राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ज्ञान सरोवर में तपस्या!
-डॉ. श्रीगोपालनारसन-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
तपस्या अर्थात एक परमात्मा की स्मृति हमारे हृदय में बसी हो और हम परमात्मा की याद में कुछ समय बैठकर परमात्मा से रूहरिहान करे। इसी तपस्या के लिए देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 3 जनवरी की शाम पहले आबू रोड के शांति वन और फिर माउंट आबू के ज्ञान सरोवर पहुंच रही है।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ब्रह्माकुमारीज से जुड़ी है और नियमित रूप से राजयोग का अभ्यास करती है।चूंकि जनवरी मास में ब्रह्माकुमारीज के संस्थापक ब्रह्माबाबा का 18 जनवरी को स्मृति दिवस होता है।इसलिए जनवरी मास को ब्रह्माकुमारीज तपस्या मास के रूप में मनाते है।यूं तो एक जनवरी से ब्रह्माकुमारीज का तपस्या मास प्रारंभ हो चुका हैलेकिन द्रौपदी मुर्मू 3 जनवरी से दो दिन के लिए इस राजयोग तपस्या की भागीदार बन रही है। इस तपस्या से हमे परमात्मा द्वारा अविनाशी भाग्य प्राप्त हुआ है। अविनाशी भाग्य को हमेशा अविनाशी रखना है। जिसके लिए सिर्फ सहज अटेंशन देने की बात है। टेंशन वाला अटेंशन नहीं हो सकता सहज अटेंशन हो तभी हम विदेही रूप में परमात्मा से अपनी लौ लगा सकते है।राजयोग के अभ्यास से ही हमे परमात्मा की सत्य पहचान मिल पाई है। परमात्मा वह बीज है जिसमें सृष्टि का सारा आदि मध्य अंत का ज्ञान समाया हुआ है।
परमात्मा कहते भी हैं कि मुझसे जो भी खजाने तुम्हें प्राप्त हुए हैं उन खजानों को जमा करो बढ़ाओ व्यर्थ से बचो। श्वास का खजाना संकल्प का खजाना गुणों का खजाना समय का खजाना शक्तियों का खजाना ज्ञान का खजाना। सभी खजाने जितना स्व के प्रति और औरों के प्रति शुभ वृत्ति से कार्य में लगाएंगे उतना सद्कर्मो का खाता जमा होता जाएगा और बढ़ता जाएगा।इसके लिए अपने गुणों व शक्तियों को सदकार्य में लगाओ तो पुण्य बढ़ते जाएंगे। मनुष्य को प्राप्त गुण व शक्तियां परमात्मा का दिया वह प्रसाद हैजिससे हम अपने जीवन को 21 जन्मों के लिए सफल बना सकते है। हमे परमात्मा दाता को कभी भूलना नहीं चाहिए व मिले हुए ईश्वरीय ज्ञान खजाने को सफल करना चाहिए। साथ ही अपने ईश्वरीय संस्कारों को भी सफल करो जिससे व्यर्थ संस्कार स्वत: चले जाएंगे। सच ही है कि विद्या के बिना मानव जीवन व्यर्थ है। मानव के संपूर्ण विकास में विद्या की भूमिका अति महत्वपूर्ण है।
इससे मनुष्य अनुशासित होता है और उसका चरित्र निर्माण होता है। विद्या के बल से वह स्वार्थों से ऊपर उठ पाता है और प्रकृति एवं मानव जाति से प्रेम करना सीखता है। भौतिक विद्या तो स्कूलों एवं विश्वविद्यालयों में मिल जाती है। लेकिन सत्य एवं आध्यात्मिक ज्ञान सिर्फ परमपिता परमात्मा ही दे सकता है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस सत्य को स्वीकार किया है। उन्होंने परमात्मा के यथार्थ रूप को पहचान कर और संपूर्ण ज्ञान को धारण करके ही अपने जीवन को दिव्य गुणों से संपन्न बनाया है। राष्ट्रपति मुर्मू 3 जनवरी की शाम साढ़े 4 बजे ब्रह्माकुमारीज के शांतिवन जाकर वहां के डायमंड हॉल में आजादी का अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत अभियान के तहत आध्यात्मिक सशक्तिरण से स्वर्णिम भारत का उदय विषय पर आयोजित सम्मेलन का उद्घाटन करेंगी। राष्ट्रपति मुर्मू का आध्यात्म के प्रति प्रेम उनके महामहिम बनने से पहले से है।वह लगभग 10 वर्षों से ब्रह्माकुमारी संस्थान के द्वारा सिखाए जाने वाले राजयोग मेडिटेशन और आध्यात्मिक ईश्वरीय वाणी मुरली को सुनती हैं और रोजाना राजयोग का अभ्यास भी करती हैं।
ब्रह्माकुमारीज संस्थान के विश्वभर में स्थित सभी सेवा केंद्र पर एक साथ एक ही समय पर सुबह 7 बजे से ईश्वरीय महावाक्यों पर आधारित मुरली होती है। जिसमें परमात्मा की ओर से सदशिक्षाजीवन जीने की कला और जीवन के प्रति मार्गदर्शन मिलता है। इस राजयोग अभ्यास को करने व मुरली सुनने के लिए वे सदैव समय से सुबह साढ़े तीन बजे उठती है। सूबह उठने के बाद वह सबसे पहले वे ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिव परमात्मा का ध्यान करती हैं जिन्हें ब्रह्माकुमारीज से जुड़े सभी भाईबहन प्यार से शिवबाबा कहते हैं। शिवलिंग के आकार की लाल लाइट के बिंदू पर वह अपना ध्यान लगाती हैं।वे शाम को भी 6.30 से 7.30 बजे तक राजयोग का अभ्यास करती हैं। द्रौपदी मुर्मू ने ब्रह्माकुमारी संस्थान में एक चर्चा के दौरान कहा था कि वह जो कुछ बोल पाती है वह आध्यात्मिक बल के कारण ही बोल पाती है। उन्होंने ग्रेजुएट किया हुआ है। लेकिन उन्हें हर विषय पर बोलने शक्ति परमात्मा से ही प्राप्त होती हैं। तभी तो वे परमात्मा शिव की याद में रहकर सर्वोच्च पद पर आसीन होने में सफल रही और राष्ट्रपति पद पर रहकर भी समाज के अंतिम व्यक्ति तक का हित सोच रही है।