राजनैतिकशिक्षा

कर्ज चुकाने के लिए कर्ज ले रही हैं सरकारें

-सनत जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

पिछले वर्षों में केंद्र एवं राज्य सरकारों का कर्ज लगातार बढ़ता ही जा रहा है। केंद्र एवं राज्य सरकार की आय का बड़ा हिस्सा कर्ज के ब्याज और किस्त के रूप में जा रहा है। जिसके कारण विकास कार्य और जन सामान्य की योजनाओं पर विपरीत असर पड़ने लगा है। पिछले वर्षों में लगातार टैक्सों में वृद्धि की गई है। जीएसटी के माध्यम से अब खाने-पीने की और रोजमर्रा की सभी चीजों पर 12 फ़ीसदी से लेकर 28 फ़ीसदी तक टैक्स लग रहा है। जीएसटी लागू होने के बाद भी बड़ा ‎निर्धनवर्ग भी भारी टेक्स के दायरे में आ गया है। ‎जिसके कारण उसके जीवन यापन में मु‎श्किलें पैदा हो गई हैं। रही-सही कसर पेट्रोल, डीजल और गैस में भी उपभोक्ताओं को भारी टैक्स के रुप में चुकाना पड़ रहा है। ‎निम्न एवं मध्यम वर्ग के नागरिकों को अपनी आय का 60 फ़ीसदी तक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से टैक्स में चुकाना पड़ रहा है। जिसके कारण नागरिकों की क्रय क्षमता दिनों दिन कम होती जा रही है।
हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार को ब्याज चुकाने के लिए अनुपूरक बजट में मांग करनी पड़ी। 2269.90 करोड का प्रावधान मध्य प्रदेश सरकार ने बजट में कर रखा था। ब्याज की रकम ज्यादा हो गई है, इसलिए सरकार ने अनुपूरक बजट के माध्यम से 761.90 करोड़ रुपए और स्वीकृत कराए। मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले 2 माह में 6000 करोड़ रुपए का कर्ज बाजार से लिया है। राज्य सरकार के ऊपर पहले से ही 3, 31, 000 करोड़ रुपए का कर्ज है। जबकि बजट में 3, 14, 000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा चुनाव पूर्व कई ऐसी घोषणा की गई हैं। जिसके कारण सरकार का कर्ज लगातार बढ़ रहा है। भुगतान संतुलन बनाए रखने के लिए राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को अब कर्ज का सहारा लेना पड़ रहा है। यह स्थिति अकेले मध्यप्रदेश की नहीं है। लगभग लगभग सभी राज्यों की है।
उदाहरण स्वरुप मध्यप्रदेश सरकार ने दो लाख करोड़ रुपए के विकास कार्य के भूमि पूजन कर दिए हैं। लेकिन इनके लिए धन कहां से आएगा, इसके बारे में वित्त मंत्रालय के अ‎धिकारी भी नहीं बता पा रहा हैं, कि ‎किस तरह से यह धन प्राप्त होगा। आम जनता पर ‎वि‎भिन्न तरह से पिछले वर्षों में टैक्स की भारी वृद्धि की गई है। सरकारी यदि टैक्स को बढ़ाएगी तो आम जनता सड़कों पर आने के लिए अब विवश हो जाएगी। लोगों के अपने घर का जरूरी खर्चा भी पूरा नहीं हो पा रहा है। लगातार उन्हें अपने खर्चों में कटौती कर रहे हैं। राहत मिलना तो दूर, उनके ऊपर यदि टैक्स बढ़ाया गया तो उनका जीवन ही मुश्किल में पड़ जाएगा। सरकार द्वारा समय पर जो ‎विकास कार्य एवं ‎निमार्ण कार्य करने थे, समय पर रा‎शि उपलब्ध नहीं होने के कारण उनकी लागत भी बढ़ रही है। योजनाओं का लाभ भी आम जनता को नहीं ‎मिल पा रहा है। चुनाव को देखते हुए राज्य सरकारों एवं केन्द्र सरकार द्वारा लोक लुभावन योजनाओं के ‎लिये खजाने की रा‎शि को ‎बिना सोचे-समझे खर्च ‎किया जा रहा है। इससे ‎वित्तीय ‎स्थिति ‎दिनों-‎दिन खराब हो रही है। केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ-साथ सभी राजनीतिक दलों को इस आर्थिक स्थिति के बारे में चिंतन करने की जरूरत है। समय रहते यदि आ‎र्थिक ‎स्थिति पर ‎विचार नहीं किया गया तो इसके दुष्परिणाम सभी को भोगने पड़ेंगे।

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