राजनैतिकशिक्षा

हक़ीक़त या जो सरकार के दस्तावेज़ कहे वो सच हो

-विजय तिवारी-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

मोदी सरकार की यह पहल, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उनके फ़ैक्ट को लिफाफे को लगातार नामंज़ूर किए जाने से उत्पन्न हुई है। वे अपना सच “सिर्फ” अदालत के सामने ही रखना चाहते थे, जिसे प्रधान न्यायधीश चंद्रचूड़ ने न्याय के सिद्धांतों के विपरीत बताते हुए, सॉलिसीटर जनरल को अपनी दलील दूसरे पक्ष को बताने को कहा। अब इस स्थिति से यह आभास होता है कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा बता कर जिस प्रकार एनएसए लगा कर लोगों को निरूढ़ कर रही थी उस पर रोक लग गयी है। खासकर केरल के एक चैनल को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर बंद करने के केन्द्रीय सरकार के फरमान पर ओरधान न्यायाधीश ने कहा कि मात्र आपके कह देने से कोई देश की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं हो जाता, उसके लिए आपको ठोस कारण बताने होंगे। इतना ही नहीं आपके कारणों को हम एक एमिकस कुइरी नियुक्त कर जांच कराएंगे। अब इस स्थिति के बाद मोदी सरकार के पास सरकार की आलोचना को देशद्रोह की श्रेणी में लाना नामुमकिन हो गया हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए ही, जजों के खिलाफ विष वामन करने वाले केंद्रीय कानून मंत्री किरण ऋजुजु के मंत्रालय ने यह नई चाल चली हैं।

यहां सवाल यह पैदा होता हैं कि यह यूनिट समाचारों की सच्चाई को किस पैमाने से परखेंगी? क्या दस्तवेजी तथ्य ही सबूत होंगे अथवा सरकार उन दस्तावेज़ों की जो परिभाषा करेगी वही सच होगा। उदाहरण के तौर पर बड़े – बड़े अखबारों में रोज – रोज फुल फुल पेज के विज्ञापन को सरकार की नियत माने अथवा फैसले? अब अगर इनको घोषणाएं माने तब इनकी पूर्ति की खोजबीन जब धरातल पर होगी तब सरकार के फैसले और उसकी धरातल पर कारवाई को ही फ़ैक्ट कहा जाएगा अथवा उसे प्रशासनिक कार्रवाई कहकर जिम्मेदारों को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 34 के अंतर्गत संरक्षण मिलेगा! जबकि सरकार की असलियत उजागर करने वाले को फ़ैक्ट चेक यूनिट का नोटिस! क्यूंकि सरकार के फैसलों की जमीनी हक़ीक़त तो लोगों से बात करके और कुछ दस्तावेजी सबूतो से होगी। उदाहरण के तौर पर आज की ही खबर है कि मध्यप्रदेश सरकार ने एक लाख लोगों को रोजगार सुलभ यानि नौकरियां देने का वादा किया है। अब इनमें से उन लोगों को भी सरकारी नौकरियों में दिखाने की कोशिश है जो नौकरी दिलाने वाली कंपनियों के कर्मचारी होते हैं जिन्हें किसी प्रोजेक्ट के तहत काम पर रखा जाता है। सरकार कांटरैक्ट पर यानि 90 दिन के संविदा पर काम करने वालों को भी सरकारी नौकरी बताया जा रहा हैं! अमूमन सरकारी नौकरी का अर्थ होता हैं जहां उचित रूप से, किसी पे-स्केल मे नियत पद पर नियुक्ति। ना की 90 दिन की अवधि पर भाड़े के लोगों को काम देना! अब सरकार का पक्ष यह होगा कि हमने लोगों को रोजगार मुहैया करा दिया हैं। तब सवाल यह होगा कि क्यूं नहीं सरकार ईमानदारी से यह सार्वजनिक रूप से मानती है कि हम एक लाख लोगों अस्थायी रूप से आजीविका सुलभ करा रहे हैं! जैसा कि किसानों की फसल नष्ट हो जाने पर उनकी फसल के नुकसान की सौ प्रतिशत भरपाई नहीं होती है बस कुल फसल के मूल्य का एक छोटे से भाग का ही मुआवजा मिलता हैं।

वैसे इस फ़ैक्ट चेक यूनिट का असली काम केंद्र सरकार से जुड़ी खबरों की ही सच्चाई का पता लगाना है। राजी सरकारों को यह संरक्षण नहीं है। मतलब यह की प्रदेश की बीजेपी सरकारों को खबरों की सच्चाई पर भरोसा हैं। क्यूंकि मध्य प्रदेश में ही किस खबर पर चाहे दुर्घटना हो अथवा घोटाला सरकार के मंत्री प्रवक्ता का उस पर जवाब मिल जाता है। पत्रकार अपनी खबर में अपने तथ्य रखने के बाद खबर लिखता हैं। इसलिए खबर के गलत या भ्रामक होने की स्थिति नहीं बनती। परंतु दिल्ली में जिस मंत्रालय की खबर होती है वह अगर प्रैस इन्फार्मेशन ब्यूएरो को इनपुट देता हैं तब तो पत्रकार इस्तेमाल कर सकता हैं। परंतु 100 में से 90 प्रतिशत मामलों में ना तो मंत्रालय को परवाह होती है कि वह सामने आकार हक़ीक़त बताए ना ही वह पीआईबी को जानकारी सुलभ करता हैं।

तब पत्रकार को अपने सूत्रों के भरोसे ही खबर की सच्चाई पर भरोसा करना पड़ता हैं। सच्चाई या हक़ीक़त को जो सरकार के खिलाफ हो उसे राष्ट्रीय खतरा बताने का काम आस्ट्रेलिया की एक सरकार ने किया था। जिस पर वहां के सभी अखबारों ने एक दिन समाचार पत्रों का प्रकाशन ही नहीं किया, इस विरोध प्रदर्शन के बाद भी सरकार अड़ी रही तब, पत्रकारों और अखबारों ने मिलकर हड़ताल जारी रखी। तब सरकार को झुकना पड़ा। हुआ यह था कि सरकार द्वारा बहुराष्ट्रिय कंपनियों को रक्षा और खनन के क्षेत्र में ठेके दिये गए थे। राष्ट्र के पर्यावरण और सुरक्षा में की जा रही गड़बडि़यों के कारण थे। परंतु कतिपय नेताओं ने अपने आर्थिक लाभ के लिए ये फैसले लिए थे। उनमें से एक फैसला अदानी की एक कंपनी को कोला खनन और विद्युत उत्पादन का भी था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस ठेके को लेकर घोर आपति जताई थी और अपनी रिपोर्ट में इस प्रोजेक्ट को पर्यावरण के लिए अति घातक बताया था। परंतु जैसा की होता है नेताओं को राष्ट्र और इसके नागरिकों के स्वास्थ्य और हित से अधिक अपनी संपत्ति का ख्याल रहता हैं। अब इसको फ़ैक्ट चेक कैसे करेंगे की नहीं थर्मल विद्युत उत्पादन इकाई से क्षेत्र का पर्यवरन प्रदूषित नहीं होगा! लेकिन सरकार तो यही कहेगी कि बिजली की सुलभता और आर्थिक विकास के लिए औद्यगीकरण जरूर है। फिर उस इलाके के लोग सांस फूलने और अन्य बीमारियों से जूझते रहे। यह है फ़ैक्ट चेक यूनिट का कमाल।

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