राजनैतिकशिक्षा

विपक्ष कमजोर, पक्ष का बढ़ता जोर

-डॉ. भरत मिश्र प्राची-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

वर्तमान समय में देश में विपक्षी राजनीतिक दलों में आपसी तालमेल नहीं होने के कारण दिन पर दिन विपक्ष कमजोर होता जा रहा है, ऐसी हालात में पक्ष का जोर बढ़ना स्वाभाविक है। एक समय ऐसा था मुद्दों को लेकर विपक्ष एकजूट होकर विरोध करता। पर आज मुद्दें तो है पर विपक्ष एक नहीं। जिसके वजह से दिन पर दिन पक्ष विपक्ष पर भारी होता जा रहा है। पक्ष की राजनीतिक चाल में विपक्ष की एकता उलझ गई है। आज कुछ स्थिति बदली-बदली सी नजर आने लगी है जहां विपक्ष बिखरा ही नहीं, आपस में एक दूसरे का तमाशा भी देख रहा है। इस हालात को जरा नजदीक से देखें जहां भ्रष्टाचार के मामले को लेकर सत्ता पक्ष की अधीनस्थ कार्यरत देश की जांच एजेंसियों का घेरा विपक्ष के किसी एक राजनीतिक दल की ओर बढ़ता है तो दूसरा राजनीतिक दल जांच एजेंसी के इस कदम का विरोध करने के वजाय उसे सही ठहराते हुये सत्ता पक्ष की ताकत को मजबूत करता नजर आ रहा है पर जब वहीं राजनीतिक जांच एजेंसियों की चपेट में आता है तो बिलबिलाने लगता है। तब उसे विपक्षी एकता याद आने लगती है। पर विपक्ष एक नहीं हो पाता जिसका लाभ सत्ता पक्ष पूणरूपेण उठा रहा है। इस तरह के हालात आज विपक्ष को इस तरह कमजोर बना दिया है जहां सत्ता पक्ष से टक्कर लेना आसान नहीं रह गया। आज के परिवेश में इन्हीं कारणों से देश में ज्वलंत मुद्दें महंगाई एवं बेराजगारी होने के वावयूद भी केन्द्र की सत्ता पक्ष की तूंती देश भर में मुखर हो रही है। एक ओर विपक्ष जांच घेरे एजेंसियों के चंगुल में फंसता जा रहा तो दूसरी ओर सत्ता पक्ष अपनी राजनीतिक चाल में सफल होता जा रहा है जहां फिर से सत्ता उसके पास आती नजर आ रही है।
इस तरह के परिवेश पर एक नजर डाले जब केन्द्रीय जांच एजेंसियों के घेरे कांग्रेस के पूर्व अघ्यक्ष राहुल गांधी एवं कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी की ओर बढ़े तो आप के नेता तमाशबीन बने रहे, आज जब आप के वरिष्ठ नेता दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जांच के घेरे में आये तो कांग्रेस के कुछ नेता के खुश होने की खबर उभरी। इस तरह के परिवेश का राजनीतिक लाभ सत्ता पक्ष को स्वतः ही मिलता जा रहा है। सत्ता पक्ष के इसारे जांच एजेंसियों की कार्यवाही को विपक्ष सत्ता पक्ष के इसारे पर की जा रही कार्यवाही मान रहा है तों सत्ता पक्ष इसे कानूनी पक्ष बता कर अपना पल्ला झाड़ रहा है।
केन्द्रीय जांच एजेंसियों की जांच प्रक्रिया भले ही अपनी जगह पर सही हो सकती है पर जांच एजेंसियों की कार्यवाही के घेरे में केवल विपक्ष ही दिखाई दे, सत्ता पक्ष इस तरह की कार्यवाही से बचा रहे, संदेह के दायरा बढ़ना स्वाभाविक है। जब केन्द्रीय जांच एजेंसियों की कार्यवाही चुनाव से पूर्व एकतरफा विपक्ष को घेरे में लेता नजर आये तो सत्ता पक्ष के इसारे पर की जा रही कार्यवाही को नकारा नहीं जा सकता। इस तरह के परिवेश पहले भी होते रहे है जहां सत्ता पक्ष अपने हित में जनता द्वारा दी गई शक्ति का दुरूपयोग जांच एजेंसियों, के माध्यम से करता रहा है आज भी हो रहा है। इस तरह की प्रक्रिया से लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है पर लोकतंत्र सही रहे, इस बारे में कोई नहीं सोचता। जिसके हाथ सत्ता होती है सत्ता का दुरूपयोग अपने हित में करता ही है। इस तरह के परिवेश को आज नकारा नहीं जा सकता तभी तो जांच एजेंसियों के घेरे में केवल विपक्ष नजर आता है जब कि सत्ता पक्ष में भी अनैतिक कार्य करने वाले लोग भी शामिल है। विपक्ष भी आज मुखर होकर सत्ता पक्ष पर आरोप लगा रहा है विपक्ष में जो जांच एजेंसियों के घेरे में आये सत्ता पक्ष से हाथ मिलाते ही आरोप से बरी हो गये। इस तरह की गतिविधियों का बढ़ता दायरा आज विपक्ष को कमजोर करता जा रहा है तो पक्ष का जोर बढ़ाता जा रहा है।

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