राजनैतिकशिक्षा

देश के विकास में परिवारवाद और भ्रष्टाचार से भी बड़ी बाधा है सांप्रदायिकता व जातिवाद

-तनवीर जाफ़री-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

भारतवर्ष इस वर्ष स्वाधीनता की 75 वीं वर्षगांठ ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के रूप में मना रहा है। इस सिलसिले में देश भर में अनेक आयोजनों के द्वारा कृतज्ञ राष्ट्र उन स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति नत मस्तक होकर पूर्ण श्रद्धा व सम्मानपूर्वक याद कर रहा है जिनकी बेशक़ीमती क़ुर्बानियों की बदौलत देश को स्वाधीनता प्राप्त हुई। देश भर में इस बार 13 से 15 अगस्त तक ‘घर घर तिरंगा’ के नाम से एक ऐतिहासिक मुहिम छेड़ी गयी। परिणाम स्वरूप देश भर में रिकॉर्ड स्तर पर तिरंगा झंडा फहराया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार नवीं बार लाल क़िले की प्राचीर से तिरंगा फहरा कर 82 मिनट का भाषण देकर देश को संबोधित किया।

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में जिन सबसे प्रमुख मुद्दों को रेखांकित किया उनमें महिलाओं के प्रति बढ़ता असम्मान, भ्रष्टाचार और परिवारवाद सर्वप्रमुख था। गोया देश की स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद आज प्रधानमंत्री की नज़रों में यही सबसे बड़ी समस्यायें हैं। प्रधानमंत्री के भाषण में जनता की रोज़मर्रा की ज़िन्दिगी से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या मंहगाई और बेरोज़गारी का कोई ज़िक्र नहीं किया गया। विश्लेषकों का कहना है कि प्रधानमंत्री द्वारा नारी शक्ति को लेकर जो चिंतायें जताई गई इससे भी यही प्रतीत होता है कि भाजपा महिलाओं को जाति और धर्म आधारित वोट बैंक से भी बड़े वोट बैंक के रूप में देख रही है। जबकि परिवारवाद और भ्रष्टाचार पर विस्तृत भाषण देकर प्रधानमंत्री ने अपने विपक्षी व क्षेत्रीय दलों पर निशाना साधा।

तो क्या देश की ‘आज़ादी के अमृत काल’ में वास्तव में वर्तमान समय की सबसे विकट समस्या नारी शक्ति का असम्मान, भ्रष्टाचार और परिवारवाद ही है या इन मुद्दों का ज़िक्र कर इससे भी बड़े और ज़रूरी मुद्दों की तरफ़ से ध्यान भटकाने की कोशिश की गयी? हालांकि प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर देशवासियों से पांच प्रण करने का भी आह्वान किया जिसमें विकसित भारत, ग़ुलामी की सोच से मुक्ति, अपनी विरासत पर गर्व करने के साथ साथ एकता और एकजुटता की बात तो ज़रूर की गयी है। परन्तु इस एकता और एकजुटता जैसे वर्तमान में सब से महत्वपूर्ण व ज्वलंत विषय पर न तो उन्होंने कोई रोड मैप पेश किया न ही जनता से इस विषय पर कोई विस्तृत चर्चा करना ज़रूरी समझा। जबकि आज जब हम स्वाधीनता की 75 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तो हमारे सामने साम्प्रदायिक एकता और ज़ात पात उन्मूलन को एक आदर्श विषय के रूप में पेश किया जाना चाहिये। जब प्रधानमंत्री स्वतंत्रता सेनानियों का नाम ले रहे थे तो उनमें उन्होंने नाम अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान का भी नाम लिया। इसी सन्दर्भ में उन्हें साम्प्रदायिक एकता व सांप्रदायिक व जातिगत सद्भाव की ज़रुरत पर भी ज़ोर देना चाहिये था।

एक तरफ़ तो स्वयं प्रधानमंत्री से लेकर उनकी पार्टी के तमाम छोटे बड़े नेता तक अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के कल्याण हेतु किये जाने वाले किसी भी बयान या फ़ैसले को ‘तुष्टिकरण’ का नाम देते हैं। और बहुसंख्य समाज को ख़ुश करने वाले अपने निर्णयों को तुष्टिकरण के बजाये ‘तृप्तीकरण’ बताते हैं। भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में बने रहने का मुख्य कारण भी पार्टी नेताओं का यही ‘नरेटिव’ गढ़ना है। इसीलिये भाजपा नेताओं में अल्पसंख्यकों को अपमानित करने की एक तरह से होड़ लगी हुई है। ऐसा प्रतीत होता है गोया अल्पसंख्य्कों को अपमानित करना भाजपा में नेताओं की तरक़्क़ी का एक पैमाना सा बन चुका है। देश भर में सत्ता संरक्षित तमाम दक्षिण पंथी नेता घूम घूम कर मुस्लिम विरोधी विष वमन कर रहे हैं। उनके सामाजिक व व्यवसायिक बहिष्कार तक की बातें सरे आम की जा रही हैं। परन्तु ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के पावन अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा इस विषय को न छेड़ा जाना चिंता का विषय है। ख़ास तौर पर तब और भी जबकि वे देशवासियों से पांच प्रण की बात कर रहे हों और उन प्रण में एकता और एकजुटता की बात भी प्रधानमंत्री द्वारा की जा रही हो? देश में एकता और एकजुटता के लिये तो सबसे ज़रूरी है परस्पर सौहार्द्र, आपसी विश्वास, प्रत्येक देशवासियों में एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना का विकसित होना, समाज के हर वर्ग के कमज़ोर तबक़े को ऊपर उठाने की भावना को विकसित करना और साथ साथ सामुदायिक स्तर पर फैल रही नफ़रत को न केवल रोकना बल्कि नफ़रत फैलाने वालों के विरुद्ध सख़्त कार्रवाई भी करना।

इसी तरह समाज में व्याप्त जातीय वैमनस्य को भी जड़ से समाप्त करना बेहद ज़रूरी है। कितना दुखद है कि जिस समय देश ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के जश्न में डूबा है ठीक उसी समय एक कथित स्वर्ण जाति का अध्यापक अपने ही स्कूल व अपने ही क्लास के एक दलित छात्र को इसलिये पीटता है क्योंकि उस प्यासे दलित बच्चे ने अध्यापक के निजी मटके से पानी क्यों पी लिया? और इतना पीटता है कि उस दलित बच्चे की मौत तक हो जाती है? किसकी हिम्मत है जो उस दलित परिवार से कहे कि आओ हमारे साथ स्वाधीनता की 75 वीं वर्षगांठ को ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के रूप में मनाओ और अपने घर पर तिरंगा फहराओ? किसी मुसलमान सिख दलित या आदिवासी को राष्ट्रपति बना देना मात्र समुदाय विशेष का सांकेतिक ‘तुष्टिकरण’ तो ज़रूर कहा जा सकता है परन्तु किसी समाज विशेष के समग्र विकास की चिंता करना और उनकी समस्याओं व शिकायतों का निवारण करना, उनकी तरक़्क़ी की फ़िक्र करना, उनमें समानता का भाव पैदा करना, उनके दिलों से किसी भी प्रकार के उपेक्षा व भय के वातावरण को निकाल फेंकना उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है। ठीक इसके विपरीत कभी टीपू सुल्तान जैसे स्वतंत्रता सेनानी को अपमानित करने, आमिर ख़ान की फ़िल्मों का बहिष्कार करने, और चुनिंन्दा समाज के लोगों को निशाना बनाने की अनेक साज़िशें रची जा रही हैं?

निसंदेह प्रधानमंत्री द्वारा पांच प्रण की बात करना और उन में एकता और एकजुटता की बात करना अत्यंत स्वागत योग्य है। परन्तु समाज में एकता और एकजुटता क़ायम करने के तरीक़ों पर विस्तृत चर्चा भी बेहद ज़रूरी है। यह परिवारवाद और भ्रष्टाचार की चर्चा से भी अधिक ज़रूरी है। क्योंकि देश के समग्र विकास में परिवारवाद और भ्रष्टाचार से भी बड़ी बाधा है सांप्रदायिकता व जातिवाद।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *