँ बात को घुमा फिराकर असली मुद्दे से ध्यान भटकाना,इस कला में वह अवश्य निपुण हैं। संभव है उनकी इसी विशेषता और उनकी आक्रामकता को ही ध्यान में रखते हुये मोदी सरकार ने प्रायः उन्हें अपने मंत्रिमंडल में अहम मंत्रालयों का पदभार सौंपा गया हो? वे भाजपा संगठन में जहां सचिव से लेकर उपाध्यक्ष व भाजपा महिला मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रहीं वहीँ मानव संसाधन मंत्रालय,कपड़ा मंत्रालय, अल्पसंख्यक मंत्रालय और अब महिला व बाल विकास मंत्रालय जैसे ज़िम्मेदार मंत्रालय की समय समय पर ज़िम्मेदारी भी संभालती रहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उनपर कितनी कृपा दृष्टि है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें 2011-से 2019 तक गुजरात से राज्य सभा सदस्य बनाया गया। और 2014 में जब वे अमेठी से चुनाव हारने के बावजूद भी उन्हें केंद्रीय मंत्री का पद ‘भेंट’ किया गया। बहरहाल बिना किसी विशेषता के तो इतने महत्वपूर्ण पदों पर लगातार मनोनयन तो नहीं हो सकता।

पिछले दिनों उनकी इसी ‘अतिरिक्त विशेषता’ की एक ज़बरदस्त बानगी संसद में देखने को मिली। दरअसल गत 26 जुलाई को प्रश्नकाल के दौरान कांग्रेस की गुजरात से राज्य सभा सांसद अमी याग्निक ने स्मृति ईरानी से यह पूछने का साहस क्या कर लिया कि ‘वह स्वयं और मंत्रिमंडल में उनकी महिला सहयोगी मणिपुर के मुद्दे पर कब बोलेंगी’? बस अमी याग्निक के इतना पूछते ही स्मृति ईरानी तो बौखला उठीं। और मणिपुर की बात करने के बजाय विपक्ष पर ही आक्रमण करना शुरू कर दिया। अमी याग्निक के मणिपुर के सवाल पर आग बबूला स्मृति ईरानी ने बार बार चीख़ चीख़ कर कहा कि वह इस बात पर घोर आपत्ति व्यक्त करती हैं। उन्होंने कहा कि न केवल महिला मंत्रियों बल्कि महिला राजनीतिक नेताओं को भी मणिपुर के साथ ही छत्तीसगढ़, राजस्थान एवं बिहार में होने वाली घटनाओं पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इतना ही नहीं बल्कि बड़ी ही चतुराई से अपनी सरकार व पार्टी का मणिपुर से लेकर दिल्ली तक बचाव करते हुये ईरानी ने यह भी आरोप लगा दिया कि कांग्रेस मणिपुर हिंसा के तथ्य छिपा रही है। उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर भी बड़ा आरोप लगाते हुये कहा कि राहुल ने मणिपुर में आग लगा दी है। आग बबूला स्मृति ईरानी तमतमाये हुये चेहरे व पूरे आक्रामक तेवर के साथ गला फाड़ कर विपक्ष पर ही सवालों की बौछार करती रहीं। वे बार बार पूछती रहीं -‘कि आपमें छत्तीसगढ़ पर चर्चा करने की हिम्मत कब होगी? बिहार में क्या हो रहा है उस पर चर्चा करने की हिम्मत कब होगी? हमें यह बताने की हिम्मत कब होगी कि कांग्रेस शासित राज्यों में महिलाओं के साथ कैसे दुष्कर्म होता है? इतना ही नहीं, मंत्री ने कहा कि आप में हिम्मत कब होगी बताएं कि राहुल गांधी ने मणिपुर में कैसे आग लगा दी?

