राजनैतिकशिक्षा

क्यों जरूरी है भारत जोड़ो यात्रा

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

राहुल गांधी के नेतृत्व में निकल रही भारत जोड़ो यात्रा ने एक महीने से अधिक का वक्त पूरा कर लिया है। इन 33-34 दिनों में यात्रा को जबरदस्त जनता के बीच सीधा संवाद और जुड़ाव लगभग खत्म सा हो गया है। सोशल मीडिया के जरिए राजनैतिक दलों और उनके नेताओं की गतिविधियों की पल-पल की सूचना जनता तक पहुंचाई जा रही है, लेकिन यह एकतरफा रिश्ते की तरह है, क्योंकि जनता क्या सोचती है, महसूस करती है, इसकी खबर नेताओं को नहीं लग पाती। वे इसके लिए मीडिया पर निर्भर करते हैं, लेकिन अब वहां भी जनता की आवाज उठाने की परिपाटी खत्म होती जा रही है।

जनता के जीवन पर सीधा असर करने वाले मुद्दों के लिए खबरों या चर्चाओं में खास जगह नहीं है, उनकी जगह आभासी मुद्दे खड़े किए जाते हैं। बेरोजगारी, महंगाई या धार्मिक असहिष्णुता की कई खबरों को दरकिनार कर गैरजरूरी खबरों की सुर्खियां बनाई जाती हैं। इस माहौल में भारत जोड़ो यात्रा के जरिए लोगों को अपनी बात सामने रखने का मौका मिल रहा है। राहुल गांधी से हर दिन बड़ी संख्या में नौजवान, महिलाएं और समाज के विभिन्न तबकों के लोग मिलने पहुंच रहे हैं और अपनी मुश्किलों को उनके साथ साझा कर रहे हैं। राहुल गांधी अभी उनकी समस्याओं को दूर करने की निर्णायक स्थिति में नहीं हैं, यह बात जनता भी जानती है। फिर भी कम से कम एक सांसद और राजनेता के सामने अपनी बात सीधे कह पाने का अवसर जनता को मिल रहा है, तो वह उसे गंवा नहीं रही और अपने दिल का बोझ हल्का कर रही है।

इस यात्रा की शुरुआत के साथ ही भाजपा ने सवाल उठाया है कि भारत तो पहले ही जुड़ा है, ऐसे में भारत को जोड़ने की यात्रा निकालने का क्या औचित्य। राहुल गांधी पर भाजपा नेता तंज भी कसते हैं कि वे भारत की जगह कांग्रेस को जोड़ें। हालांकि राहुल गांधी ऐसी बातों से अविचलित होकर लगातार चल रहे हैं। अब भाजपा नेताओं को भी राहुल गांधी को घेरने की योजनाएं बनाना छोड़कर वाकई इस सवाल पर ध्यान देना चाहिए कि भारत जोड़ो यात्रा निकालने का औचित्य क्या है, और क्यों ये यात्रा अब जरूरी लग रही है। इसके जवाब उन्हें अपने आसपास ही मिल जाएंगे, जब वे देखेंगे कि कैसे देश में अब भी जाति और धर्म के नाम पर नफरत फैलाई जा रही है।

राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सोमवार को कोलार जिले के उल्लेरहल्ली गांव में एक दलित परिवार से मुलाकात की। इस परिवार के बेटे ने एक धार्मिक स्तंभ को छू लिया था। जिसे अपराध मानते हुए गांव के बुजुर्गों ने लड़के की मां से कहा था कि वह जुलूस के पुनर्गठन के लिए 60,000 रुपये की व्यवस्था करें, क्योंकि उसके बेटे ने देवता के पवित्र खंभे को छुआ था। जुर्माना न भरने पर परिवार के बहिष्कार की धमकी दी गई थी। इस घटना पर पहले प्रशासन का रवैया आरोपियों के लिए ढीला-ढाला रहा, लेकिन जब विवाद बढ़ा, तब जाकर प्रशासन ने इस परिवार के लिए मंदिर में दर्शन करने की व्यवस्था करवाई और साथ ही सरकारी नौकरी का वादा भी किया।

कर्नाटक के इस दलित परिवार को प्रशासन का सहयोग मिल गया, यह अच्छी बात है, लेकिन सवाल ये है कि क्या दलितों को अब भी अस्पृश्यता का शिकार होना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश में तो दुर्गा पंडाल में एक दलित ने मूर्ति के पैर छू लिए, तो उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई और उसके परिजनों को भी धमकी मिल रही है। इस साल दशहरे के मौके पर दिल्ली में करीब दस हजार लोगों ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म में दीक्षा ली।

संविधान निर्माता बाबा साहब अंबेडकर ने भी इसी दिन बौद्ध धर्म अपनाया था। इस मौके पर जो 22 प्रतिज्ञाएं बाबा साहब ने ली थीं, वही दोहराई गईं। जिनमें हिंदू धर्म के देवी-देवताओं को न मानने की भी प्रतिज्ञा है। इस कार्यक्रम में आम आदमी पार्टी के विधायक और मंत्री राजेंद्र पाल गौतम भी मौजूद थे।

भाजपा ने उन पर हिंदू धर्म का अपमान करने का आरोप लगाया, उनके घर के बाहर जयश्री राम के नारे लगाकर प्रदर्शन किया गया और भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने उन पर दंगा भड़काने की कोशिश का आरोप तक लगा दिया। दो साल पहले ही दिल्ली दंगों की आंच में झुलस चुकी है, ऐसे में इस तरह के आरोप लगाने से पहले विचार करना चाहिए। लेकिन भाजपा के लिए यह मौका हिंदुत्व के नाम पर राजनैतिक फायदा उठाने का था, जिसे उसने हाथ से नहीं जाने दिया। बहरहाल, अब राजेंद्र पाल गौतम ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, ताकि उनकी पार्टी को कोई परेशानी न हो।

दिल्ली में ही विश्व हिंदू परिषद द्वारा एक लड़के की हत्या के विरोध में की जा रही सभा में बोलते हुए भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा ने किसी का नाम लिए बिना कहा कि यदि आप उनके दिमाग को सीधा करना चाहते हैं ‘तो एक ही उपाय है, वह है पूर्ण बहिष्कार’। इसके साथ ही प्रवेश वर्मा ने उनकी दुकानों से सामान न खरीदने और उन्हें रोजगार न देने का आह्वान किया। दरअसल मृतक युवक बहुसंख्यक था और उसके आरोपी अल्पसंख्यक। पुलिस के मुताबिक यह हत्या पुरानी रंजिश का नतीजा है, लेकिन इसे अब जबरन धार्मिक नजरिया दिया जा रहा है। और सीधे-सीधे आर्थिक बहिष्कार की धमकी दी जा रही है।

इधर प,बंगाल में ईद के मौके पर मोमिनपुर में दो समुदायों के बीच हिंसा भड़की, लेकिन भाजपा राज्य सरकार पर धार्मिक तुष्टीकरण का आरोप लगाते हुए केन्द्रीय बलों की तैनाती की मांग कर रही है। देश के अलग-अलग हिस्सों में घट रही ये घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि हमारा जो सांप्रदायिक सौहार्द्र का ताना-बाना था, उसे काफी नुकसान पहुंच चुका है। धर्म, जाति के विवाद हमेशा से होने के बावजूद नफरत का इस तरह सार्वजनिक ऐलान नहीं होता था। और इसलिए भारत को जोड़ने की यात्रा जरूरी है।

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