राजनैतिकशिक्षा

कोरोना की बुनियादी ड्रिल

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

कोरोना संक्रमण की आशंकाओं और खतरों के मद्देनजर देश भर के प्रमुख अस्पतालों में मॉक ड्रिल का आयोजन किया गया। चिकित्सा की बुनियादी सुविधाओं और स्वास्थ्य ढांचे की तैयारियों के आकलन के लिए यह समझदारी वाला प्रयास था। हम कोरोना की दो भयावह और हत्यारी लहरों को देख और झेल चुके हैं, लिहाजा सबक हमारे सामने हैं। कुल तीन लहरें गुजऱ चुकी हैं। मॉक ड्रिल के निष्कर्ष भी कमोबेश सकारात्मक रहे। अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किए जा चुके हैं। अस्पतालों के सघन चिकित्सा कक्षों में वेंटिलेटर भी सुचारू रूप से सक्रिय पाए गए। कोरोना के लिए जरूरी दवाओं, उपकरणों और स्टाफ की मौजूदगी भी उत्साहवर्धक रही। अब भारत पीपीई किट्स का निर्यात करता है। टेस्टिंग हमारी चिकित्सा प्रणाली की साबित बुनियाद है, जिससे वायरस की पहचान की जा सकती है। राजधानी दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, हांगकांग, ताइवान, बैंकॉक आदि देशों-शहरों से आने वाले यात्रियों की उचित जांच की जा रही है। ऐसी व्यवस्था सभी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर होगी! मंगलवार को दिल्ली में 13 संक्रमित यात्रियों को सफदरजंग अस्पताल में भर्ती किया गया। हालांकि यात्रियों में कोरोना संक्रमण के स्पष्ट लक्षण नहीं थे, फिर भी उन्हें क्वारंटीन में रखा गया है और उनके सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे गए हैं।

हालांकि हमारे यहां टेस्टिंग का रोज़ाना औसत 1 लाख के करीब है, जबकि नवम्बर में यही औसत 2 लाख रोज़ाना से भी अधिक था। संभव है कि इसीलिए भारत में औसतन संक्रमित मरीज हररोज 200 से भी कम हैं। मंगलवार को तो यह आंकड़ा 157 ही रहा। करीब 142 करोड़ की आबादी वाले देश में संक्रमण का यह आंकड़ा नगण्य है और देश में उपचाराधीन सक्रिय मामले भी 3421 हैं। बहरहाल कुछ अपवादों के साथ मॉक ड्रिल तब की गई, जब 26 दिसंबर को भारत में कोरोना संक्रमण का औसत, प्रति 10 लाख लोगों के पीछे, मात्र 0.13 था। उसी दिन फ्रांस और जर्मनी में यही औसत क्रमश: 547.7 और 301.7 था। यूरोप और भारत में कोरोना संक्रमण की स्थितियों के बीच कितने सौ गुना के फासले हैं? इसके बावजूद मॉक ड्रिल से एक दिन पहले कर्नाटक ऐसा प्रथम राज्य बना, जिसने सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनना अनिवार्य घोषित किया। हालांकि इस अनिवार्यता के साथ किसी भी तरह का जुर्माना या दंड नत्थी नहीं किया गया है, हालांकि प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ने सतर्कता और सावधानी के आग्रह जरूर किए हैं।

हमारा मानना है कि भारत में कोरोना संक्रमण के ऐसे डरावने आसार नहीं हैं कि खासकर सेवा उद्योग क्षेत्र पर फिजूल की पाबंदियां चस्पा की जाएं, क्योंकि सेवा क्षेत्र का कारोबार हाल ही में पूर्व-कोरोना की स्थिति में पहुंचा है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में सबसे बड़ी और बेहद महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी सेवा क्षेत्र की ही है। बेशक कोरोना संक्रमण पर लगाम कसे रखना हमारी बुनियादी प्राथमिकता है। मॉक ड्रिल से हमारी कमियां, आधी-अधूरी तैयारियां भी सामने आई हैं, जिन्हें समयानुसार दुरुस्त किया जा सकता है। इस संदर्भ में बूस्टर अथवा प्रीकॉशन डोज को भी हमें नजऱअंदाज़ नहीं करना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, भारत में प्रत्येक 100 लोगों पर बूस्टर डोज का औसत 16.16 है, जबकि वैश्विक औसत 30.23 है। यह लुंज-पुंज स्थिति टीकों की कमी के कारण नहीं है। दरअसल लोगों में जागरूकता नहीं है और कुछ पूर्वाग्रह भी हैं। बूस्टर से हम कोरोना के खिलाफ एक सशक्त लड़ाई जीत सकते हैं। मॉक ड्रिल, मास्क और अधिक टीकाकरण ऐसे सार्थक प्रयास और निर्णय हैं, जिनके माध्यम से संक्रमण पर निगरानी रखी जा सकती है और आर्थिक विकास भी पटरी पर दौड़ता रह सकता है।

 

 

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