राजनैतिकशिक्षा

माफी तो फिर भी सरकार को ही मांगनी चाहिए!

-अजीत द्विवेदी-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार के मंत्री और सत्तारूढ़ भाजपा के नेता बेहद आक्रामक अंदाज में कांग्रेस, दूसरी विपक्षी पार्टियों और नोटबंदी का विरोध करने वाले स्वतंत्र लेखकों, विचारकों पर हमला कर रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के सांसद रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राहुल गांधी को माफी मांगनी चाहिए। वे वकील हैं इसलिए उनको पता ही होगा कि बहुमत के फैसले का क्या मतलब होता है और यह भी पता होगा कि इस फैसले को लेकर दायर जो 58 याचिकाएं खारिज हुई हैं, वो किस बारे में थीं? याचिकाओं में नोटबंदी का फैसला किए जाने की प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी, उसे अवैध बताया गया था और खारिज करने की मांग की गई थी, जिससे एक जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने सहमति जताई है। उन्होंने कहा है कि नोटबंदी का फैसला असंवैधानिक था। चूंकि याचिकाओं में नोटबंदी के फैसले के हासिल और इसके घोषित मकसद के पूरा होने या नहीं होने के बारे में कुछ नहीं कहा गया था इसलिए अदालत ने उस पर विचार नहीं किया।

सर्वोच्च अदालत ने बहुमत के फैसले में कहा है कि नोटबंदी का फैसला करने की प्रक्रिया सही थी। हालांकि उसे लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। असहमति जताने वाली जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने दो टूक अंदाज में कहा है कि नियमों का उल्लंघन हुआ है। नियमों के मुताबिक भारतीय रिजर्व बैंक के बोर्ड को किसी खास सीरिज या वैल्यू के नोट बंद करने की सिफारिश करने का अधिकार है लेकिन आठ नवंबर 2016 को हुई नोटबंदी की पहल केंद्र सरकार की ओर से हुई थी। सुप्रीम कोर्ट में जो रिकॉर्ड रखे गए हैं उनमें भी कहा गया है कि सरकार ने इसका प्रस्ताव भेजा या सरकार ऐसा चाहती थी। सो, गलती तो पहले ही चरण में हो गई। प्रस्ताव आरबीआई के बोर्ड की ओर से आना चाहिए था न कि सरकार की ओर से। इसके अलावा यह भी हकीकत है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने जो रिकॉर्ड पेश किया उसमें यह नहीं बताया कि कितनी चीजों पर आरबीआई ने आपत्ति की थी।

सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से पता चलता है कि मई 2016 में हुई आरबीआई बोर्ड की बैठक में दो हजार रुपए के नोट जारी करने का फैसला हुआ लेकिन बोर्ड में पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट बंद करने के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई। इसके बाद जुलाई और अगस्त में भी आरबीआई बोर्ड की बैठक हुई और उसमें भी नोटबंदी के बारे में चर्चा नहीं हुई। पांच सौ और एक हजार रुपए का नोट बंद करने का प्रस्ताव आठ नवंबर 2016 की बैठक में लाया गया और आनन-फानन में इसे मंजूरी दे दी गई। सोचें, सरकार ने अदालत से कहा है कि छह महीने से ज्यादा समय तक विचार विमर्श हुआ। वह विचार विमर्श कैसे और कहां हुआ? बोर्ड की बैठक में तो अगस्त 2016 तक प्रस्ताव ही नहीं था! यह सही है कि संसद से कानून बनाना संभव नहीं था क्योंकि इस मामले में गोपनीयता सबसे अहम तत्व है। फिर भी आरबीआई बोर्ड को तो पता होना चाहिए था! दूसरी अहम बात यह है कि आरबीआई कानून में एक साथ सारे नोट बंद करने की बात नहीं है, इस आधार पर भी फैसले को चुनौती दी गई थी। लेकिन अदालत ने एक शब्द ‘एनी’ की व्याख्या ‘ऑल’ के रूप में की और पांच सौ व एक हजार के हर सीरिज के सारे नोट एक साथ बंद करने के फैसले को सही ठहराया।