दरअसल स्मृति ईरानी की संसद में इस क़द्र आक्रामकता दिखाने की कोई वजह इसलिये भी नहीं थी क्योंकि वह भी महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं और सवाल करने वाली सांसद भी महिला थीं। और प्रश्न भी मणिपुर की उन महिलाओं को लेकर था जिन्हें कथित तौर पर भीड़ द्वारा नग्न घुमाया गया,उनका सामूहिक यौन शोषण किया गया,यहां तक कि पुलिस द्वारा ही उन महिलाओं को पकड़कर भीड़ के सुपुर्द करने जैसे गंभीर आरोप हैं। इसलिये सांसद का विशेषकर किसी हिला सांसद का एक महिला विकास मंत्री से सवाल करना किसी भी तरह से ग़ैर मुनासिब नहीं था। रहा सवाल राजस्थान,छत्तीसगढ़ जैसे (कांग्रेस शासित) राज्यों का ज़िक्र करने का तो यही तो स्मृति ईरानी की विशेषता है जो उन्हें मंत्री बने रहने में सहायक होती है। उन्होंने राजस्थान,छत्तीसगढ़ के साथ बिहार भी जोड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस वक्तव्य पर ही पुष्प अर्पित किये जो उन्होंने संसद की कार्रवाई शुरू होने से पहले संसद के बाहर दिये थे। और मणिपुर पर पहली बार बोलते हुये साथ ही राजस्थान व छत्तीसगढ़ का भी ज़िक्र किया था। इसके बाद प्रधानमंत्री की काफ़ी आलोचना भी हुई थी।

परन्तु पिछले दिनों मणिपुर पर सुनवाई के दौरान ही जब एक वकील बांसुरी स्वराज ने मुख्य न्यायाधीश से कहा कि -‘बंगाल से महिलाओं के साथ हिंसा के 9 हज़ार ‘ से अधिक मामले सामने आये हैं। वकील ने अदालत से कहा यह अदालत मणिपुर में जिस भी तरीक़े से मामले की जांच कराना चाहती है ठीक उसी तरह की जांच पश्चिम बंगाल, राजस्थान,छत्तीसगढ़ और केरल में भी होनी चाहिए, जहां इसी (मणिपुर) तरह की घटनाएं हुई हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि -‘मणिपुर में जो कुछ हुआ उसे हम यह कहकर उचित नहीं ठहरा सकते कि ऐसा कहीं और भी हुआ है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम एक ऐसी चीज़ से निपट रहे हैं जो अभूतपूर्व प्रकृति की है। उन्होंने कहा कि यहां हिंसा सांप्रदायिक भी है और संप्रदायों के बीच भेदभाव घृणा व पूर्वाग्रह से ग्रस्त भी है। अपनी इसी टिप्पणी के साथ मुख्य न्यायाधीश ने वकील की बात की अनसुनी कर दी। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर स्मृति ईरानी तक और मणिपुर की तुलना अन्य राज्यों से करने वाले सभी नेताओं को मुख्य न्यायाधीश व मणिपुर की सुनवाई पर बैठी माननीय न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय बेंच की टिपण्णी से सबक़ लेने की ज़रुरत है। बल्कि हिंसाग्रस्त मणिपुर की तुलना 2002 के गुजरात से ज़रूर की जा रही है। हाँ, राजनैतिक विमर्श में स्मृति जी को यह ध्यान ज़रूर रखना चाहिये कि सदन की गरिमा व मान मर्यादा का पूरा ख़याल रखा जाये। यहां पक्ष और विपक्ष दोनों में ही एक से बढ़कर एक पूर्णकालिक वरिष्ठ नेता मौजूद हैं जो देश का मार्गदर्शन करते रहे हैं। यहाँ तमीज़,तहज़ीब और मान मर्यादा का प्रदर्शन होना चाहिये न की अपने आक़ा के सामने अपने नंबर बनाने के लिये अपना गला ही फाड़ दिया जाये। लिहाज़ा,स्मृति जी,ध्यान रखिये यह संसद और विपक्ष है घर के आंगन में सौतन से युद्ध नहीं।

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