राजनैतिकशिक्षा

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा

-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

पिछले कुछ दिनों से सोनिया गांधी परिवार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे तले भारत जोड़ो यात्रा पर निकला हुआ है। मैं भी पिछले कुछ दिनों से असम-मणिपुर की यात्रा पर निकला हुआ हूं। असम के अख़बारों में इस भारत जोड़ो यात्रा की ख़ूब चर्चा हो रही है। लेकिन उसका कारण गुलाम नबी आज़ाद नहीं हैं जिन्होंने सोनिया परिवार को यह सलाह देते हुए कांग्रेस छोड़ दी कि इनको पहले कांग्रेस जोड़ो यात्रा करनी चाहिए। इनके लिए कांग्रेस जोड़ो यात्रा ज्यादा प्रासंगिक है। लेकिन असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने इस यात्रा का स्वागत किया है। यह अलग बात है कि स्वागत करने की शैली उनकी अपनी है।

हिमंत विश्व शर्मा का कहना है कि कांग्रेस के लिए यह यात्रा निकालना ऐच्छिक नहीं बल्कि यह उसका राष्ट्रीय दायित्व है। उनका कहना है कि कांग्रेस ने ही 1946 में खान अब्दुल गफ़्फ़ार खान के भारी विरोध के बावजूद देश को दो हिस्सों में तोडऩे का काम किया था। देश को दो हिस्सों में तोडऩे के इस प्रस्ताव के पारित हो जाने के बाद ही इंग्लैंड ने भारत का विभाजन करने की अपनी मंशा को क्रियान्वित किया था। उसी के कारण पश्चिमोत्तर भारत में सप्त सिंधु का बहुत बड़ा हिस्सा देश से तोड़ कर पाकिस्तान के नाम से अलग सार्वभौमिक देश बना दिया गया था। यह संकेत मिलने भी शुरू हो गए थे कि यदि देश तोड़ा गया तो लाखों लोगों की जान पर बन आएगी। लेकिन कांग्रेस ने इसके बावजूद देश को तोडऩे का प्रस्ताव पारित ही नहीं किया बल्कि उसके समर्थन में तर्क भी दिए। हिमंत विश्व शर्मा का कहना है कि कांग्रेस के देश को तोडऩे के इस अराष्ट्रीय कृत्य के कारण ही आज तक असम को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

उनका कहना है कि कांग्रेस ने भारत को तोड़ा है तो भारत को जोडऩे का दायित्व भी उसी का बनता है। अत: हिमंत विश्व शर्मा ने कांग्रेस को यह सलाह दी है कि उसे यह यात्रा देश के उस हिस्से में जाकर निकालनी चाहिए जो भारत से टूट गया है। वह हिस्सा 1947 के बाद से पाकिस्तान कहलाता है। सोनिया परिवार को यह यात्रा पाकिस्तान में निकालनी चाहिए। वहां जाकर लोगों को समझाएं कि भारत को जोडऩा कितना जरूरी है। लेकिन सोनिया परिवार देश के उन्हीं हिस्सों में घूम रहा है जो पहले से ही जुड़े हुए हैं। वैसे लगता नहीं कि यात्रा का नेतृत्व कर रहे राहुल गांधी, हिमंत विश्व शर्मा की सलाह पर थोड़ा सा भी ध्यान देंगे। बात पुरानी है। वे गुवाहाटी से चलकर राहुल गांधी से मिलने के लिए दिल्ली गए थे। वे बात करते रहे और राहुल गांधी अपने प्रिय कुत्ते से खेलते रहे। जब हिमंत उठने लगे तो राहुल ने पूछा था, बताइए आप किस काम से आए थे। हिमंत विश्व शर्मा इस व्यवहार के बाद क्या सलाह देते। वे वहां से चले आए। लेकिन वहां से आकर उन्होंने अपने बलबूते सबसे पहले असम के सभी समुदायों को साथ लेकर असम को एकजुट करने का काम शुरू कर दिया। मैं पिछले कुछ दिनों से धुबडी, बिलासीपाडा, कोकराझार और भूटान की सीमा से सटे उदालगुडी तक में घूम रहा हूं। विद्यार्थियों, अध्यापकों, पत्रकारों से बात होती है कि अब असम के इंडिजिनियस मुसलमान भी भारतीय जनता पार्टी को वोट देने लगे हैं। बोडो क्षेत्रीय परिषद तक में भाजपा का समर्थन है।