इसक बावजूद देश के नागरिकों से माफी सरकार को ही मांगनी चाहिए। क्योंकि सरकार के इस फैसले से देश के लोगों ने बेहिसाब कष्ट उठाया और बेहिसाब पीड़ा बरदाश्त की। करोड़ों लग महीनों तक अपने ही पैसे के लिए बैंकों के सामने लाइन में लगे रहे और सैकड़ों की मौत हो गई। लाखों लोगों के कारोबार बंद हो गए और देश की अर्थव्यवस्था को इतना बड़ा झटका लगा कि करोड़ों लोग कंगाल हो गए। इतने पर भी लोग संतोष कर लेते, अगर इस फैसले का मकसद पूरा हो जाता। लोगों की बेहिसाब तकलीफों के बावजूद इस फैसले का एक भी घोषित लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। शुरुआती लक्ष्य कुछ और थे वो तो नहीं ही पूरे हुए, बाद में जो संशोधित लक्ष्य बताए गए उन्हें भी नहीं हासिल किया जा सका। नरेंद्र मोदी सरकार के थिंकटैंक नीति आयोग के उपाध्यक्ष रहे राजीव कुमार ने आधिकारिक रूप से कहा कि नोटबंदी के सभी घोषित लक्ष्य पूरे नहीं हुई। उन्होंने फिर भी सरकार का बचाव किया। हकीकत यह है कि इसका एक भी लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका।

नोटबंदी का घोषित लक्ष्य यह था कि इससे काला धन बाहर निकल जाएगा और सरकार का खजाना भर जाएगा। हालांकि रिजर्व बैंक ने आधिकारिक रूप से इसका विरोध किया था और कहा था कि काला धन नकदी में नहीं, बल्कि सोने-चांदी और जमीन यानी अचल संपत्ति के रूप में होता है। सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। अंत में रिजर्व बैंक सही साबित हुआ क्योंकि कोई काला धन बाहर नहीं आया। उलटे पांच सौ और एक हजार रुपए के सारे नोट बैंकों में जमा हो गए। इसके बाद कहा गया कि नकदी बाजार से निकल जाएगी तो कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी। इसके लिए डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने वाली कंपनियों को खूब प्रमोट किया गया। ऐसी एक कंपनी ने तो नोटबंदी के फैसले के अगले ही दिन सभी अखबारों में पूरे पूरे पन्नों का विज्ञापन छाप दिया, वह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो के साथ। फिर भी हकीकत यह है कि 2016 के मुकाबले बाजार में नकदी की मात्रा दोगुनी हो गई है।

जिस दिन नोटबंदी का फैसला हुआ उससे एक दिन पहले बाजार में सभी मूल्य के नोटों की नकदी कुल 16 लाख करोड़ रुपए के करीब थी, जो दिसंबर 2022 के अंत तक 31 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गई। अगर नोटबंदी के तुरंत बाद की स्थिति से तुलना करें तो नकदी में ढाई सौ फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। सरकार ने काले धन का चलन रोकने के लिए बड़े नोट बंद किए लेकिन दो हजार का नोट चलन में ला दिया। आज स्थिति यह है कि नौ लाख 30 हजार करोड़ मूल्य के दो हजार रुपए के नोट बाजार से गायब हैं, यानी काला धन बन गए हैं। सो, न काला धन खत्म हुआ, न नकदी का चलन कम हुआ और न सरकार के खजाने में पैसे आए। उलटे नए नोट छापने और लोगों तक पहुंचाने में सरकार के हजारों करोड़ रुपए खर्च हुए। अर्थव्यवस्था को दो फीसदी के करीब नुकसान हुआ सो अलग। नोटबंदी से आतंकवादियों, नक्सलियों आदि की कमर टूटने की बात कही गई थी, लेकिन उसकी भी हकीकत अपनी जगह है। सो, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी नोटबंदी के फैसले के लिए देश के नागरिकों से माफी तो सरकार को ही मांगनी चाहिए।

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