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विश्व पुस्तक मेले में आजादी के अमृत महोत्सव की गूंज

-योगेश कुमार गोयल-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

कोरोना महामारी के दौरान तीन वर्ष तक ऑनलाइन आयोजित होने के बाद इस वर्ष नई दिल्ली में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास का नौ दिवसीय विश्व पुस्तक मेला सज चुका है। इसका समापन पांच मार्च को होगा। इसका इंतजार केवल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लोग ही नहीं बल्कि देशभर के साहित्यकार और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग करते हैं। इस बार मेले में जी-20 देशों के अलावा 30 से भी ज्यादा देश और 1000 से ज्यादा प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता सहभागी हैं। दो हजार से ज्यादा स्टाल हैं। 500 कार्यक्रम और 50 सांस्कृतिक कार्यक्रमों होने हैं। मेले की थीम ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ है।

भारत की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का गवाह यह मेला बन रहा है। विश्व पुस्तक मेले में इस वर्ष फ्रांस मेहमान देश है। इसलिए यहां फ्रांसीसी पुस्तकें हैं। बड़ी संख्या में फ्रांसीसी साहित्यकार और प्रकाशक भी हिस्सा ले रहे हैं। फ्रांस से नोबेल पुरस्कार विजेता एनी एर्नाक्स सहित 16 फ्रांसीसी लेखक और 60 से ज्यादा प्रकाशक तथा सांस्कृतिक प्रतिनिधि मेले में पहुंचे हैं। एनबीटी-इंडिया के निदेशक के मुताबिक विश्व पुस्तक मेला इस वर्ष पुस्तकों और साहित्य का सबसे बड़ा उत्सव है। जी20 पवेलियन, एनईपी पवेलियन, एड-टेक जोन, मेले के नए आकर्षण हैं।

राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने पहला ‘विश्व पुस्तक मेला’ 1972 में 18 मार्च से 4 अप्रैल तक दिल्ली के जनपथ रोड पर विंडसर प्लेस में आयोजित किया था।इसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने किया था। शुरुआत में पुस्तक मेले में 4-5 देश ही शामिल होते थे। अब यह संख्या 30 से भी ज्यादा हो गई है। 1972 से 2012 तक पुस्तक मेले का आयोजन बाइनियल ईयर (सम संख्या का वर्ष) में किया जाता था। उसके बाद से इसका आयोजन प्रतिवर्ष होता है। विश्व पुस्तक मेला इस साल 50 वर्ष का सफर पूरा कर रहा है। इस उपलक्ष्य में डाक विभाग ‘एनबीटी स्टैंप’ का सबको इंतजार है। इस बार के मेले की विशेषता यह है। यह इस वर्ष नए हॉल, नए स्थान और नई सुविधाओं के साथ अपने पुराने अंदाज में और पहले की तुलना में दो गुना बड़ा है। मेले के थीम पवेलियन में आजादी के गुमनाम नायकों पर आधारित करीब 200 पुस्तकों की प्रदर्शनी लगाई गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मेले में अलग पवेलियन है। बच्चों की गतिविधियां, लेखक मंच, न्यू डेली राइट टेबल पर वैश्विक स्तर वाली 30 देशों की 200 से ज्यादा पुस्तकों के अनावरण का सिलसिला शुरू हो चुका है।

देश में बच्चों के ऐसे भविष्य की परिकल्पना करते हुए, जहां बच्चे पुस्तकें पढ़ने तथा पुस्तक खरीदने के माहौल में बड़े हों और पुस्तक-पठन संस्कृति को फैलाने के उद्देश्य से एक अगस्त 1957 को शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की स्थापना की गई थी। यह न्यास समाज के सभी आयु वर्ग के लिए सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में पुस्तकों के प्रचार और प्रकाशन में सक्रिय रहा है। हालांकि आधुनिकता के दौर में बच्चों के साथ-साथ बड़ों का लगाव भी पुस्तकों के प्रति कम हुआ है। बुद्धिजीवियों का मानना है कि हर समय यह संभव नहीं कि पुस्तकों के स्थान पर मोबाइल या लैपटॉप आदि से पढ़ा जाए। दरअसल पुस्तकें हर समय साथ निभाती हैं और वास्तविक संतुष्टि पुस्तकें पढ़ने से ही मिलती है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि जिन लोगों की दिलचस्पी पुस्तकों में होती है, वे पुस्तक पढ़े बिना संतुष्ट नहीं होते। फिर भले ही उस पुस्तक में वर्णित बातें विभिन्न संचार माध्यमों से वे पहले ही जान चुके हों। ऐसे में लोगों की पुस्तकों के प्रति रुचि बनाए रखने में विश्व पुस्तक मेला जैसे आयोजन सार्थक भूमिका रहा है। अच्छी पुस्तकें बच्चों और युवा पीढ़ी को ज्ञानवान, संस्कारित और चरित्रवान बनाने में बड़ी भूमिका निभाती हैं।

 

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