यह सब हिमंत विश्व शर्मा के असम जोडऩे के संकल्प से हुआ है। हो सकता है वे तब राहुल गांधी को भी यही समझाने गए हों। अब वे एक बार फिर उसी राहुल गांधी को सलाह दे रहे हैं कि वे अपने साथियों को लेकर लाहौर, कराची, पेशावर, मुलतान जाएं और वहां पूर्व भारतीयों को समझाएं कि देश को फिर से जोडऩे की कितनी जरूरत है। जैसा कि मैंने कहा भी है कि लगता नहीं हिमंत विश्व शर्मा की यह सलाह भी सोनिया परिवार मानेगा। लेकिन हिमंत विश्व शर्मा ने अपना कत्र्तव्य निभा दिया है। उनके इस बयान के बाद असम के सभी समुदायों में बहस छिड़ी हुई है और बचे खुचे कांग्रेस के नेताओं के पास हिमंत विश्व शर्मा के इस ऐतिहासिक हमले का कोई ज़वाब नहीं है। आज असम बांग्लादेशियों की समस्या से जूझ रहा है। उसका मुख्य कारण देश का टूटना ही है। देश को न तोड़ा जाता तो इस प्रकार की समस्याएं ही न पैदा होतीं। मुझसे यहां बहुत लोगों ने पूछा कि क्या टूटा हुआ भारत फिर से जुड़ सकता है। मैंने कई बार तो हंस कर ही उत्तर दिया कि भाई, राहुल गांधी इसी काम के लिए तो निकले हुए हैं। हिम्मत दिखाएंगे तो जुड़ेगा क्यों नहीं? लेकिन लोगों को मेरे इस उत्तर से तसल्ली नहीं होती। कई पत्रकार मित्र तो कहते हैं कि हमारा प्रश्न राजनीतिक नहीं था, लेकिन आपका उत्तर राजनीतिक है। मुझे इस बात पर हैरानी भी होती है और ख़ुशी भी कि देश के टूटने के सात-आठ दशक के बीच ही देश में यह गंभीर बहस होने लगी है कि क्या भारत फिर से जुड़ सकता है? यह बहस ही शुभ संकेत है। वैसे भी कहा जाता है कि इतिहास में कोई तथ्य अंतिम नहीं होता। भारत की सीमाएं तो प्राकृतिक सीमाएं हैं। वह विश्व युद्धों के परिणाम स्वरूप बना देश नहीं है। यह पुरातन है, सनातन है।

1947 में तो इस देश की प्राकृतिक सीमाओं से छेड़छाड़ की गई थी। प्राकृतिक सीमाओं पर झगड़े नहीं होते, मनुष्य द्वारा निर्मित अप्राकृतिक सीमाएं कभी शांत नहीं रहतीं। भारत के साथ भी यही हो रहा है। लेकिन अब भारतीयों में इंग्लैंड द्वारा किए गए इस गैर प्राकृतिक कार्य को पुन: उसके मूल रूप में लाने की बहस शुरू हुई है, यह स्तुत्य है। यह बहस असम से शुरू हुई है, यह और भी सराहनीय है। भारत जोड़ो यात्रा निकालने वाले राहुल गांधी इस यात्रा के भीतरी मर्म को नहीं जानते, इसीलिए फज़ीहत करवा रहे हैं। लेकिन इसके भीतरी मर्म को हिमंत विश्व शर्मा समझ गए हैं, इसलिए देश उनकी वाहवाही कर रहा है। अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ऐसे लोगों से भी मिल रहे हैं जो विवादास्पद बयानों के कारण सुर्खियों में रहे हैं। राहुल की इस यात्रा और विवादों का चोली-दामन का जैसा साथ है। उनकी इस यात्रा से जुड़े कई विवाद हैं। बेहतर होता कि वह भारतीय लोगों के कल्याण से जुड़े ऐसे मसले उठाते जिससे कांग्रेस को जन-समर्थन भी मिल जाता। लेकिन इस यात्रा में भी राहुल गांधी अपनी अपरिपक्वता का परिचय दे रहे हैं।

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