राजनैतिकशिक्षा

लोकतंत्र पर हावी अपराधी,कैसे थमे अपराध?

-डॉ. भरत मिश्र प्राची-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

देश में जब-जब भी चुनाव होते रहे है, सभी राजनीतिक दलों की नजर ऐन केन प्रकारेण सत्ता हथियाने की रही है। इस प्रक्रिया में प्रत्याशियों के चयन, चंदे देने वालों एवं चुनाव में मदद करने वालों के आचरण से किसी भी राजनीतिक दल को कोई लेना देना नहीं है। सबका एक हीं लक्ष्य होता है, अधिक से अधिक सीट पाकर सत्ता पर कब्जा करना। जिसके कारण लोकतंत्र में आपराधिक प्रवृत्ति से जुड़े लोगों का स्वयं जनप्रतिनिधि बनने से लेकरं जनप्रतिधि बनाने में अर्थ एवं बाहुबल सहयोग देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की पृष्ठिभूमि अग्रसर होती जा रही है। जिससे लोकतंत्र में अपराधियों का बोलबाला दिन पर दिन बढ़ता हीं जा रहा है। फिर इस तरह के परिवेश में अपराध कैसे थमे, विचारणीय पहलू है।
भारतीय राजनीति में धन व अपराध की भूमिका कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। सांसदों की बढ़ती अमीरी उन्हें जनता से दूर ले जा रही है एवं आपराधिक पृष्ठिभूमि के आरोपित सांसदों के चलते अपराध में चार चांद लगते जा रहे है। इस तरह के परिवेश को समझने के लिये गत लोकसभा चुनाव के राजनीतिक परिदृश्य पर एक नजर डाले जहां आकड़े के मुताबिक आपराधिक पृष्ठिभूमि वाले सांसदों की संख्या वर्ष 2004 में 128, वर्ष 2009 में 162, वर्ष 2014 में 185 एवं 2019 में बढ़कर 233 हो गई। वर्ष 2024 में निश्चित तौर पर इस संख्या में और वृद्धि होना स्वाभाविक है। इसी तरह के आकड़े देश में विभिन्न राज्यों के विधान सभा में भी देखे जा सकते। जिसके कारण देश में अपराध तो निरंतर बढ़ते हीं जा रहे है, लोकसभा एवं विधानसभा की गरिमा इनके कुत्सित आचरण के चलते दिन पर दिन गिरती ही जा रही है। जहां आये दिन मेज, माईक तोड़ने, गाली-गलौज देने, हाथा-पाई से लेकर कपड़े फाड़ के परिदृश्य उजागर होते ही रहते है। आपराधिक पृष्ठिभूमि से जुड़े जनप्रतिनिधियों की यह वृद्धि इसी तरह निरंतर जारी रही तो आने वाले समय में लोकतंत्र पर पूर्णरूपेण अपराधी हावी नजर आयेंगे फिर लोकतंत्र का क्या स्वरूप उजागर हो सकेगा, सहज अनुमान लगाया जा सकता।
इस तरह के उभरते परिवेश के लिये देश का जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम भी पूर्णरूपेण जिम्मेवार है जो इस दिशा में जिनपर केवल मुकदमा चल रहा है, चाहे कितना ही गंभीर अपराध से जुड़ा मामला हो, सजा नहीं मिलने तक चुनाव लड़ने की इजाजत देता है। इस मामले में ऐसे भी जनप्रतिनिधि जो अपराध के मामलें में जेल में बंद है, चुनाव में भाग लेते ही नहीं देखे जाते, विजयी भी घोषित कर दिये जाते। जब तक इस अधिनियम में अपराध से जुड़े लोगों को जनप्रतिधि बनने की प्रक्रिया से रोकने का प्रावधान नहीं होगा तब तक लोकतंत्र में अपराधियों का आना नहीं थमेगा। जनप्रतिनिधि अधिनियम में भी बदलाव जनप्रतिनिधियों के सहयोग से हीं संभव है। आ बैल मुझे मार, जहां लोकसभा में आपराधिक मामलों से आरोपित जनप्रतिधियों का वर्चस्व हावी है, जनप्रतिनिधि अधिनियम में संशोधन संभव नहीं। फिर इस तरह के महौल में बदलाव हेतु चुनाव आयोग एवं देश के सर्वोच्य न्यायालय को ही कोई रास्ता निकालना होगा जिससे लोकतंत्र में अपराधियों का प्रवेश थमे तभी देश को अपराध मुक्त कराया जा सकेगा। जब तक लोकतंत्र पर अपराधी हावी रहेंगे, देश में अपराध होते हीं रहेंगे। अपराध को नियंत्रित करने वाले तंत्र पर विधायिका का नियंत्रण है। देश की विधायिका पर अपराधियों का जबतक बोलबाला रहेगा, देश में अपराध थमने का नाम नहीं लेगा। इस तथ्य को देश हित में समझना बहुत जरूरी है ताकि आने वाला कल अपराध मुक्त लोकतंत्र को उजागर कर सके।

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