राजनैतिकशिक्षा

सामंजस्य बनाकर आगे बढ़ना ही विकास की सही दिशा..!

-डॉ.प्रवीण तिवारी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

हर बदलते साल के साथ भविष्य को देखने का नजरिया भी बदलता है। माइक्रोसॉफ्ट के एक पूर्व वरिष्ठ इंजीनियर से बातचीत के दौरान 2007 की घटना का जिक्र उन्होंने किया। उस समय 2020 का एक विजन उनके सामने रखा गया था। उस वक्त स्मार्टफोन का दौर नहीं आया था और एप्लीकेशन के बारे में तो लोग दूर दूर तक नहीं जानते थे। फेसबुक के बजाय ओरकुट चलता था। उस मीटिंग में बताया गया कि बहुत तेजी से वह समय आएगा, जब 2020 तक सारे काम मोबाइल फोन से होने लगेंगे। अस्पताल, एयरपोर्ट में एंट्री जैसे कई काम मोबाइल पर ही हो जाएंगे।
निश्चित तौर पर वह बहुत हद तक ये विजन जमीन पर आ गया। कुछ कमी हमेशा रह जाती है। जापान में बुलेट ट्रेन 1964 से चल रही है लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में आज भी ट्रांसपोर्ट बहुत धीमी गति से चल रहा है। भारत के विकास की बात करें तो हमारे यहां ज्यादातर चीजें दुनिया में विकसित होने के बहुत बाद सामने आती हैं। वह चाहे ट्रांसपोर्टेशन हो, इंफ्रास्ट्रक्चर हो या दूसरी चीजें। यह पहला मौका है जब हम बहुत तेज गति से विकास कर रहे हैं। सबसे पहले हमें अपनी मूलभूत चीजों को सुधारना है। जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, सुरक्षा आदि इत्यादि।
इसी तरह इनोवेशन और वैज्ञानिक सोच का विकास करने के लिए युवाओं को एक आधार देने की आवश्यकता है। पूरे मानव सभ्यता के विकास की बात करें तो आने वाले समय में कम्यूनिकेशन का और तेज होना, वर्चुअल रियलिटी का जीवन में और प्रभाव होना, ट्रांसपोर्टेशन का और तीव्र होना ऐसी बहुत सी चीजें होंगी जो सामान्य बदलाव हैं। कुछ बदलाव है जो रहस्यमई तरीके से सामने आते हैं। निश्चित तौर पर विज्ञान मानव जीवन को और सरलीकृत करेगा लेकिन साथ ही साथ प्रदूषण, प्रकृति का दोहन जैसी चुनौतियां हमेशा विज्ञान के विकास पर प्रश्नचिन्ह खड़े करती रहती हैं। ऊर्जा के नए स्रोतों की तरफ बढ़ना और पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता का धीरे-धीरे खत्म होना, एक महत्वपूर्ण विकास होगा।
सौर ऊर्जा के क्षेत्र में और ज्यादा कार्य किए जाने की आवश्यकता पहले से ही महसूस की जा रही है। यह सब बाह्य जगत का विकास है। भारत हमेशा से अध्यात्म की भूमि रहा है और आंतरिक विकास को ज्यादा महत्व दिया गया है। लेकिन एक समय था जब आध्यात्मिक यात्रा के साथ-साथ विज्ञान की यात्रा भी सतत चलती रहती थी। आज जिन भास्कराचार्य, वराहमिहीर आर्यभट्ट, आदि का नाम हम याद करते हैं, यह अपने जमाने के अद्वितीय वैज्ञानिक थे।
पतंजलि जैसे महान योग शास्त्री ने भी वैज्ञानिक तरीके से मानव मस्तिष्क के विकास पर कार्य किया था। भारत वह पहली भूमि रही जिसने मनुष्य के मस्तिष्क को प्रकृति का सबसे बड़ा सृजन माना और उसके विकास पर कार्य किया। आज विज्ञान के क्षेत्र में हमारे पास मौलिक विचारों की कमी बताती है कि हम अपनी उन जड़ों से कट चुके हैं। आंतरिक जगत का विकास आज भी महत्वपूर्ण है और इसमें कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है। हमेशा भीतर जाकर स्वयं को समझने की संभावनाएं हर किसी के पास होती हैं, लेकिन बाह्य जगत के विकास के साथ-साथ आंतरिक यात्रा की संभावनाएं कमजोर भी पड़ती हैं।
शायद यही वजह रही कि हमारे यहां पूजा पाठ और धर्म अध्यात्म की एक गहरी जड़ तो है लेकिन उसके वैज्ञानिक पहलुओं से हम उतने ही दूर होते जा रहे हैं। भारत में यदि विज्ञान की पुरानी परंपरा को जीवित करना है, तो हमें अपने शिक्षा संस्थानों को और समृद्ध करना होगा। पुरातन परंपरा के अनुरूप मस्तिष्क विकास पर अधिक कार्य करना होगा। योग आदि की परंपरा को सर्वसामान्य के जीवन में पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
खासतौर पर युवा छात्रों को नशाखोरी और पाश्चात्य संस्कृति की नकल से बाहर निकाल कर अपनी समृद्ध परंपरा से जोड़ने की आवश्यकता है। भारत दुनिया का सबसे युवा देश है और निश्चित तौर पर यदि हमारी युवा शक्ति को सही मार्गदर्शन मिलेगा तो हम आने वाले 10-20 सालों में दुनिया की सबसे बेहतरीन शक्ति के तौर पर उभर सकते हैं। हमेशा याद रखिए जब तक हम मौलिक वैज्ञानिक रचनाएं नहीं करेंगे, विश्व में कोई सम्मान नहीं पा पाएंगे।
हम हमेशा एक बाजार बनकर रह जाएंगे। मुगलों अंग्रेजों आदि इत्यादि की हजार साल की गुलामी से अभी तक बाहर नहीं निकल पाए हैं और आने वाले समय में यदि हम 1000 साल पुराने भारत की कुछ परंपराओं को पुनर्जीवित नहीं कर पाए, तो यह पिछड़ापन बरकरार रहेगा। यह भी सत्य है कि इन सब चीजों में समय लगता है लेकिन जब दौड़ होती है तो आपके पैरों के छाले नहीं देखे जाते।
प्रतियोगिता-प्रतियोगिता है, उसमें सबको साथ दौड़ना पड़ता है। दुनिया के अन्य देश भौतिक समृद्धि के आधार पर बहुत आगे हैं। आध्यात्मिक समृद्धि के लिए वह आज भी हमारी ओर देखते हैं लेकिन हम खुद अपनी जड़ों को खोते जा रहे हैं। इन दोनों के बीच सामंजस्य बनाते हुए हमें इस दौड़ में फिर से खड़ा होना पड़ेगा।

 

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