कृषि एवं डिजिटल तकनीक के क्षेत्र में अफ्रीका के साथ भारत अपने सफल अनुभव साझा करने को तत्पर: नायडू
नई दिल्ली, 04 सितंबर (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने भारत की विदेश नीति में अफ्रीका के महत्व को प्राथमिक श्रेणी का बताते हुये कहा कि कृषि एवं डिजिटल तकनीक के क्षेत्र में भारत अपने सफल अनुभव को अफ्रीका के साथ साझा करने के लिये तत्पर है। नायडू ने बुधवार को विश्व मामलों की भारतीय परिषद (आईसीडब्ल्यूए) द्वारा आयोजित बदलती वैश्विक व्यवस्था में भारत अफ्रीका संबंध विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुये कहा कि उपनिवेशवाद से जुड़े साझा संघर्षपूर्ण अनुभवों के मद्देनजर भारत और अफ्रीका, विकास और सामाजिक उत्थान के विभिन्न क्षेत्रों में अपने कौशल एक दूसरे से साझा करने को तत्पर हैं। नायडू ने संगोष्ठी में अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधियों, राजनयिकों और विदेश नीति के विशेषज्ञों को संबोधित करते हुये कहा, भारत अपनी सफल डिजिटल क्रांति के अनुभवों को अफ्रीका के साथ साझा करने के लिए तत्पर है। हम जनसेवाओं के विस्तार, जन स्वास्थ्य और शिक्षा, डिजिटल साक्षरता, वित्तीय समावेश और दुर्बल वर्गों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने जैसे विषयों पर अपने अनुभव साझा करने के लिए तैयार हैं। अफ्रीका की कृषि के क्षेत्र में तात्कालिक जरूरतों का जिक्र करते हुये नायडू ने कहा कि अफ्रीका में विश्व की 60 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि है, किन्तु विश्व के कुल कृषि उत्पादन का महज 10 प्रतिशत पैदा होता है। ऐसे में भारत कृषि के क्षेत्र में अफ्रीका को सहयोग दे सकता है। उपराष्ट्रपति ने द्विपक्षीय आपसी सहयोग के मूलभूत आधार बिंदुओं के हवाले से कहा, भारत और अफ्रीका ने उपनिवेशवाद के विरुद्ध साझा लड़ाई लड़ी है। हम एक ऐसी लोकतांत्रिक वैश्विक व्यवस्था चाहते हैं जिसमें भारत और अफ्रीका में रहने वाली विश्व की एक तिहाई जनसंख्या को सार्थक स्वर मिले। नायडू ने कहा कि यह संगोष्ठी ऐसे समय हो रही है जबकि भारत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाने जा रहा है। उन्होंने इस पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुये कहा भारत में अधिसंख्य लोग अफ्रीका को महात्मा की कर्मभूमि के रूप में देखते हैं, जहां से उन्होंने समता और न्याय की खातिर अपने संघर्ष का आगाज किया था। इस अवसर पर नायडू ने राजनयिक दिलीप सिन्हा द्वारा लिखित पुस्तक शक्ति की मान्यताः संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तथा अंतरराष्ट्रीय मामलों की विशेषज्ञ एवं पूर्व राजनयिक भास्वती मुखर्जी की पुस्तक भारत और यूरोपीय संघः एक अंतरंग दृष्टिकोण का लोकार्पण भी किया।