राजनैतिकशिक्षा

लालू पर शिकंजा

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

26 साल से कोर्ट में चल रहे देश के बहुचर्चित चारा घोटाले में एक बार फिर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को तगड़ा झटका लगा है। पांचवें और सबसे बड़े मामले डोरंडा केस में भी लालू को सीबीआई की विशेष कोर्ट ने दोषी ठहराया है। उन्हें हिरासत में ले लिया गया है। लालू प्रसाद यादव पर सजा का एलान अब 21 फरवरी को किया जाएगा। 139.5 करोड़ रुपए की अवैध निकासी केस में सजा का ऐलान बाद में होगा। इस मामले में 36 लोगों को 3-3 साल की सजा सुनाई गई है। हालांकि, लालू प्रसाद यादव पर सजा का एलान अब 21 फरवरी को किया जाएगा। यह मामला डोरंडा कोषागार से 139 करोड़ रुपए की अवैध निकासी से जुड़ा है। बिहार की राजनीति से दिल्ली की सियासत में अपना दबदबा रखने वाले लालू चारा घोटाले में ऐसे घिरे कि सियासत में अर्श से फर्श पर आ गए। डोरंडा कोषागार घोटाले में कई चैंकाने वाले मामले सामने आए। जिसमें पशुओं को फर्जी रूप से स्कूटर और मोटरसाइकिल पर ढोने की कहानी शामिल है। मामला 1990-92 के बीच का है। अफसरों और नेताओं ने फर्जीवाड़ा की नई कहानी ही लिख दी। फर्जीवाड़ा कर बताया गया कि 400 सांड़ को हरियाणा
और दिल्ली से स्कूटर और मोटरसाइकिल पर रांची तक ढोया गया। यानी घोटाले में जिस गाड़ी नंबर को विभाग ने पशु को लाने के लिए दर्शाया था, वे मोटसाइकिल और स्कूटर के नंबर निकले। सीबीआई ने जांच में पयाा कि कई टन पशुचारा, पीली मकई, बादाम, खल्ली, नमक आदि ढोने के लिए स्कूटर, मोटरसाइकिल और मोपेड का नंबर दिया गया था। सीबीआई ने जांच में कहा था कि ये व्यापक षड्यंत्र का मामला है। इसमें राज्य के नेता, कर्मचारी और व्यापारी सब भागीदार थे। इस मामले में बिहार के एक और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र समेत राज्य के कई मंत्री गिरफ्तार किए गए थे। लालू प्रसाद को अब तक करोड़ों रुपये के चारा घोटाले से जुड़े पांच में से चार मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है। चारा घोटाले के चार मामलों- देवगढ़, चाईबासा, रांची के डोरंडा कोषागार और दुमका मामले में लालू प्रसाद को जमानत दे दी गई थी। डोरंडा केस में लालू को सजा ऐसे समय हुई है, जब वे बिहार की राजनीति में सक्रिय भूमिका में आने लगे थे और जातिगत जनगणना के मुद्दे पर नीतीश के साथ तेजस्वी यादव की नजदीकी के पीछे भी लालू की भूमिका मानी जा रही थी। लालू यादव अगर फिर से जेल जाते हैं तो यह राजद के लिए बड़े झटके जैसा होगा। बिहार की राजनीति में भाजपा और जदयू को कहने का मौका मिल जाएगा कि राजद सिर्फ कमाई के लिए सत्ता चाहती है। यह किसी से छिपा नहीं है कि बिहार की राजनीति में लालू का क्या प्रभाव है। वे नीतीश के साथ सरकार बनाकर अपनी क्षमता साबित कर चुके हैं। एक बार फिर वे इसी
राह पर आगे बढ़ रहे थे। अब 21 फरवरी को तय होगा कि लालू यादव बिहार की राजनीति में वापसी कर पाएंगे या नहीं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का बिहार में राजनीतिक प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता है। बदले हालात में लालू के प्रतिद्वंद्वियों की नजर उनके सामाजिक आधार व परांपरागत वोटरों में पैठ बनाने की है। हालांकि राजद को भरोसा है कि लालू के प्रति
सहानुभूति से पार्टी को जरूर फायदा पहुंचेगा। लालू के प्रभाव का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा एवं जदयू को लग रहा है कि चारा घोटाले में सजा के बाद यादव वोटर उनके तरफ खिसक आएंगे। बिहार की करीब साढ़े दस करोड़ की जनसंख्या में 11 फीसद यादव मतदाता हैं। यह लालू यादव के प्रति न सिर्फ वफादार समझे जाते हैं, बल्कि अगड़ी जातियों के राजनीतिक प्रभुत्व के सापेक्ष में दो दशक से सामाजिक संतुलन के कारक भी हैं।

 

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