प्रधान न्यायाधीश से अपेक्षाएं
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश के नए प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई है। वह देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश हैं। उनका कार्यकाल नवंबर, 2024 तक होगा, जो हाल के कालखंड में सर्वाधिक है। जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने ऐसे विरोधाभासी और नाजुक वक़्त में प्रधान न्यायाधीश का दायित्व ग्रहण किया है, जब भारत आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय ताकत के रूप में स्थापित हो रहा है, लेकिन दूसरी तरफ देश के आम आदमी तक ‘न्याय’ दुर्लभ है। वह सर्वोच्च अदालत तक पहुंचने और इंसाफ पाने की कल्पना तक नहीं कर सकता। एक न्यायाधीश की ही टिप्पणी थी कि यदि किसी इनसान को बर्बाद करना है, तो उसे कैंसर या अदालत के चक्कर में फंसा दिया जाए। यह मान्यता और परिभाषा प्रतीकात्मक भी हो सकती है, लेकिन देश की अदालतों में लंबित मामलों की जो संख्या है, उनके जरिए ही इंसाफ की असलियत और व्यापकता को समझा जा सकता है। आम आदमी के लिए सामाजिक न्याय, समानता, संवैधानिक और मौलिक अधिकारों की रक्षा आदि पर न्यायपालिका न्याय सुनिश्चित कर सके, फिलहाल वह दिन देखना अभी बहुत दूर है।
बेशक अदालतों ने अपने स्तर पर ही कई मुद्दों और समस्याओं पर संज्ञान लेकर न्यायिक फैसले सुनाए हैं, लेकिन संपूर्ण न्याय की अपेक्षाएं और उम्मीदें आज भी शेष और क्षीण हैं। यह न्यायपालिका की सबसे संवेदनशील और गंभीर चुनौती है। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ के सामने ऐसी व्यवस्था और हालात बदलने की कई विराट चुनौतियां हैं, क्योंकि देश के आर्थिक विकास के साथ-साथ अपराध के रंग भी बदले हैं। अपराध भी अब साइबर और पेंचदार तकनीकी हो गया है। न्यायपालिका की विश्वसनीयता, निष्पक्षता और तटस्थता को लेकर लगातार सवाल किए जा रहे हैं। प्रधान न्यायाधीश को संस्थान की गरिमा को बचाना और उसे बरकरार रखना है। सोशल मीडिया की बेलगाम स्वच्छंदता भी है और सामान्य मीडिया भी सवालिया होता जा रहा है। देश का आम नागरिक कहां जाए और किससे गुहार करे? हम मानते हैं कि देश की तमाम सूक्ष्मतम समस्याएं और चिंताएं जस्टिस चंद्रचूड़ ही नहीं देख सकते। उनका अधिकार-क्षेत्र असीमित है, तो संवैधानिक दायित्व भी बहुआयामी हैं। वह देश की संवैधानिक और संसदीय व्यवस्था तथा कार्यवाहियों के पहरेदार और समीक्षक भी हैं, लिहाजा प्रधान न्यायाधीश रहते हुए जस्टिस यूयू ललित ने साल भर संविधान पीठ की सक्रियता का जो मानक तय किया था, जस्टिस चंद्रचूड़ को उसे आगे बढ़ाना और विस्तार देना है। नतीजतन अधिक विवादास्पद और संवेदनशील मामलों का निपटारा जल्द हो सकेगा और संविधान पीठ का फैसला अधिक न्यायिक माना जाएगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ भारतीय न्यायपालिका के प्रथम न्यायकार और अधिकारी हैं, लिहाजा वह सबसे निचली अदालत तक व्यवस्था दुरुस्त करने का आदेश दे सकते हैं। उसकी समीक्षा का एक तंत्र बना सकते हैं और उसमें न्यायिक सुधार भी कर सकते हैं, क्योंकि उनके पास कार्यकाल की व्यापकता है, लिहाजा तमाम बदलाव समयबद्ध भी होने चाहिए। हमारा मानना है कि जस्टिस चंद्रचूड़ के लिए सर्वोच्च अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्ति वाले कॉलेजियम पर, केंद्र सरकार के साथ किसी विवाद पर, ज्यादा जवाबदेह और पारदर्शी होने के बजाय उनका ‘मानवतावादी’ होना ज्यादा अनिवार्य और अपेक्षित है। वह बहुशिक्षित कानूनविद हैं, लिहाजा उनसे अपेक्षाएं भी अधिक हैं।