राजनैतिकशिक्षा

महंगाई और भारत जोड़ो यात्रा

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

देश में महंगाई दर लगातार आठवें महीने भारतीय रिजर्व बैंक के तय लक्ष्य सीमा से ऊपर बनी हुई है। सरकार ने महंगाई दर को दो से 6 प्रतिशत के दायरे में रखने का लक्ष्य निर्धारित किया है। लेकिन इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कोई मजबूत कदम नहीं उठाए जा रहे हैं, इस वजह से खुदरा महंगाई दर काबू में आ ही नहीं रही है। अप्रैल, मई और जून में महंगाई दर लगातार 7 प्रतिशत से ऊपर रही, जुलाई में थोड़ा नीचे आकर 6.71 प्रतिशत पर आई थी, लेकिन अगस्त के आंकड़े बताते हैं कि खुदरा महंगाई दर 7 प्रतिशत तक पहुंच गई है। इसका सीधा मतलब ये है कि अभी डेयरी पदार्थ, अनाज, फल, सब्जी, तेल किसी की कीमत में कोई राहत नहीं मिलेगी।

बल्कि त्यौहारी मौसम होने से महंगाई का दंश कुछ और अधिक तकलीफ देगा। उच्च मध्यमवर्ग और क्रीमी लेयर के लोगों के लिए ऐसे आंकड़ों का कोई अर्थ नहीं होता, क्योंकि उन्हें महंगाई से कभी कोई तकलीफ नहीं होती। उनकी संपन्नता में हर तकलीफ का इलाज मिल जाता है। मगर आम भारतीयों को जब 40 रुपए की चीज सौ में खरीदनी पड़े, तो आर्थिक मजबूरी और विपन्नता का अहसास और बढ़ जाता है।

अफसोस इस बात का है कि सत्ता की आसंदी पर बैठे लोगों को भी संपन्नता की सहूलियतें नजर आती हैं, गरीबों के दर्द उन्हें नहीं दिखते। यही कारण है कि संसद में महंगाई जैसे अहम सवाल पर चर्चा से बचने के तरीके ढूंढे जाते हैं। अगर चर्चा हो भी तो महंगाई है, यह बात स्वीकार नहीं की जाती। अगर सरकार महंगाई को देशव्यापी समस्या मानकर उस पर काम करना शुरु कर दे, तो फिर महंगाई पर लगाम कसनी शुरु हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। बल्कि अभी गैरजरूरी बातों पर राजनैतिक विमर्श हो रहे हैं। सड़क का नाम राज से शुरु हो या कर्तव्य से, कहां किसकी मूर्ति लगाई जाए, अतीत में किसने क्या कहा, इसका वर्तमान में हिसाब लिया जाए और यह भी कम हो तो किसने कौन से टी शर्ट पहनी, इस पर बड़ी-बड़ी बहसें हों, जब देश का राजनैतिक परिदृश्य ऐसा बन गया है, तब महंगाई या बेरोजगारी की गंभीर समस्या पर चर्चा की गुंजाइश कहां रह जाती है।

गनीमत है कि जो काम सरकार नहीं कर रही, कम से कम विपक्ष उस मुद्दे को गुम नहीं होने दे रहा है। राहुल गांधी के नेतृत्व में निकल रही भारत जोड़ो यात्रा में महंगाई भी एक अहम मुद्दा है। इस यात्रा ने किलोमीटर का शतक पूरा कर लिया है, यानी सौ किमी से अधिक दूरी तक राहुल गांधी और उनके साथ चल रहे बाकी यात्रियों ने पदयात्रा पूरी कर ली है। सुबह-शाम चलने के बावजूद राहुल गांधी समेत किसी यात्री के चेहरे पर थकान नहीं दिख रही है। किसी के पैर में छाले बन गए, किसी की एड़ियों से खून निकल रहा है, लेकिन मजाल है कि ऐसी कोई भी शारीरिक तकलीफ भारत जोड़ो यात्रा के उत्साह को कम कर पा रही हो। पिछले सात दिनों में इस यात्रा में लोगों के समर्थन और जोश की कई खूबसूरत तस्वीरें देखने मिली हैं। कहीं कोई बच्ची राहुल गांधी का हाथ पकड़ रही है, कहीं कोई बूढ़ी महिला उनके हाथ से पानी पी रही है, बहुत से लोग गोद में बच्चों को लिए चल रहे हैं, कई युवा राहुल गांधी के कदम से कदम मिलाने आगे बढ़ रहे हैं।

जिन लोगों की जुबां पर ये सवाल रहा करता था कि देश में विपक्ष कहां है, कांग्रेस के लोग सड़कों पर क्यों नहीं दिखते, इस यात्रा से उन सारे लोगों को जवाब मिल रहे हैं। अब कांग्रेस के कई शीर्ष नेता ही नहीं, उनके साथ जनसैलाब सड़क पर आ गया है। अलग-अलग धर्मों, प्रांतों और भाषाओं के लोग राहुल गांधी के साथ यात्रा करने के लिए स्वैच्छिक तौर पर आगे आ रहे हैं। कोई महंगाई का दर्द बयां कर रहा है, कोई बेरोजगार होने की पीड़ा सुना रहा है। बहुत से लोग देश में बने नफरत के माहौल को बदलने के इरादे से इस यात्रा में भागीदारी कर रहे हैं। ये जज्बा दिखाता है कि देश की मौजूदा परिस्थितियों को आंख मूंद कर सब चंगा सी नहीं कहा जा सकता। बहुत सी ऐसी बातें हैं, जो लोगों को तकलीफ दे रही हैं और अब लोग उन पर आवाज़ उठाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। यही एक सफल नेतृत्व और राजनेता की पहचान है। राहुल गांधी फिलहाल इस पर खरे उतरते दिख रहे हैं।

हालांकि इस यात्रा के शुरुआती सात दिनों में ही अलग-अलग प्रवृत्तियों के विवाद भी उभरे हैं, लेकिन इन्हें अधिक महत्व न देकर कांग्रेस को यात्रा के उद्देश्य और मंजिल पर ही ध्यान देना चाहिए। गलत बातों का जवाब तथ्यों के साथ तो देना चाहिए, लेकिन विवादों में बहुत ज्यादा उलझ कर अपनी शक्ति और सामर्थ्य गंवाने का कोई अर्थ नहीं है। कांग्रेस को यह याद रखना चाहिए कि उसका मकसद क्षुद्र स्वार्थ की राजनीति से कहीं अधिक विशाल है। कांग्रेस भारत के विचार को पुन: स्थापित करने के लिए निकली है, जिसमें विवादों के रोड़े आएंगे, लेकिन कांग्रेस को उनसे बचना होगा।

इस यात्रा के कारण देश की असल समस्याओं पर देशव्यापी चर्चा की शुरुआत होगी या उनके समाधान के लिए जनता खुद जागरुक होगी, तो यही इसकी सफलता मानी जाएगी।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *