गुजरात पर नजर…. इसलिए ‘आप’ पर कहर….?
-ओमप्रकाश मेहता-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
अब धीरे-धीरे राजनीति से भी सिद्धांत, नीति और मानवता का लोप होता जा रहा है, आज की राजनीति का मक्सद केवल और केवल ‘सत्ता’ रह गया है, चाहे वह फिर किसी भी वैध या अवैध हथकण्डे से क्यों न मिले? कुछ ‘महान’ राजनेताओं और उनके दलों ने राज्यों को अपनी ‘धरती’ समझ लिया है, इसीलिए वे यह कतई नहीं चाहते कि उनके अपने वर्चस्व वाले राज्य में कोई दूसरा राजनीतिक दल कदम भी रखे, यही स्थिति आज गुजरात के साथ है, जहां प्रधानमंत्री भाई नरेन्द्र मोदी के अपना वर्चस्व कायम कर रखा है, अब वे यह कतई नही चाहते कि कोई अन्य नेता या उसका राजनीतिक दल वहां झांकने की भी कोशिश करें और चूंकि यह जुर्रत आम आदमी पार्टी कर रही है इसीलिए वह इन दिनों मोदी जी के निशाने पर आ गई है।
भारतीय राजनीति में आजादी के पहले से गुजरात की अहम भूमिका रही है, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल से लेकर भाई नरेन्द्र मोदी गुजरात की ही देन है और इन हस्तियों का भारतीय राजनीति या मौजूदा भारत के निर्माण में कितना अहम् योगदान रहा, यह किसी से भी छुपा हुआ नहीं है और यदि राजनीतिक नजरिये से देखा जाए तो गुजरात कभी कांग्रेस का गढ़ रहा तो आज भाजपा उसे अपना गढ़ मानती है और इसीलिए वहां कांग्रेस को अस्तित्वहीन करने के बाद भाजपा कतई नही चाहती कि वहां अब और किसी पार्टी का दखल हो और चूंकि आम आदमी पार्टी दिल्ली-पंजाब के बाद गुजरात के सुनहरे सपने देखने लगी है, इसीलिए भाजपा ‘आप’ को मुंगेरीलाल बनाने पर तुली है।
पिछले दिनों जब आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली व पंजाब जैसी बिजली-पानी व अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की घोषणाएं गुजरात जाकर की, तब प्रधानमंत्री जी को ‘मुफ्त की रेवड़ी’ याद आई और वे इन रेवड़ियों का राजनीति में अस्तित्व खत्म करने का संकल्प ले बैठे, जबकि वे स्वयं यह जानते है कि आज की राजनीति ही ‘रेवड़ी’ आधारित है, जो सत्तारूढ़ पार्टियां जनता के पैसों से ही बांटती आ रही है, ये रेवड़ियां राजनेता व उनकी सत्ता के लिए चाहे ‘मुफ्त’ हो किंतु जनता को तो ये काफी महंगी पड़ रही है और राजनीति में इन रेवड़ियों के मौजूदा जन्मदाता श्री केजरीवाल को ही माना जा रहा है जो मुफ्त बिजली, पानी व अन्य आवश्यक जीवनोपयोगी वस्तुओं को उपलब्ध करवाने की घोषणा कर अपना राजनीतिक स्वार्थ साधने की कोशिश कर रहे है और ये अपने इस मकसद में काफी हद तक सफल भी हो रहे है, इसीलिए प्रधानमंत्री जी व उनकी पार्टी को चिंता हुई और उन्होंने रेवड़ियों का मुद्दा उठाया और कहा कि- ‘‘यह रेवड़ी संस्कृति देश के विकास के लिए बहुत खतरनाक है, इसे देश से बाहर करना है।’’
यहाँ यह बताना भी जरूरी है कि आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेता अरविंद केजरीवाल ने मानव की दुखती रगों पर हाथ रखकर, उन्हें जरूरी सुविधाएं मुहैय्या कराकर, वोटरों के वर्ग विशेष को उनकी सुविधा के अनुरूप सहायता प्रदान कर पहले दिल्ली और बाद में पंजाब में अपनी सत्ता कायम की और अब उनकी नजर गुजरात चुनाव पर है इसलिए भाजपा सतर्क हो रही है। दिल्ली व पंजाब में केजरीवाल जी की पार्टी की सरकारों ने जहां महिलाओं को मेट्रों और डीटीसी बसों में सफर की मुफ्त सुविधा प्रदान की साथ ही बिजली, पानी, शिक्षा व चिकित्सा को लगभग मुफ्त उपलब्ध कराया यही वे घोषणाएं गुजरात के चुनाव प्रचार में भी कर रहे है, यद्यपि केजरीवाल जी व उनकी पार्टी की सरकारों द्वारा दी जा रही इन सुविधाओं को भारतीय लोकतंत्र में राजनीति को दूषित करने वाली बताया जा रहा है, किंतु यह तर्क आम समझ से इसलिए बाहर है क्योंकि क्या आम वोटर को उसकी इच्छित सुविधाएं मुहैय्या कराना क्या गलत व गैर लोकतांत्रिक है, क्या हमारे भारत में चुनाव पूर्व राजनीतिक दलों द्वारा घोषणा-पत्र या संकल्प-पत्र तैयार नहीं किए जाते? ये घोषणा-पत्र या संकल्प-पत्र ‘आप’ द्वारा जनता को मुहैय्या कराई जा रही सुविधाओं से अलग मुद्दों वाले होते है? अब यह तो मानव मनोविज्ञान ही है कि जहां मानव को अपनी इच्छित आकांक्षाओं की पूर्ति नजर आएगी, उसका आकर्षण उस ओर होगा ही, फिर उसे आज की राजनीति में ‘रेवड़ी’ कहा जाए या कुछ और?
….और आज प्रधानमंत्री जी व उनकी पार्टी की सबसे बड़ी चिंता ये ‘रेवड़ियां’ ही है, इसलिए उनकी पार्टी व सरकार ने ‘आबकारी नीति’ जैसे राजनीतिक मुद्दें गैर राजनीतिक हस्ती उपराज्यपाल के माध्यम से उठवाए और देश में पहली बार किसी राज्य सरकार की नीति की सीबीआई से जांच कराने की जरूरत समझी? पर क्या मोदी जी या केन्द्र सरकार अथवा भाजपा के ये हथकण्डे ‘आप’ को रोक पाने में सफल सिद्ध हो पाएगें? चाहे दिल्ली-पंजाब के कितने ही मंत्रियों को ‘‘कृष्ण जन्मस्थली’’ के दश्रन क्यों न करा दिए जाऐं? ….यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय राजनीति में यह ‘नया चलन’ किस किस को भारी पड़ेगा? इसकी फिलहाल कल्पना भी असंभव है?