राजनैतिकशिक्षा

फिर कश्मीर राग

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

दुनिया भर में कश्मीर के मुद्दे पर दुत्कारे जाने के बाद अब पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को लेकर चीन की चैखट पर पहुंचा है। हालांकि, यहां भी उसे आश्वासन और एक बयान के अलावा कुछ खास हासिल नहीं हुआ। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान विटंर ओलंपिक की ओपनिंग सेरेमनी में शामिल होने के लिए चार दिन के दौरे पर बीजिंग पहुंचे थे। इसके आखिरी दिन उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। इमरान ने इस मुलाकात में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे में आ रही अड़चनों और चीनी वर्कर्स पर बार बार हो रहे हमलों के बारे में भी बात की। कश्मीर को लेकर चीन की तरफ से कहा गया कि वो किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करता है और कश्मीर मुद्द को ठीक से और शांति से हल करने का आह्वान करता है। इससे पहले भी इमरान कई फोरम पर कश्मीर का मुद्दा उठा चुके हैं, मगर हर जगह से उन्हें नाकामी हाथ लगी। थक हारकर उन्होंने अपना स्टैंड बदला और यह कहा कि वे भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखने और कश्मीर सहित सभी मसलों को बातचीत के जरिए सुलझाने के पक्ष में हैं, अगर भारत एक कदम बढ़ता है तो हम दो कदम बढ़ेंगे। उनके इस कथन में भी कश्मीर राग छिपा था, सो भारत ने उनकी पहल को नकार दिया। भारत का शुरू से दृढ़ मत रहा है कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। भारत हमेशा से कहता आया है कि कश्मीर मसले पर वह पाकिस्तान के साथ बातचीत को हमेशा तैयार है, लेकिन इसके लिए सबसे पहले वह सीमापार आतंकवाद को बंद करे। लेकिन जब इमरान यह तक कह रहे हैं कि पाकिस्तान कश्मीरी लोगों को नैतिक, राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन देता रहेगा, तो फिर कश्मीर मसला बातचीत से सुलझाने की गुंजाइश ही कहां रह जाती है! साफ है कि पाकिस्तान वही करेगा जो अब तक करता आया है। पाकिस्तान में पीटीआई की सरकार बनी ही सेना के समर्थन से है। इसलिए कश्मीर मसले पर सरकार का रुख सेना से अलग कैसे हो सकता है! पाकिस्तान की सेना कश्मीर को भारत के खिलाफ बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति पर चलती आई है। पाकिस्तान का इतिहास बताता है कि अब तक जितनी भी निर्वाचित सरकारें सत्ता में रहीं या जो सैन्य शासक रहे, कश्मीर पर सबका एक ही रुख रहा है और अल्वी भी इसी रास्ते पर बढ़ रहे हैं। दरअसल, अभी तक भारत के प्रति पाकिस्तान के रवैए में कोई बड़ा सकारात्मक बदलाव नजर नहीं आया है। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भारत सरकार फिलहाल ‘देखो और प्रतीक्षा करो्य की नीति पर चले, यही बेहतर है। इमरान खान सरकार के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तान का आर्थिक संकट है। देश की अर्थव्यवस्था पेंदे में जा चुकी है। पाकिस्तान तीस खरब डॉलर के कर्ज में डूबा है। भारत साफ कह चुका है कि पड़ोसी देश से बात तभी हो सकती है जब माहौल अनुकूल होगा। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि घाटी में पाकिस्तान-परस्त तत्वों की सक्रियता की एक बड़ी वजह अनुच्छेद 370 ही था। वे इस अनुच्छेद को इस रूप में पेश करते थे, जैसे कश्मीर भारत से भिन्न् है और उसे देश से अलग होने का अधिकार है। इस अनुच्छेद का खात्मा केवल इसलिए जरूरी नहीं था कि वह अलगाववादियों की आड़ और औजार बन गया था, बल्कि इसलिए भी था, क्योंकि उसके जरिए पाकिस्तान यह दुष्प्रचार करने में समर्थ था कि उसे इस भारतीय भू-भाग में दखल देने का अधिकार है। अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद पाकिस्तान बुरी तरह बौखलाया तो इसीलिए कि वह कश्मीर का राग अलापने की फर्जी आड़ से हाथ धो बैठा। पाकिस्तान की बौखलाहट की परवाह न करते हुए भारत को यह रेखांकित करते रहना चाहिए कि वास्तव में उसे गुलाम कश्मीर में हस्तक्षेप करने का अधिकार है। इससे ही पाकिस्तान और साथ ही कश्मीर में उसकी तरफदारी करने वालों के हौसले पस्त होंगे। जहां तक नजरबंद कश्मीरी नेताओं की रिहाई की मांग है, तो इस पर विचार तभी किया जाना चाहिए जब यह भरोसा हो जाए कि वे अलगाववादी तत्वों को उकसाने का काम नहीं करेंगे।

 

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