कंगाली में आटा गीला
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
रसोई गैस का सिलेंडर एक बार फिर 50 रुपए महंगा कर दिया गया है। प्रथमद्रष्ट्या यह बड़ी ख़बर नहीं लगती, क्योंकि महंगाई बढ़ती ही जा रही है। अब राजधानी दिल्ली में एलपीजी का 14 किलो वाला सिलेंडर 1053 रुपए में मिलेगा। दूरदराज के इलाकों में यह कीमत 1100-1150 रुपए हो सकती है। बीते चार माह के दौरान 153 रुपए से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। जून, 2021 के बाद से गैस सिलेंडर 244 रुपए महंगा हुआ है। यदि बीते अढ़ाई साल का आकलन करें, तो रसोई गैस का सिलेंडर दोगुना महंगा हो चुका है। जिस वर्ग के पास पर्याप्त या प्रचुर संसाधन हैं, उसके लिए यह महंगाई बेमानी हो सकती है, लेकिन जो निम्न मध्य वर्ग का है या गरीब है अथवा बेरोज़गार भी है और प्रधानमंत्री अन्न योजना के मुफ्त राशन का मोहताज है, उसके लिए 1100 रुपए का गैस सिलेंडर खरीदना बेहद मुश्किल है। रसोई गैस पर सरकार ने अप्रैल, 2020 में ही सबसिडी खत्म कर दी थी। सिर्फ उज्ज्वला गैस योजना के लाभार्थियों को प्रत्येक सिलेंडर पर 200 रुपए की सबसिडी दी जा रही है, क्योंकि 90 लाख से अधिक लाभार्थियों ने एक बार भी सिलेंडर नहीं भरवाया और 1.08 लाख लाभार्थियों ने सिर्फ एक बार रिफिल करवाया। उज्ज्वला योजना के कुल लाभार्थी करीब 8.99 करोड़ हैं।
चूंकि योजना की नाकामी का अंदेशा बढ़ रहा था, गरीब परिवार लकड़ी और उपले जलाने पर लौट रहे थे, लिहाजा सरकार को सबसिडी की घोषणा करनी पड़ी। ख़बर यहीं तक सीमित नहीं है। इसी 18 जुलाई से आटा, गेहूं, दाल, बेसन, चना, तेल, नमक, दूध, दही, पनीर से लेकर सब्जियां और काग़ज-पेंसिल और प्रिटिंग तक सभी रोजमर्रा की महत्त्वपूर्ण वस्तुएं महंगी होने जा रही हैं, क्योंकि उन पर जीएसटी लगाने का निर्णय कर लिया गया है। ये देश के भीतर की मुद्रास्फीति ही नहीं, ‘आयातित मुद्रास्फीति’ के असर के नतीजे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और रूस-यूक्रेन युद्ध के जारी रहने से बिगड़ी सप्लाई चेन की दलीलें अब भी दी जा रही हैं। बहरहाल एक तरफ रसोई गैस महंगी और दूसरी तरफ रोजमर्रा के उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी से एक ही मुहावरा याद आ रहा है-‘कंगाली में आटा गीला।’ महंगाई दर आज भी 15 फीसदी से ज्यादा है। खुदरा महंगाई दर कुछ कम है, लेकिन आम आदमी की उसने भी कमर तोड़ दी है, क्योंकि कोरोना-काल के बाद भी औसत अर्थव्यवस्था अस्थिर है।
एलपीजी सिलेंडर ही नहीं, रेगुलेटर भी 100 रुपए महंगा कर दिया गया है। नया गैस कनेक्शन महंगा कर 2200 रुपए कर दिया गया है। हालांकि सरकार ने खाद्य तेल कंपनियों को निर्देश दिए हैं कि 10 रुपए प्रति लीटर दाम कम किए जाएं। सरकार बहुत कुछ छीन लेती है, फिर हथेली पर एक दाना रख देती है। यह कैसी अर्थव्यवस्था है कि घाटा तेल विपणन कंपनियों को ही हो रहा है? गैस सिलेंडर महंगा किया, उससे पहले पेट्रोल-डीजल के दाम हररोज़ बढ़ाए जाते रहे। सरकार हर बार दावा करती है कि महंगाई कम करने के उपाय किए जा रहे हैं। महंगाई में कब और कितनी राहत दी है मोदी सरकार ने? ऐसा नहीं है कि सरकार इस अर्थव्यवस्था को नहीं जानती या आम आदमी की तकलीफों को महसूस नहीं करती, लेकिन महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। यदि हमारी खरीद-क्षमता के आधार पर विश्लेषण किया जाए, तो भारत की रसोई गैस दुनिया में सबसे महंगी है। इसका सीधा असर आम आदमी के भोजन पर पड़ेगा। वह तीन वक़्त का खाना पकाने में असमर्थ होगा, तो एक ही वक़्त भोजन बनाएगा। उसे ही दोपहर-शाम में खा लेगा अथवा भूखा सोने को विवश होगा। इससे हमारी खाद्य सुरक्षा प्रणाली भी प्रभावित होगी। चूंकि सरकार ने इस बार गेहूं की खरीद कम की है, लिहाजा 10 राज्यों में गेहूं का आवंटन 40 फीसदी घटा दिया गया है। मप्र, गुजरात, उप्र में भाजपाशासित सरकारें ही हैं, लेकिन मुफ्त अनाज में चावल अधिक मुहैया कराया जा रहा है, जबकि इन राज्यों की ज्यादातर आबादी गेहूं खाती है। सवाल यह भी है कि जिस तरह महंगाई बढ़ रही है, क्या प्रधानमंत्री मोदी बिल्कुल संवेदनहीन हैं या अर्थव्यवस्था उनके हाथ से निकल चुकी है?