स्मार्ट सिटी में भगवान
-पी.ए. सिद्धार्थ-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
यमराज के दरबार में लगे झूठ के स्वर्ण घंट अचानक ज़ोर से बजने लगे। उनींदे यमराज सोचने लगे, इतनी ज़ोर से झूठ के घंट तभी बजते हैं जब भारत में अख़बारें छपती हैं या कोई नेता भाषण देता है। अख़बारों के छपने का समय है नहीं, तो अवश्य विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का वैश्विक नेता भाषण दे रहा होगा। नवें दशक में ख़बरिया चैनलों के आने के बावजूद पिछले आठ सालों तक यह नौबत नहीं आई थी कि यमराज को अलग-अलग झूठ के लिए अलग-अलग घंट लगवाने पड़ते। लेकिन मीडिया के गोदी हो जाने के बाद अख़बारों और ख़बरिया चैनल के लिए अलग-अलग घंट लगवाने पड़े थे। न्याय के दर्पण में देखने पर उन्हें दिखा कि आठ साल पहले आर्यावर्त में मारी गई सौ स्मार्ट सिटी बनाने की गप्प को एक नेता किसी चुनावी रैली में दोहरा रहा था। यम को लगा कि इस बार सच्चाई स्वयं ढूँढ़ी जाए, क्योंकि लोग इतने बेवकूफ नहीं हो सकते कि निरन्तर झूठे वायदों के बावजूद किसी को जिताते रहें। लिहाज़ा उन्होंने स्वयं आर्यावर्त जाने का निर्णय लिया।
पर उन्हें ध्यान आया कि सच्चाई का पता लगाने के लिए उन्हें ऐसी जगहों पर जाने के लिए किसी मनुष्य के शरीर में प्रवेश करना पड़ेगा, जो देवताओं के लिए वर्जित हैं। उन्हें लगा कि इस काम के लिए शहर के सिरफिरे वाशिंदे हाजी क़ौल से बेहतर और कोई नहीं। अचानक यम के शरीर में प्रवेश करने से हाजी को शरीर में यकायक चुस्ती-फुर्ती का एहसास हुआ और वह जल्दी में घर से निकल लिए। उनका घर एक गाँव की उन अँधेरी गलियों में था जिसे नगर निगम बनाने की जद्दोजहद में शहर में शामिल किया गया था। शहर पहुँचने पर यम ने देखा कि हर दो सौ मीटर पर स्थापित लाखों के डस्टनबिन के टूटे हुए ढक्कनों से कूड़ा ऐसे फूट कर बाहर आ रहा था मानो किसी षोड्शी का यौवन नुमाईश को आतुर हो। सडक़ वन-वे होने के बावजूद गाडिय़ाँ दोनों तरफ से आ-जा रही थीं। दुकानदारों ने सडक़ को अपनी जाग़ीर मानते हुए सामान बाहर तक फैलाया हुआ था। पैदल चलने वाले ख़ुदा से अपनी जान की ख़ैर माँगते हुए चल रहे थे। एक खड्ड की बाढ़ की ज़द में बने टापू पर पाँच मंजि़ला खाली भवनों को देख कर आश्चर्यचकित हो, किसी से पूछने पता लगा कि ये भवन पाँच साल पहले आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के लिए बनाए गए थे। यम सोचने लगे कि देश अब सचमुच अमीर हो गया है। कई जगह पर बने आड़े-तिरछे घरों-दुकानों के चलते सडक़ें फुटपाथ लग रही थीं। वह सोचने लगे कि इस बेतरतीब शहर के ये कूबड़ तभी ठीक हो पाएंगे जब ब्रह्मा सृष्टि की पुन: रचना करेंगे। कर्तव्य पथ पर चलते हुए उन्होंने देखा कि नगर निगम ने सडक़ के किनारे रिटेनिंग वॉल और ऊँची फेंसिंग लगाई है।
पर कई जगह हवा में लटकी रिटेनिंग वॉल के लिए भी रिटेनिंग वॉल की ज़रूरत है। पैसे कमाने के लिए यह काम उन ठेकेदारों को दिया जाता है जो सारी उम्र पुल या सडक़ें ठीक से नहीं बना पाते। जब बोरा सिलने वाले थ्री-पीस सूट सिलेंगे तो ऐसा ही होगा, यह सोच कर उनके होठों पर तिरछी मुस्कान फैल गई। यम हैं तो भगवान, लेकिन अभी वह हाजी के शरीर में थे। घर से निकले तीन घंटे से अधिक हो चुके थे। इसलिए लघुशंका की तलब होने लगी। उन्हें ध्यान आया कि रास्ते में कहीं भी शौचालय नहीं है। कुछ देर तो जैस-तैसे निकाल ली। पर अब रुकना मुश्किल हो रहा था। इसलिए आड़ के लिए दीवार ढूँढऩे लगे। बड़ी मुश्किल से एक दीवार नसीब हुई। बंद आँखों से हाजी अपनी हाजत उतारने लगे। पुरसुकून होने के बाद जब उनकी नजऱ दीवार पर पड़ी तो अपने चिर-परिचित भैंसे पर अपने को सवार पाकर चौंक उठे। दीवार पर बने कई देवताओं के चित्रों के साथ लिखा था, ‘गधे के पूत, यहां ना मूत’। इस गहरे सदमे से उबरने के बाद होठों पर वक्र मुस्कान के साथ वह गुनगुना उठे, ‘इट हैपन्स ओनली इन इण्डिया। यह मेरा इंडिया, यह मेरा इंडिया।’